जियो फाइनेंशियल सर्विसेज को कोर इन्वेस्टमेंट कंपनी बनने के लिए RBI से मिली मंजूरी
जियो फाइनेंशियल सर्विसेज को गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी से कोर इन्वेस्टमेंट कंपनी (CIC) बनने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से मंजूरी मिल गई है। रिपोर्ट के अनुसार, जियो फाइनेंशियल ने CIC बनने के लिए पिछले साल नवंबर महीने में आवेदन किया था। उस समय बैंकिंग नियामक ने जियो फाइनेंशियल को रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) से अलग होने और इसके शेयरधारिता पैटर्न में बदलाव के बाद कंवर्जन का निर्देश भी दिया था।
CIC की मंजूरी के क्या हैं मायने?
CIC एक होल्डिंग यूनिट के रूप में कार्य करती है, जो मुख्य रूप से अपने समूह की कंपनियों के शेयरों और प्रतिभूतियों का प्रबंधन करती है। इस बदलाव के साथ जियो फाइनेंशियल सर्विसेज अपने अलग-अलग व्यावसायिक कार्यक्षेत्रों को सुव्यवस्थित कर सकती है, जिसमें उधार, असेस्ट मैनेजमेंट, इंश्योरेंस और बहुत कुछ शामिल है। CIC संरचना में परिवर्तन से जियो फाइनेंशियल को प्रत्येक सहायक कंपनी के वित्तीय और संचालन को चित्रित करने में मदद मिलेगी।
CIC के लिए क्या होता है जरूरी?
विनियामक परिभाषा के अनुसार, एक CIC के पास 100 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति होनी चाहिए और उसे अपनी शुद्ध संपत्ति का कम से कम 90 प्रतिशत इक्विटी शेयर, वरीयता शेयर, बॉन्ड, डिबेंचर या समूह कंपनियों में ऋण जैसे निवेशों में रखना चाहिए। एक CIC के रूप में जियो फाइनेंशियल सर्विसेज अपनी सहायक कंपनियों को कुशलतापूर्वक पूंजी आवंटित करने पर ध्यान केंद्रित कर सकती है। यह सहायक कंपनियों में कुशल पूंजी परिनियोजन की अनुमति देती है।