महाराष्ट्र: अजित पवार की बगावत से MVA को एक साल में दूसरी बार कैसे लगा झटका?
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के नेता अजित पवार रविवार को महाराष्ट्र की भाजपा और शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार का हाथ थाम लिया और उपमुख्यमंत्री बन गए। उनके साथ NCP के कई विधायकों ने भी महाराष्ट्र सरकार को अपना समर्थन दे दिया है। इसके राजनीतिक घटनाक्रम के साथ ही एक साल में दूसरी बार महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन को बड़ा झटका लगा है, जिसके पीछे भाजपा की चुनावी रणनीति मानी जा रही है।
भाजपा-शिवसेना के लिए बड़ी चुनौती था MVA गठबंधन
एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार उद्धव गुट वाली शिवसेना, कांग्रेस और NCP के गठबंधन को तोड़ना चाहती थी। दरअसल, 2024 के लोकसभा चुनाव में MVA उनके सामने एक बड़ी चुनौती पेश कर सकती थी। इसके लिए जरूरी था कि MVA के घटक दलों में से किसी को कमजोर कर दिया जाए। एक तरफ NCP अध्यक्ष शरद पवार विपक्ष को एकजुट करने की लगातार कोशिश कर रहे थे, लेकिन वह अपने ही गुट को एकजुट नहीं रख सके।
अजित पवार ने NCP पर दावेदारी की पेश
अजित ने उपमुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेस के दौरान NCP पर भी अपनी दावेदारी पेश की है। उन्होंने कहा कि वह अभी भी NCP के साथ हैं और उन्हें पार्टी के अधिकतर विधायकों का समर्थन प्राप्त है। उन्होंने कहा, "हमने एक पार्टी के रूप में महाराष्ट्र सरकार में शामिल हुए हैं। NCP का नाम और चुनाव चिन्ह हमारे पास है और हम इसके साथ आगे सभी चुनाव लड़ेंगे।"
एकनाथ शिंदे ने पिछले साल खुद की थी बगावत
शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे ने जून, 2022 में 40 विधायकों के साथ तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत कर दी थी और इससे शिवसेना, NCP और कांग्रेस के गठबंधन वाली सरकार गिर गई थी। इसके बाद शिंदे ने अपने पक्ष के विधायकों के साथ भाजपा को समर्थन दे दिया था। शिंदे 30 जून को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए थे, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को उपमुख्यमंत्री का पद मिला था।
शिंदे गुट को मिल गया था शिवसेना का नाम और चिन्ह
शिंदे की बगावत के बाद शिवसेना उनके और उद्धव ठाकरे के दो गुटों में बंट गई थी। दोनों ही गुटों ने शिवसेना पर अपनी-अपनी दावेदारी पेश की थी और मामला चुनाव आयोग के पास पहुंच गया था। चुनाव आयोग ने शिंदे गुट के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उसे शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह 'तीर-कमान' दे दिया था। इस फैसले के बाद उद्धव के कारण भारी नुकसान उठाना पड़ा था और शिवसेना उनके हाथ से चली गई थी।