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    मनमोहन सिंह का 33 साल का संसदीय सफर खत्म, किन वजहों के चलते याद किए जाएंगे?
    मनमोहन सिंह 33 साल बाद राज्यसभा से सेवानिवृत्त हो गए हैं

    मनमोहन सिंह का 33 साल का संसदीय सफर खत्म, किन वजहों के चलते याद किए जाएंगे?

    लेखन आबिद खान
    Apr 03, 2024
    01:15 pm

    क्या है खबर?

    पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अब से संसद में दिखाई नहीं देंगे। 33 साल बाद बुधवार को वे राज्यसभा से सेवानिवृत्त हो गए।

    वे 1991 में पहली बार असम से राज्यसभा पहुंचे थे। इसके बाद वे 6 बार और राज्यसभा सदस्य बने और आज 3 दशक से अधिक समय बाद सेवानिवृत्त हो गए। ये सिंह की संसदीय पारी का औपचारिक समापन है।

    आइए उनके सियासी सफर पर एक नजर डालते हैं।

    सफर

    कैसा रहा मनमोहन का संसदीय सफर?

    सिंह पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में जून, 1991 में वित्त मंत्री नियुक्त किए गए थे। इसके 4 महीने बाद यानी अक्टूबर में वे पहली बार असम से राज्यसभा के लिए चुने गए।

    इसके बाद वे लगातार 1995, 2001, 2007 और 2013 में असम से ही राज्यसभा सदस्य बने। वे छठवीं और आखिरी बार अगस्त, 2019 में राजस्थान से राज्यसभा के लिए चुने गए थे।

    उन्होंने 1999 में दिल्ली से लोकसभा चुनाव भी लड़ा था, लेकिन जीत नहीं सके।

    वित्त मंत्री

    वित्त मंत्री बनने के प्रस्ताव को मजाक समझ बैठे थे सिंह

    1990 के दशक में देश की आर्थिक स्थिति नाजुक थी। ऐसे में तत्कालीन प्रधानमंत्री राव के सामने वित्त मंत्री के रूप में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर आईजी पटेल और सिंह का विकल्प था। पटेल ने पद लेने से इनकार कर दिया था।

    इसके बाद शपथ ग्रहण से पहले की रात सिंह को फोन कर वित्त मंत्री पद ऑफर किया गया। सिंह ने इसे मजाक समझा, जिसके चलते वे शपथ ग्रहण समारोह में काफी देर से पहुंचे।

    बदलाव 

    वित्त मंत्री रहते किए ऐतिहासिक आर्थिक सुधार

    सिंह को आर्थिक सुधारों के लिए जाना जाता है। उन्होंने बतौर वित्त मंत्री उदारीकरण, निजीकरण और वैश्विकरण से जुड़ी घोषणाएं कीं, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था का पुनर्जन्म हुआ।

    अपने पहले बजट भाषण में सिंह ने कहा था, "दुनिया की कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती, जिसका समय आ गया है। भारत का एक बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में उदय एक ऐसा ही विचार है। पूरी दुनिया सुन ले कि भारत जाग चुका है।"

    प्रधानमंत्री

    बतौर प्रधानमंत्री कैसा रहा कार्यकाल?

    2004 से 2014 तक सिंह देश के प्रधानमंत्री रहे। इस दौरान एक नाजुक गठबंधन की कमान उनके हाथों में थी। उनके कार्यकाल में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) औसतन 8.1 प्रतिशत की दर से बढ़ा।

    सिंह ने इस दौरान सूचना का अधिकार, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, आधार, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी (मनरेगा), बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार, राजीव आवास योजना और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण कानून और योजनाएं लागू कीं।

    शायरी

    जब संसद में दिखा सिंह का शायराना अंदाज

    संसद में सिंह और दिवंगत नेत्री सुषमा स्वराज के बीच अक्सर शायरियों में बहस देखने को मिलती थी।

    एक बार सिंह ने भाजपा पर निशाना साधते हुए मिर्जा गालिब का शेर पढ़ा, "हम को उनसे वफा की है उम्मीद, जो नहीं जानते वफा क्या है।"

    इसका जवाब देते हुए हुए सुषमा ने कहा कि शेर का जवाब शेर से न देने पर ऋण बाकी रह जाएगा। फिर उन्होंने पढ़ा, "कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता।"

    संसद

    संसद में आखिरी बार नोटबंदी पर बोले थे सिंह

    सिंह ने आखिरी बार 2016 में संसद में भाषण दिया था। तब उन्होंने नोटबंदी पर सरकार को घेरते हुए इसे 'संगठित और वैध लूट' कहा था।

    सिंह ने कहा था, "नोटबंदी अर्थव्यवस्था के लिए खतरा है। इससे अर्थव्यवस्था कमजोर हो सकती है और GDP में 2 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। मैं प्रधानमंत्री से पूछना चाहता हूं कि वे किसी ऐसे देश का नाम बताएं, जहां लोगों ने बैंक में अपने पैसे जमा कराए, लेकिन उसे निकाल नहीं सकते।"

    मोदी

    प्रधानमंत्री मोदी ने की थी सिंह की तारीफ

    इसी साल फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिंह की तारीफ की थी।

    प्रधानमंत्री ने कहा था, "हमारे बीच वैचारिक मतभेद बने हुए हैं। सदन और देश का मार्गदर्शन करने वाले मनमोहन सिंह हमारे देश के लोकतंत्र की हर चर्चा में शामिल रहेंगे। जब राज्यसभा में एक महत्वपूर्ण विधेयक पर मतदान हो रहा था, तब सबको पता था कि नतीजा सरकार के पक्ष में रहेगा, लेकिन इसके बावजूद मनमोहन सिंह व्हीलचेयर पर सदन में आए थे।"

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