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#NewsBytesExplainer: क्या होते हैं दुर्लभ खनिज, इनके लिए पूरी दुनिया चीन पर ही क्यों निर्भर है?
दुर्लभ खनिज 17 तत्वों का एक समूह है

#NewsBytesExplainer: क्या होते हैं दुर्लभ खनिज, इनके लिए पूरी दुनिया चीन पर ही क्यों निर्भर है?

लेखन आबिद खान
Oct 30, 2025
06:06 pm

क्या है खबर?

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच आज दक्षिण कोरिया में बैठक हुई। इसमें दोनों देशों में कई मुद्दों पर सहमति बनी, लेकिन सबसे बड़ी खबर दुर्लभ खनिजों को लेकर थी। चीन इन खनिजों का निर्यात दोबारा शुरू करने पर सहमत हो गया है, जिसे पूरी दुनिया के इलेक्ट्रॉनिक उद्योग के लिए बड़ी राहत माना जा रहा है। आइए आज दुर्लभ खनिजों के बारे में जानते हैं।

खनिज

क्या होते हैं दुर्लभ खनिज?

दुर्लभ खनिज 17 तत्वों का एक समूह है, मोटे तौर पर जिनकी रासायनिक विशेषताएं एक जैसी होती हैं। इनमें 15 सफेद धातुएं शामिल हैं, जिन्हें लैंथेनाइड्स कहा जाता है। इसके अलावा स्कैंडियम और यिट्रियम भी दुर्लभ खनिजों में आती हैं। लैंथेनाइड्स में सेरियम, डिस्प्रोसियम, अर्बियम, यूरोपियम, गैडोलीनियम, होल्मियम, लैंथेनम, ल्यूटेटियम, नियोडिमियम, प्रेजोडायमियम, प्रोमेथियम, सैमेरियम, स्कैंडियम, टेरबियम, थुलियम, यिटरबियम और यिट्रियम आते हैं। इन सभी में अद्वितीय चुंबकीय, प्रकाशीय और विद्युत-रासायनिक गुण होते हैं।

दुर्लभ

इन खनिजों को दुर्लभ क्यों कहा जाता है?

यहां दुर्लभ से ये मतलब नहीं है कि ये खनिज कम मात्रा में पाए जाते हैं, बल्कि ये शुद्ध रूप से कम मिलते हैं। इनमें से कई खनिज तो काफी मात्रा में उपलब्ध हैं, लेकिन इनमें काफी अशुद्धियां होती हैं या ये दूसरे खनिजों के साथ मिश्रित होते हैं। इसलिए इन खनिजों को निकालना और फिर उन्हें शुद्ध करना काफी खर्चिला, जोखिमभरा और मुश्किल होता है। बस यही वजह है कि इन खनिजों को दुर्लभ कहा जाता है।

चीन

इन खनिजों पर चीन का एकाधिकार क्यों है?

चीन ने दशकों तक ढीले पर्यावरणीय मानकों और सरकारी समर्थन के कारण दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति पर एकाधिकार हासिल कर लिया है। दुनिया के लगभग 90 प्रतिशत दुर्लभ खनिजों की प्रोसेसिंग चीन में होती है। वैश्विक दुर्लभ खनन उत्पादन में चीन का योगदान लगभग 60 प्रतिशत और खास चुंबकीय तत्वों वाले दुर्लभ खनिज उत्पादन में 90 प्रतिशत से भी ज्यादा है। ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका भी इनका उत्पादन करते हैं, लेकिन बेहद सीमित मात्रा में।

काम

क्या काम आते हैं ये दुर्लभ खनिज?

इन खनिजों के बिना आप लगभग सभी आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बनाने की कल्पना भी नहीं कर सकते। इनका इस्तेमाल लाउडस्पीकर, कंप्यूटर हार्ड ड्राइव, इलेक्ट्रिक कार मोटर, स्मार्टफोन, चिप, LED लाइट, पवन चक्की से लेकर लड़ाकू विमान बनाने तक में होता है। कई तरह के सैन्य अनुप्रयोगों के लिए भी ये बेहद अहम है। यही वजह है कि इनकी आपूर्ति बाधित होने से दुनिया के कई आधुनिक उद्योग सीधे-सीधे प्रभावित होते हैं।

भारत

दुर्लभ खनिजों के मामले में भारत की क्या स्थिति है?

भारत में दुर्लभ खनिजों से जुड़ा कामकाज खान ब्यूरो और परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा किया जाता रहा है। इस विभाग के अंतर्गत आने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड (IREL) इन खनिजों का उत्पादन और प्रोसेसिंग करता है। इसके पास हर साल 10 मीट्रिक टन दुर्लभ खनिज प्रोसेस करने की क्षमता है। IREl के ज्यादातर कारखाने दक्षिण भारतीय राज्यों में है, जो ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, नॉर्वे और अमेरिका को निर्यात करते हैं।

चीन

चीन ने रोक दिया था दुर्लभ खनिजों का निर्यात

चीन ने इसी महीने दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर नियंत्रण सख्त कर दिए थे। नए नियमों के तहत, विदेशी कंपनियों को दुर्लभ खनिजों की कम मात्रा वाले उत्पादों के निर्यात के लिए सरकारी मंजूरी जरूरी होगी और इन उत्पादों का इस्तेमाल कहां होगा ये भी बताना होगा। इससे पहले अप्रैल में भी चीन ने दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर कुछ पाबंदियां लगाई थीं, जिससे वैश्विक आपूर्ति पर असर पड़ा था।