ईरान: विरोध-प्रदर्शन के बीच हिजाब की अनिवार्यता से संबंधित कानून की समीक्षा कर रही सरकार
क्या है खबर?
देशभर में विरोध-प्रदर्शन के बीच ईरान की सरकार महिलाओं के लिए हिजाब पहनना अनिवार्य करने वाली अपनी दशकों पुरानी नीति की समीक्षा कर रही है।
समाचार एजेंसी AFP के अनुसार, देश के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद जफर मोंटाजेरी ने कहा कि कानून में बदलाव की जरूरत है या नहीं, इस मुद्दे पर संसद और न्यायपालिका दोनों काम कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि समीक्षा टीम बुधवार को संसद के सांस्कृतिक आयोग से मिली और एक-दो हफ्तों में नतीजे आ सकते हैं।
हिजाब कानून
क्या है ईरान का हिजाब कानून?
ईरान में 1979 में इस्लामिक क्रांति आई थी और इसके चार साल बाद अप्रैल, 1983 में महिलाओं के लिए हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया गया था। इस्लामिक कानूनों को मद्देनजर रखते हुए ये फैसला लिया गया था।
अनिवार्य किए जाने के बाद से हिजाब देश में एक बड़ा मुद्दा रहा है। जहां रूढ़िवादी लोग कहते हैं कि यह अनिवार्य होना चाहिए, वहीं सुधारवादी लोग इसे महिलाओं की व्यक्तिगत पसंद पर छोड़ने के पक्षधर रहे हैं।
प्रदर्शन
ईरान में 16 सितंबर से चल रहे हैं हिजाब विरोधी प्रदर्शन
बता दें कि ईरान में 16 सितंबर से हिजाब विरोधी प्रदर्शन चल रहे हैं। कुर्दिश मूल की 22 वर्षीय महसा अमिनी की नैतिकता पुलिस की हिरासत में मौत के बाद ये प्रदर्शन शुरू हुए हैं।
रिपोर्ट्स के अनुसार, अमिनी ने हिजाब नहीं पहना हुआ था, जिसके कारण नैतिकता पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया और उनकी बेरहमी से पिटाई की गई।
पिटाई में अमिनी गंभीर रूप से घायल हुईं और अस्पताल में उनकी मौत हो गई।
प्रदर्शन
प्रदर्शन के दौरान तमाम तरह के प्रतिबंधों और सरकार को दी जा रही चुनौती
हिजाब के विरोध में शुरू हुए इन प्रदर्शनों के दौरान महिलाओं पर लगने वाली अन्य पाबंदियों को भी चुनौती दी गई है और लोगों ने इन पाबंदियों के खिलाफ आवाज बुलंद की है।
इनमें सार्वजनिक तौर पर नाचना भी शामिल है। महिलाओं ने नाचकर इस प्रतिबंध के खिलाफ बगावत की है।
इसके अलावा प्रदर्शन के दौरान सरकार के खिलाफ भी नारेबाजी की गई है और मौलवियों के सिर से पगड़ी तक उछाली गई हैं।
हिंसा
प्रदर्शन के दौरान हिंसा में हुई 300 से अधिक लोगों की मौत
ईरान में हो रहे इन प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भी हुई है और सरकारी सुरक्षाबलों ने प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने के लिए बल का प्रयोग किया है।
ईरानी सेना के एक जनरल के अनुसार, प्रदर्शन के दौरान 300 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें सुरक्षाकर्मी, आम नागरिक और प्रदर्शनकारी शामिल हैं। इसके अलावा 14,000 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया है।
पुलिस की गोलीबारी में कई महिला प्रदर्शनकारियों की भी मौत हुई है।