
राजशाही की वापसी या सैन्य शासन, नेपाल में आगे क्या हो सकता है?
क्या है खबर?
नेपाल में भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनों के बीच प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार गिर गई है। उन्होंने इस्तीफा दे दिया है। इसके बाद पूरे देश पर सेना ने नियंत्रण कर लिया है। सेना ने कहा है कि वो प्रदर्शनकारियों और राष्ट्रपति के बीच वार्ता करा रही है। 2 दिन के इस घटनाक्रम के बाद नेपाल में राजनीतिक अनिश्चितता का माहौल है। आइए समझते हैं कि भारत के इस पड़ोसी देश में आगे क्या हो सकता है।
संविधान
सरकार गिरने की स्थिति में क्या कहता है संविधान?
नेपाल के संविधान के मुताबिक, अगर सरकार गिरती है तो राष्ट्रपति संसद में बहुमत वाली पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करेंगे। अगर किसी भी पार्टी के पास बहुमत नहीं है, तो बहुमत का दावा करने वाले किसी भी संसद सदस्य को आमंत्रित किया जा सकता है। ऐसे व्यक्ति को 30 दिनों के भीतर विश्वास मत का सामना करना पड़ेगा। अगर ऐसा भी नहीं होता है, तो संसद को भंग कर नए सिरे से चुनाव करवाना होंगे।
अंतरिम सरकार
क्या नेपाल में बन सकती है अंतरिम सरकार?
नेपाल के संविधान में अंतरिम सरकार के गठन को लेकर ज्यादा जानकारी नहीं है। हालांकि, कानूनी विद्वानों का मानना है कि फिलहाल अंतरिम सरकार का विकल्प ही सामने है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ बिपिन अधिकारी ने कहा, "ऐसी सरकार जनरेशन जी के परिवर्तन के एजेंडे को आगे बढ़ा सकती है और 6 महीने के भीतर नई संसद के लिए चुनाव भी करा सकती है।"
बदलाव
क्या नया संविधान लाया जा सकता है?
प्रदर्शनकारियों ने अपनी मांगों में संविधान में बदलाव या पुनर्लेखन की मांग भी की है। 2015 का ये संविधान शुरू से ही विवादों में है। हालांकि, संविधान में किसी भी तरह का संशोधन केवल संसद के जरिए ही किया जा सकता है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि मौजूदा राजनीतिक वर्ग पर सुधारों का नेतृत्व करने के लिए भरोसा नहीं किया जा सकता। यानी स्थायी शासन की ओर कोई सा भी कदम बढ़ाने के लिए अंतरिम सरकार पहली जरूरत है।
सेना
सेना क्या कर रही है?
सेना ने पूरे देश पर नियंत्रण कर लिया है और रात्रिकालीन कर्फ्यू का ऐलान किया है। सेना ने लोगों से शांति की अपील की है और कई लोगों को गिरफ्तार भी किया है। सेना का कहना है कि वो सरकार और प्रदर्शनकारियों के बीच बातचीत को सुगम बनाने में शामिल है। हालांकि, उसने बातचीत में अपनी किसी भी तरह की भूमिका से इनकार किया है। सेना ने कहा है कि वो लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रक्रिया का पालन करेगी।