चंद्रयान-3 चांद के और करीब पहुंचा, अब लैंडर और प्रोपल्शन मॉड्यूल के अलग होने की तैयारी
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने चंद्रयान-3 को 153 किलोमीटर x 163 किलोमीटर वाली ऑर्बिट में स्थापित कर दिया है। इसके साथ ही चंद्रयान का मैन्युवर पूरा हो गया है। अब इसके आगे की तैयारी का समय शुरू हो गया है क्योंकि प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल अपनी अलग-अलग यात्रायों के लिए तैयार हो रहे हैं। कल यानी 17 अगस्त, 2023 को लैंडर मॉड्यूल को प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग करने की योजना बनाई गई है।
ये है आगे की चुनौती
18 अगस्त और 20 अगस्त को लैंडर की डीऑर्बिटिंग (ऑर्बिट की ऊंचाई को कम करना) कराई जाएगी। 23 अगस्त को शाम 5 बजकर 47 मिनट पर चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास किया जाएगा। लैंडिंग में अब लगभग हफ्ते भर का समय है। सॉफ्ट लैंडिंग इस मिशन का सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य है। सफल लैंडिंग के बाद अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो जाएगा जिन्होंने अब तक सॉफ्ट लैंडिंग की है।
ISRO टीम के सामने है ये चुनौती
ISRO प्रमुख एस सोमनाथ ने कुछ समय पहले जानकारी दी थी कि सॉफ्ट लैंडिंग के लिए टीम के सामने सबसे बड़ी चुनौती हॉरिजॉन्टल (क्षैतिज) स्थिति वाले विक्रम लैंडर को वर्टिकल (लंबवत) रूप से उतारना है। उनके मुताबिक, चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने के लिए लैंडर को कई मैन्युवर के जरिए वर्टिकल रूप में लाया जाता है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि चंद्रयान-2 मिशन सॉफ्ट लैंडिंग करने में ही सफल नहीं हुआ था।
दक्षिणी ध्रुव पर कराई जाएगी चंद्रयान-3 की लैंडिंग
चंद्रयान-3 को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड कराया जाएगा। चांद के दक्षिणी ध्रुव के कई हिस्सों में अरबों वर्षों से सूर्य की रोशनी नहीं पहुंची है, जिससे इसका ज्यादातर हिस्सा छाया में रहता है। इसके चलते यह इलाका काफी ज्यादा ठंडा रहता है। वैज्ञानिकों को इस इलाके में बर्फ और पानी मिलने की उम्मीद है। नासा की वेबसाइट के मुताबिक, चांद पर ह्यूमन एक्सप्लोरेशन को आगे बढ़ाने के लिए पानी बहुत आवश्यक है।
ऐसा रहा चंद्रयान-3 का अब तक का सफर
भारत के चांद मिशन चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से ISRO ने लॉन्च किया था। लॉन्चिंग के बाद चंद्रयान-3 ने कुछ समय तक पृथ्वी की ऑर्बिट में चक्कर लगाया। इसके बाद 5 अगस्त को इस मिशन का लूनर ऑर्बिट इजेक्शन (LOI) इसे चांद के ऑर्बिट की तरफ बढ़ाया गया। चांद की ऑर्बिट में कई मैन्युवर के जरिए इसकी ऑर्बिट को बदला जाता रहा। अब यह चांद की सतह पर लैंडिंग के करीब पहुंच गया है।