#NewsBytesExplainer: LGBTQ किरदारों के प्रति कैसे बदला बॉलीवुड का रवैया?
पिछले साल आई राजकुमार राव और भूमि पेडनेकर की फिल्म 'बधाई दो' इस साल अब तक कई पुरस्कार झटक चुकी है। समलैंगिकता पर आधारित इस फिल्म को दर्शकों और समीक्षकों की खूब सराहना मिली। अब पश्चिम सिनेमा का प्रभाव हो या फिर समाज में जागरूकता, बॉलीवुड में समलैंगिक किरदारों के चित्रण में बदलाव देखने को मिला है। कभी फिल्मों में सिर्फ कॉमेडी के लिए इनका इस्तेमाल होता था। 'प्राइड मंथ' के मौके पर नजर डालते हैं इस बदलाव पर।
क्या है प्राइड मंथ?
जून का महीना दुनियाभर में 'प्राइड मंथ' के रूप में मनाया जाता है। यह महीना समलैंगिकता को समर्पित होता है। लोग LGBTQ समुदाय के साथ अपना समर्थन जताने के लिए उनके साथ जश्न मनाते हैं। लोगों को उन्हें स्वीकार करने के लिए प्रेरित करते हैं।
फिल्मों ने खूब उड़ाया इन किरदारों का मजाक
लंबे वक्त तक समलैंगिक किरदारों का इस्तेमाल हिंदी सिनेमा में लोगों को हंसाने के लिए हुआ। 90 और 2000 के दशक में खासतौर पर किन्नर समुदाय के किरदारों को फिल्म निर्माताओं ने बेहद असंवेदनशीलता के साथ कॉमेडी के लिए इस्तेमाल किए। करण जौहर की 'दोस्ताना', 'स्टूडेंट ऑफ द ईयर' जैसी फिल्मों में समलैंगिक किरदारों के चित्रण के लिए उनकी खूब आलोचना हुई। 'कल हो न हो', 'पार्टनर', 'हमशक्ल', 'गोलमाल' जैसी तमाम फिल्मों में ऐसे किरदारों का मजाक उड़ाया गया।
'फायर' में पहली बार दिखी गंभीरता
1998 की फिल्म 'फायर' में पहली बार बॉलीवुड में एक गंभीर समलैंगिक रिश्ता देखने को मिला। इस फिल्म में पहली बार दो समलैंगिक लड़कियों के रिश्ते को खुलकर दिखाया गया। दीपा मेहता की इस फिल्म में नंदिता दास और शबाना आजमी एक जोड़े के रूप में नजर आई थीं। इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने तो पास कर दिया था, लेकिन इसे काफी विरोध का सामना करना पड़ा था। कई जगह अराजक तत्वों ने सिनेमाघरों में तोड़फोड़ भी मचाई थी।
समाज और कानून में बदलाव
बीते दशक में बॉलीवुड में समलैंगिक किरदारों को लेकर बड़ा बदलाव देखा गया है। इसकी बड़ी वजह है समाज और कानून में आया बदलाव। नई पीढ़ी के समलैंगिक अब इसे लेकर मुखर हैं। वे बिना अपनी समलैंगिकता छिपाए पढ़ाई करते हैं, काम पर जाते हैं और समाज द्वारा हो रहे उत्पीड़न का विरोध भी करते हैं। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया था। जाहिर है, इन सबका प्रभाव फिल्मों में भी दिखा।
न्यूजबाइट्स प्लस
लंबे समय तक भारत में समलैंगिकता एक अपराध माना जाता रहा। IPC की धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंध अपराध के दायरे में थे। सितंबर, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक निर्णय में धारा 377 को रद्द कर दिया। समलैंगिकता प्राकृतिक है न कि आपराधिक।
'अलीगढ़' ने छुआ दर्शकों का दिल
2014 में 'मार्गरिटा विद अ स्ट्रॉ' में समलैंगिकता को दिखाया गया था। 2015 में आई हंसल मेहता की फिल्म 'अलीगढ़' एक सच्ची घटना पर आधारित है। अलीगढ़ विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर को नैतिकता के आधार पर निष्कासित कर दिया गया था जब उन्हें एक रिक्शा चालक के साथ शारीरिक संबंध बनाते हुए देखा गया था। फिल्म में प्रोफेसर के किरदार में मनोज बाजपेयी उनका दर्द दिखाने में कामयाब रहे थे।
ड्रामा ही सही, इन फिल्मों ने भी खोला रास्ता
2019 में आई फिल्म 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा' में सोनम कपूर ने एक समलैंगिक लड़की का किरदार निभाया था। 2020 में 'शुभ मंगल ज्यादा सावधान' में आयुष्मान खुराना और जितेंद्र कुमार ने समलैंगिक जोड़े की भूमिका निभाई। 2021 में 'चंडीगढ़ करे आशिकी' में वाणी कपूर ने एक ट्रांस लड़की का किरदार निभाया। हालांकि, ये फिल्में गंभीरता की पटरी से उतर गईं और ड्रामा फिल्में बनकर रह गईं, लेकिन इन्होंने इंडस्ट्री और दर्शकों में बदलाव का रास्ता खोला।
सच्ची कहानियों के चलन ने बदली हवा
फिल्म निर्माताओं का समाज के असल किरदारों को पर्दे पर दिखाने का फैसला भी पर्दे पर बड़ा बदलाव लेकर आया। जहां 'अलीगढ़' में मनोज बाजपेयी के जरिए हर किसी ने समलैंगिकों के प्रति समाज की प्रताड़ना का दर्द देखा, वहीं अब सुष्मिता सेन एक मजबूत किरदार को पर्दे पर लाने जा रही हैं। जल्द ही उनकी वेब सीरीज 'ताली' रिलीज होगी, जिसमें वह किन्नर और सामाजिक कार्यकर्ता गौरी का किरदार निभाएंगी।
वेब सीरीज में दिखता है आधुनिक रोमांस
OTT प्लेटफॉर्म इन दिनों दर्शकों और निर्माताओं, दोनों की पसंदीदा जगह है। नए दर्शक फिल्मों से ज्यादा वेब सीरीज देखना पसंद कर रहे हैं और निर्माता भी इन पर खूब प्रयोग कर रहे हैं। ऐसे में वेब सीरीज में समलैंगिक जोड़ों का रोमांस खूब देखने को मिलता है। 'मेड इन हैवेन', 'फोर मोर शॉट्स', 'मॉडर्न लव: मुंबई' जैसे शो में समलैंगिक रोमांस का आधुनिक रूप नजर आता है। इन्हें दर्शकों ने भी खूब पसंद किया है।