#NewsBytesExplainer: कांग्रेस के लिए डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया में से एक को चुनना कठिन क्यों है?
क्या है खबर?
कर्नाटक सरकार में मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान तेज हो गई है। डीके शिवकुमार के कई समर्थकों ने दिल्ली में डेरा डाल रखा है, तो सिद्धारमैया भी आसानी से कुर्सी छोड़ने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। विवाद बढ़ने पर कांग्रेस आलाकमान सक्रिय हुआ है और बैठकों के दौर जारी हैं। अभी तक आलाकमान ने किसी के भी पक्ष में खुलकर कुछ नहीं कहा है। आइए समझते हैं कांग्रेस के लिए किसी एक को चुनना कठिन क्यों है।
सिद्धारमैया की ताकत
क्या है सिद्धारमैया की ताकत?
सिद्धारमैया OBC समुदाय की कुरुबा जाति से आते हैं और राज्य का प्रमुख OBC चेहरा हैं। यही वजह है कि वे कांग्रेस के सामाजिक न्याय के एजेंडे के लिए अहम है। उनकी गिनती जमीन से जुड़े नेताओं में होती है। कांग्रेस को लगता है कि सिद्धारमैया को हटाने से राहुल गांधी का सामाजिक न्याय का मुद्दा पटरी से उतर सकता है। पार्टी पड़ोसी केरल और तमिलनाडु में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को भी ध्यान में रख रही है।
OBC
कांग्रेस को अहिंदा वोटबैंक के छिटकने का डर
सिद्धारमैया राज्य में किसी भी नेता की लोकप्रियता के मामले में सबसे आगे हैं। कर्नाटक में कुरुबा जाति की आबादी करीब 7 प्रतिशत है। ये समुदाय 20 से ज्यादा सीटों पर किसी भी पार्टी को हराने या जिताने की ताकत रखता है। हाल ही में पार्टी ने सिद्धारमैया को OBC सलाहकार परिषद का सदस्य बनाया है। कांग्रेस को लगता है कि सिद्धारमैया को हटाने से अहिंदा (अल्पसंख्यक, पिछड़ा हिंदु और दलित) वोट बैंक भी पार्टी के खिलाफ हो सकता है।
शिवकुमार की ताकत
क्या है शिवकुमार की ताकत?
शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं। इस समुदाय का राज्य की करीब 48 विधानसभा सीटों पर खासा प्रभाव है। वोक्कालिगा को पारंपरिक तौर पर जनता दल (सेक्युलर) का मतदाता माना जाता है, क्योंकि JDS के संस्थापक देवगौड़ा और कुमारस्वामी इसी समुदाय से हैं। हालांकि, शिवकुमार की वजह से ये समुदाय कांग्रेस की ओर झुका था। अब अगर शिवकुमार को कुर्सी नहीं मिली, तो इसके वापस दूर जाने का डर भी है।
संकट मोचक
कांग्रेस के संकट मोचक हैं शिवकुमार
शिवकुमार को कांग्रेस का संकट मोचक माना जाता है। उन्होंने हिमाचल प्रदेश से लेकर कई राज्यों में पार्टी को संकट से निकाला है। 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिलने के बाद शिवकुमार ने ही कांग्रेस विधायकों को थामे रखा था। इसी वजह से भाजपा विधायकों को नहीं तोड़ पाई थी। उन्हें सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी का भी करीबी माना जाता है। फंड जुटाने में भी शिवकुमार माहिर माने जाते हैं।
कमजोरी
क्या हैं दोनों नेताओं की कमजोरियां?
सिद्धारमैया 78 साल के हैं। 2028 में कर्नाटक चुनावों तक उनकी उम्र 80 पार हो जाएगी। वे पहले ही चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस के सामने सवाल है कि क्या उनके नेतृत्व में पार्टी भाजपा को जोरदार चुनौती दे पाएगी। वहीं, शिवकुमार पर भ्रष्टाचार के मामले दर्ज हैं। वे प्रवर्तन निदेशालय (ED) के निशाने पर रहे और जेल भी गए। भ्रष्टाचार का दाग शिवकुमार के लिए चुनौती पेश कर सकता है।
आलाकमान
कांग्रेस आलाकमान क्या कर रहा है?
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक में डेरा डाले हुए थे। उन्होंने वहां दोनों गुटों के साथ बैठक की और दिल्ली लौट आए हैं। बीते दिन उन्होंने कहा था कि पार्टी आलाकमान मामले को सुलझाएगा और जरूरत पड़ने पर मध्यस्थता भी करेगा। खबर है कि खड़गे कर्नाटक दौरे की जानकारी आलाकमान को देंगे। इसके बाद शिवकुमार और सिद्धारमैया को दिल्ली तलब किए जाने की भी अटकलें हैं। कथित तौर पर शिवकुमार ने राहुल से भी मिलने का समय मांगा था।
विवाद
कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन की क्यों हैं अटकलें?
कहा जाता है कि कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद को लेकर शिवकुमार और सिद्धारमैया के बीच आलाकमान ने ढाई-ढाई साल का फार्मूला तय किया था। कथित तौर पर शिवकुमार से वादा किया गया था कि ढाई साल बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। 20 नवंबर को सिद्धारमैया सरकार को ढाई साल हो गए हैं। ऐसे में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें तेज हो गई हैं। इससे पहले भी कई बार शिवकुमार समर्थक ऐसी मांग करते रहे हैं।