कोरोना वायरस को बेअसर कर मारने के लिए वैज्ञानिकों ने खोजी नई तकनीक
कोरोना वायरस दुनियाभर में लगभग एक करोड़ लोगों को अपनी चपेट में ले चुका है। यह एक बेहद शातिर वायरस है। इंसानी कोशिकाओं को जब तक इसका पता चलता है, तब तक यह उन्हें नष्ट कर चुका होता है। अब वैज्ञानिकों ने इस वायरस को फंसाने और मारने का एक नया तरीका ईजाद किया है। उन्होंने एक नई तकनीक खोजी है, जो COVID-19 बीमारी फैलाने वाले SARS-CoV-2 को इंसानी शरीर में बेअसर कर मार देगी।
वायरस को बेअसर करने के लिए खोजी गई यह तकनीक
लैबोरेट्री में किए गए एक प्रयोग में वैज्ञानिकों ने डिकॉय पॉलिमर्स (असली की तरह दिखने वाले मॉलिक्यूल्स का एक बड़ा नकली समूह) का इस्तेमाल किया। इसके जरिये यह देखा गया कि क्या कोरोना वायरस इसके जाल में फंस सकता है। प्रयोग में यह तरीका कारगर साबित हुआ। इस तकनीक के जरिये बेहद सूक्ष्म बायो-फ्रेंडली पॉलिमर्स को तैयार कर उन पर इंसान के फेफड़ों या इम्युन सिस्टम के टिश्यू से कोटिंग की जाती है।
आगे बढ़ने की जगह पॉलिमर्स में फंस जाता है वायरस
कोटिंग होने की वजह से बाहर ये पोलिमर्स असली जीवित कोशिका की तरह लगते हैं। इसलिए कोरोना वायरस खुद को आगे बढ़ाने के लिए इन्हें असली कोशिका समझकर इन पर हमला करता है, लेकिन आगे जाने की जगह वो इनमें फंस जाता है।
डिकॉय पॉलिमर्स के कारण आगे नहीं बढ़ पाता वायरस
आमतौर पर संक्रमण के दौरान वायरस इंसानी कोशिका में घुसता है। कोशिका का सहारा लेकर यह एक वायरस कई गुणा में बदल जाता है। इसके बाद ये वायरस कोशिका को अंदर से खाना शुरू कर देते हैं। एक को खत्म करने के बाद ये दूसरी पर हमला कर देते हैं, लेकिन इस तकनीक में डिकॉय पॉलिमर्स जीवित कोशिका नहीं है। जब कोरोना वायरस इन पर हमला करता है तो उसे जिंदा रहने के लिए इसमें कुछ नहीं मिलता।
पॉलिमर्स में ही टूटकर मर जाएगा वायरस
जब वायरस एक नकली कोशिका में फंसता है तो उसे खुद को आगे बढ़ाने के लिए अनुकूल माहौल नहीं मिल पाता। इस वजह से वह टूटकर वहीं मर जाता है। डिकॉय पॉलिमर्स पर फेफड़ों के टिश्यू की कोटिंग इसलिए की जाती है क्योंकि कोरोना वायरस इन टिश्यू को सबसे पहले और ज्यादा निशाना बनाते हैं। इसके लिए वायरस फेफड़ों की कोशिका में पाए जाने वाले एक खास प्रोटीन का इस्तेमाल कर उससे चिपक जाता है।
डिकॉय पॉलिमर्स शरीर से बाहर कैसे आएंगे?
वैज्ञानिकों का कहना है कि ये पॉलिमर्स कोरोना वायरस को फंसाने में बेहद कारगर साबित हुए हैं। एक बार अपना काम करने के बाद ये पॉलिमर्स प्राकृतिक रूप से शरीर से बाहर निकल जाएंगे।
इबोला जैसी महामारी में भी कारगर हो सकती है यह तकनीक
वैज्ञानिकों का मानना है यह तकनीक सूजन को घटाने में भी कामयाब साबित हो सकती है, जो कोरोना के गंभीर मरीजों की मौत का एक बड़ा कारण है। वहीं उन्होंने इसे इबोला और दूसरे संक्रामक बीमारियों में भी उपयोगी होने की उम्मीद जताई है। हालांकि, अभी यह प्रयोग लैबोरेट्री में किया गया था। अब इसका जानवरों पर ट्रायल किया जाएगा। अगर यहां अनुकूल नतीजे मिलते हैं तो इंसानों पर ट्रायल शुरू किया जाएगा।