LOADING...
भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा है साड़ी, यहां जानिए इसका संक्षिप्त इतिहास
साड़ी का इतिहास

भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा है साड़ी, यहां जानिए इसका संक्षिप्त इतिहास

लेखन सयाली
Aug 15, 2025
05:08 pm

क्या है खबर?

साड़ी भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा है। यह केवल एक पारंपरिक परिधान नहीं है, बल्कि इसकी अपनी एक समृद्ध और रोचक कहानी भी है। साड़ी का इतिहास हजारों साल पुराना है और यह अलग-अलग प्रकार की कढ़ाई और बुनाई तकनीकों से बनाई जाती है। आज के फैशन टिप्स में हम साड़ी के इतिहास पर नजर डालेंगे और जानेंगे कि कैसे यह भारतीय महिलाओं की सबसे पसंदीदा पोषक बन गई।

#1

प्राचीन काल में साड़ी

प्राचीन काल में महिलाएं बिना ब्लॉउज या पेटीकोट के साड़ी पहना करती थीं। उस समय वे एक लंबे कपड़े को ही लपेटकर तन ढका करती थीं। माना जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता (लगभग 2500-1500 ईसा पूर्व) में महिलाएं लंबे कपड़े को अलग-अलग तरह से लपेटती थीं और उन्हें गांठ लगाकर बांध लेती थीं। यह पहनावा सरल और आरामदायक था, जिसमें महिलाएं आसानी से काम कर सकती थीं। इस समय साड़ी स्थानीय संसाधनों और संस्कृति पर निर्भर करती थी।

#2

मध्यकालीन भारत में साड़ी का विकास

मध्यकालीन भारत (लगभग 1200-1700 ईस्वी) में साड़ी ने नया रूप लिया। इस समय इस परिधान में अलग-अलग प्रकार की कढ़ाई और बुनाई तकनीकों का उपयोग किया जाने लगा। इस समय मुगलों ने भी साड़ियों पर ध्यान दिया और उन्हें और सुंदर बनाने के लिए जरी की कारीगरी का सहारा लिया। इस दौरान बनारसी, कांजीवरम, तांबरम और मणिपुरी जैसी अलग-अलग प्रकार की साड़ियों का प्रचलन बढ़ा। इन साड़ियों की खासियत उनकी गुणवत्ता और सुंदरता थी।

#3

अंग्रेजी हुकूमत के दौरान साड़ी का परिवर्तन

अंग्रेजी हुकूमत (लगभग 1858-1947 ईस्वी) के दौरान भारतीय महिलाएं पश्चिमी परिधानों से प्रभावित हुईं और उनकी पोशाक शैली में बदलाव आया। इस समय पेटीकोट और ब्लॉउज पहनने का चलन आया, जिससे यह ज्यादा आरामदायक हो गई। इसके अलावा, स्वतंत्रता संग्राम के दौरान साड़ी ने राष्ट्रीयता की भावना को दर्शाने में अहम भूमिका निभाई। महिलाएं खादी की साड़ियां पहनकर स्वदेशी आंदोलन में भाग लेती थीं, जिससे यह पोशाक राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक बन गई।

#4

आधुनिक युग में साड़ी की लोकप्रियता

भारत की स्वतंत्रता के बाद साड़ी ने आधुनिक युग में कदम रखा और इसमें नए फैशन ट्रेंड जुड़ने लगे। फिल्म उद्योग ने भी इस पोशाक को लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाई, जहां अभिनेत्रियां अलग-अलग प्रकार की साड़ियों में नजर आने लगीं। आजकल बाजार में कई प्रकार की मशीनों से बनी हुई साड़ियों का प्रचलन बढ़ा है, जो कम समय में तैयार होती हैं। इसके बावजूद हाथ से बनी पारंपरिक साड़ियों की मांग आज भी बनी हुई है।

#5

वैश्विक स्तर पर साड़ी की प्रसिद्धि

आजकल साड़ी न केवल भारत, बल्कि विदेशों में भी पहनी जाने लगी है। भारतीय प्रवासी महिलाओं ने इसे वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध किया, जिससे यह अंतरराष्ट्रीय फैशन का हिस्सा बन गई। बनारसी, कांजीवरम और शिफॉन आदि जैसी अलग-अलग प्रकार की साड़ियों ने अपनी अलग पहचान बनाई है। साड़ी का इतिहास भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत को दर्शाता है और आने वाली पीढ़ियों को अपनी पारंपरिक जड़ों से जोड़े रखता है।