डिजिटल इंडिया बिल का ड्राफ्ट जल्द पेश होगा, बदल जाएगा भारत का इंटरनेट कानून
भारत के टेक रेगुलेशन के नए रूप को लेकर काम जारी है। इंटरनेट अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने वाले नियम बदले जा रहे हैं। एक तरफ डाटा प्रोटेक्शन बिल को अंतिम रूप दिया जा रहा है और दूसरी तरफ दूरसंचार सेक्टर के लिए एक रूपरेखा तैयार करने के लिए एक मसौदा कानून पर काम किया जा रहा है। वर्तमान में सबसे महत्वपूर्ण कानून डिजिटल इंडिया बिल है। यह देश के दशकों पुराने कानून सूचना प्रौद्योगिकी एक्ट, 2000 की जगह लेगा।
डिजिटल इंडिया बिल अन्य तकनीकी कानूनों पर करेगा काम
इलेक्ट्रॉनिक्स और IT राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर नए IT एक्ट के निर्माण के लिए काम करने वाले एक प्रमुख व्यक्ति हैं। उन्होंने कहा कि डिजिटल इंडिया बिल अन्य सभी तकनीकी कानूनों पर काम करेगा। गौतरलब है कि स्वाभाविक रूप से बहुत कुछ डिजिटल इंडिया बिल पर निर्भर है क्योंकि भारत लगभग 80 लाख करोड़ रुपये या GDP के 20 प्रतिशत के अपने डिजिटल अर्थव्यवस्था लक्ष्य को प्राप्त करना चाहता है।
जून में आएगा बिल का पहला ड्राफ्ट
डिजिटल इंडिया बिल का पहला ड्राफ्ट जून के पहले सप्ताह में आने की उम्मीद है। चंद्रेशेखर ने इस बिल के प्री-ड्राफ्ट को लेकर बेंगलुरू और मुंबई में सार्वजनिक परामर्श भी किया। इसे संसद में पेश किए जाने से पहले दिल्ली में एक और मीटिंग की जा सकती है। इससे यह पता लगाने का प्रयास किया जा रहा है कि कानून का हितधारकों, इंटरनेट बिजनेसों, यूजर्स और सरकार पर क्या प्रभाव पड़ सकता है और बिल में क्या शामिल होना चाहिए।
इस्तेमाल हो रहा है दशकों पुराना इंटरनेट कानून
वर्तमान में इंटरनेट से जुड़ी संस्थाओं और शिकायतों को सूचना प्रौद्योगिकी एक्ट, 2000 के कानूनों के अनुसार नियंत्रित किया जाता है। इंटरनेट के इस्तेमाल का स्वरूप बदलने के साथ ही लंबे समय से इस कानून में बदलाव की जरूरत महसूस की जाती रही है। यह कानून पुराने दौर के इंटरनेट के लिए था। इस कानून का एक सीमित दायरा है और इस वजह से सरकारों को कई बार कानूनी कार्रवाई करने में मुश्किल भी होती है।
डिजिटल इंडिया बिल का मुख्य उद्देश्य
चंद्रशेखर ने कहा कि नए डिजिटल इंडिया बिल का मुख्य उद्देश्य देश में मुक्त और सुरक्षित इंटरनेट सुनिश्चित करना है, जिससे यूजर्स के अधिकारों की रक्षा करने और ऑनलाइन खतरों को कम करने के साथ ही टेक्नोलॉजी के विकास में तेजी लाई जा सके।
तय होगी सोशल मीडिया कंपनियों की जवाबदेही
सूचना प्रौद्योगिकी एक्ट, 2000 की धारा 79 के तहत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म या इंटरमीडियरी कंपनियों फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब आदि को तमाम जवाबदेही से छूट मिली हुई है। इसी छूट से ये कंपनियां फल-फूल रही हैं। इन कंपनियों के प्लेटफॉर्म पर झूठ, हिंसा फैलाने वाले कंटेंट को लेकर इनकी ठोस जवाबदेही तय नहीं है। ये सिर्फ उस कंटेंट और पोस्ट करने वाले अकाउंट पर कार्रवाई करके बच जाती हैं। नए कानूनों में जवाबदेही से लेकर जुर्माने तक का प्रावधान होगा।
सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स के बीच का अंतर होगा साफ
अभी तक भारत के इंटरनेट कानून प्लेटफॉर्मों को उनकी प्रकृति के आधार पर वर्गीकृत नहीं करते हैं। अभी सिर्फ प्लेटफॉर्मों के साइज के आधार पर एकमात्र अंतर किया गया है, जिसमें 50 लाख से अधिक भारतीय यूजर्स वाले प्लेटफॉर्म को महत्वपूर्ण सोशल मीडिया इंटरमीडियरी कहा गया है और इसमें दायित्वों को जोड़ा गया है। हालांकि, नियमों में ऐसा कोई खास प्रावधान नहीं है, जो सोशल मीडिया कंपनी और ई-कॉमर्स कंपनी के बीच अंतर पैदा करता हो।