LOADING...
#NewsBytesExplainer: लोकसभा से SHANTI विधेयक पारित, परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी भागीदारी समेत क्या-क्या बदलेगा?
सरकार ने संसद में परमाणु ऊर्जा से जुड़ा अहम विधेयक पेश किया है

#NewsBytesExplainer: लोकसभा से SHANTI विधेयक पारित, परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी भागीदारी समेत क्या-क्या बदलेगा?

लेखन आबिद खान
Dec 17, 2025
05:53 pm

क्या है खबर?

संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा से नाभिकीय ऊर्जा का सतत दोहन तथा उन्नयन विधेयक, 2025 (SHANTI विधेयक) पारित हो गया है। विधेयक पर सदन में लंबी बहस हुई। इस विधेयक को देश के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में 1962 के बाद सबसे बड़ा सुधार लाने वाला कदम माना जा रहा है। विधेयक कानून बना तो परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में पहली बार निजी कंपनियों का प्रवेश होगा। आइए विधेयक से जुड़ी हर बात जानते हैं।

विधेयक

क्या है विधेयक?

ये विधेयक 2 पुराने कानूनों को एकीकृत करेगा। पहला- परमाणु उर्जा अधिनियम, 1962 और परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्त्व अधिनियम, 2010। इन कानूनों में संशोधन कर कंपनी की परिभाषा बदली गई है। यानी 2013 के कंपनी अधिनियम के तहत पंजीकृत किसी भी फर्म को लाइसेंस मिल सकेगा। अभी तक सिर्फ न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL), जो परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) के अधीन एक सरकारी कंपनी है, ही देश के सभी व्यावसायिक परमाणु रिएक्टरों को चलाती है।

उद्देश्य

विधेयक क्यों लाई सरकार?

सरकार के अनुसार, SHANTI विधेयक का मुख्य उद्देश्य नाभिकीय ऊर्जा के सुरक्षित और सतत उपयोग को बढ़ावा देना है। इसके जरिए न केवल विद्युत उत्पादन, बल्कि स्वास्थ्य, कृषि, जल शुद्धिकरण, उद्योग, पर्यावरण संरक्षण और वैज्ञानिक नवाचार जैसे क्षेत्रों में भी नाभिकीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाया जाएगा। सरकार ने यह भी कहा है कि इस विधेयक के जरिए 2047 तक भारत में 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता हासिल करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।

Advertisement

प्रावधान

विधेयक के बड़े प्रावधान जानिए

विधेयक के प्रमुख प्रावधानों में स्वतंत्र परमाणु सुरक्षा नियामक की स्थापना, दायित्व नियमों में संशोधन और विवाद निपटारे के लिए विशेष ट्रिब्यूनल का गठन शामिल हैं। इसके अलावा विधेयक के जरिए परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में 49 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को अनुमति दी जाएगी। परमाणु ऊर्जा राज्य मंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह ने कहा, "विधेयक का उद्देश्य परमाणु क्षति के लिए एक व्यावहारिक नागरिक दायित्व व्यवस्था बनाना और परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड को वैधानिक दर्जा प्रदान करना है।"

Advertisement

सरकार

सरकार का किन-किन क्षेत्रों पर नियंत्रण होगा?

विधेयक कानून बनने के बाद निजी कंपनियां जमीन, पानी, पूंजी और तकनीक देंगी और संयंत्रों के जरिए बनी बिजली की भी मालिक होंगी। हालांकि, रिएक्टर डिजाइन, निर्माण, संचालन, हैवी वाटर का उत्पादन, कचरे का निपटान और संवेदनशील सामग्री जैसे यूरेनियम के प्रबंधन का काम सरकार के पास ही होगा। ये काम अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के मानकों के अनुसार होंगे। हर घटना के लिए ऑपरेटर इंश्योरेंस को बढ़ाकर 1,500 करोड़ रुपये प्रति घटना किया जाएगा।

सुरक्षा

सुरक्षा को लेकर क्या-क्या प्रावधान हैं?

सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए एक स्वतंत्र परमाणु सुरक्षा नियामक बनाया जाएगा, जो वर्तमान के परमाणु ऊर्जा रेगुलेटरी बोर्ड को कानूनी दर्जा देगा। किसी परमाणु घटना में विवाद सुलझाने के लिए विशेष ट्रिब्यूनल बनेगा, जहां डैमेज क्लेम फाइल किए जा सकेंगे। इसके अलावा परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में रिसर्च और इनोवेशन में भी निजी कंपनियां हिस्सा ले सकेंगी। ऑपरेटरों को रिएक्टर के आकार के आधार पर 900 करोड़ से लेकर 2,900 करोड़ रुपये तक का बीमा कोष बनाए रखना होगा।

अहम

क्यों महत्वपूर्ण है विधेयक?

यह विधेयक भारत की जलवायु संबंधी प्रतिबद्धताओं को लेकर भी अहम है, जिसमें 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य और 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा क्षमता हासिल करने का लक्ष्य शामिल है। फिलहाल ये आंकड़ा लगभग 8.2 गीगावाट है। इस लक्ष्य को पाने के लिए जो राशि लगेगी, वो NPCIL जैसे सरकारी संगठन अकेले नहीं संभाल सकते। सरकार सौर उर्जा के क्षेत्र में पब्लिक-प्राइवेट साझेदारी (PPP) की सफलता से भी उत्साहित है।

Advertisement