भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग तरीके से बांधी जाती है साड़ी, जानिए 5 प्रमुख शैलियां
क्या है खबर?
साड़ी भारतीय महिलाओं का पसंदीदा परिधान है, जिसमें उनका सौंदर्य सबसे ज्यादा निखरता है। शिफॉन से लेकर सिल्क तक, देश में कई प्रकार की साड़ियां मिलती हैं। जैसे हर राज्य की अपनी खास साड़ी होती है, ठीक वैसे ही इसे बांधने के तरीके भी अलग-अलग होते हैं। आज के फैशन टिप्स में हम आपको साड़ी बांधने की 5 शैलियां बताएंगे। इन सभी की अपनी खासियत होती हैं और सभी एक अलग लुक देती हैं।
#1
सीधा पल्लू
साड़ी बांधने की सबसे मशहूर शैली में से एक है 'सीधा पल्लू', जो भारी साड़ियों की शोभा और भी बढ़ा देती है। यह शैली गुजरात से प्रचिलित हुई थी और अब लगभग हर राज्य की महिला को पसंद आती है। खास तौर से उम्रदराज महिलाएं इस तरह से साड़ी पहनना पसंद करती हैं। इसमें साड़ी के पल्लू को पीछे की ओर से घुमाते हुए दाहिने कंधे पर सीधा रखा जाता है। पल्लू को पिन लगाकर जगह पर रखा जाता है।
#2
आठपुरे
पश्चिम बंगाल की साड़ी पहनने की पारंपरिक शैली को 'आठपुरे' या '2-भाग' कहा जाता है। इसमें एक के बजाय 2 पल्लू लिए जाते हैं। इसमें साड़ी को 2 बार लपेटा जाता है और पल्लू को पीछे से सामने की ओर लाया जाता है। इसके लिए साड़ी को पेटीकोट में टक करें और पल्लू के लिए लंबा हिस्सा छोड़ दें। साड़ी को कमर पर 2 बार लपेटें और पल्लू को दोनों कंधों पर पीछे से सामने की ओर ले आएं।
#3
निवी
आम तौर पर महिलाएं जिस तरह से साड़ी बांधती हैं उसे ही 'निवी' कहा जाता है। पारंपरिक रूप से आंध्र प्रदेश की महिलाएं इस शैली से साड़ी बांधती हैं। महिलाएं इस शैली में साड़ी बांधना इसलिए पसंद करती हैं, क्योंकि यह आसान होती है। इसमें साड़ी का एक सिरा कमर पर पेटीकोट में टक किया जाता है। बाकी कपड़े की प्लीट बनाकर आगे की ओर टक की जाती हैं और बाएं कंधे पर उल्टा पल्लू लिया जाता है।
#4
नौवारी
'नौवारी' साड़ी महाराष्ट्र की पारंपरिक साड़ी है, जो साड़ी बांधने की एक शैली भी है। यह एक पारंपरिक पहनावा है, जिसका मतलब '9 गज' होता है। इसे बांधने के लिए साड़ी के एक सिरे को कमर पर लपेटकर टक करें। कपड़े को पैरों के बीच से निकालकर पीछे की ओर ले जाएं और टक करें। अब बचे हुए कपड़े की प्लीट बनाएं और उन्हें आगे की तरफ टक करें। अंत में कंधे पर पल्लू लेकर पिन से सुरक्षित कर लें।
#5
कूर्गी
कर्नाटक में जिस तरीके से साड़ी पहनी जाती है, उसे 'कूर्गी' या 'कोडागु' कहा जाता है। इसमें प्लीट बनाकर उन्हें कमर के पीछे की ओर टक किया जाता है। इसके बाद पल्लू को पीछे से सामने की ओर लाया जाता है और बाएं कंधे पर रखा जाता है। इस शैली का नाम 'कूर्गी' इसलिए भी पड़ा, क्योंकि इसे खास तौर से कूर्ग की महिलाएं पहनती हैं। इस शैली की खासियत यह है कि यह बहुत सुविधाजनक होती है।