आर्टिफिशियल टैनिंग करवाने से बढ़ जाता है मेलेनोमा का खतरा, अध्ययन में हुआ खुलासा
क्या है खबर?
पश्चिमी देशों की तरह कई भारतीय लोगों को भी टैनिंग करवाने का शौक होने लगा है। आम तौर पर इसके लिए तेज धूप में बैठा जाता है, लेकिन अब इंडोर टैनिंग भी लोकप्रिय हो गई है। इसमें मशीन आदि की मदद से त्वचा के रंग को अस्थायी रूप से गहरा करना शामिल होता है। अब एक अध्ययन ने इसके जोखिम को उजागर किया है। दरअसल, इंडोर टैनिंग से मेलेनोमा यानि त्वचा के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
अध्ययन
इंडोर टैनिंग और मेलानोमा के बीच पाए गए संबंध
यह अध्ययन 'साइंस एडवांसेज' नाम की पत्रिका में प्रकाशित किया गया था। इसमें इंडोर टैनिंग और मेलानोमा के बढ़ते जोखिम के बीच संबंध को उजागर करने वाले सबूत मिले हैं। इसके दौरान उन लोगों की जांच की गई थी, जिन्होनें अपने जीवन में कई बार इंडोर टैनिंग करवाई है। इनमें से ज्यादातर लोगों ने टैनिंग वाले बिस्तर पर लेटकर यह प्रक्रिया करवाई थी। आइए जांच और नतीजों को विस्तार से समझते हैं।
जांच
2 तरह की जांच करके पूरा हुआ अध्ययन
इस अध्ययन में 2 मुख्य जांच शामिल थीं। इसमें से एक बड़े पैमाने पर किया गया एपिडेमियोलॉजिकल एनालिसिस था और दूसरी हाई-रिजॉल्यूशन मेलानोसाइट जीनोमिक सीक्वेंसिंग थी। एपिडेमियोलॉजिकल का डाटा नॉर्थवेस्टर्न मेडिसिन के डर्मेटोलॉजी डिपार्टमेंट से लिया गया था। इनमें 2,932 ऐसे मरीजों का रिकॉर्ड था, जिन्होनें जीवन में कई बार टैनिंग बेड का इस्तेमाल किया था। साथ ही 2,925 ऐसे लोगों का भी समूह बनाया गया, जिन्होनें कभी इसका इस्तेमाल नहीं किया था।
दूसरा परीक्षण
इस तरह की गई दूसरी जांच
इस जांच से शोधकर्ताओं को शरीर के अलग-अलग हिस्सों में मेलानोमा का पता लगाने और इनडोर टैनिंग से जुड़े मेलानोमा के जोखिम का अनुमान लगाने में मदद मिली। जेनेटिक सीक्वेंसिंग का डाटा 11 लोगों की ऊपरी और निचली पीठ से बिना ट्यूमर वाली त्वचा की बायोप्सी निकालकर प्राप्त किया गया। ये लोग बहुत ज्यादा टैनिंग बेड इस्तेमाल करते थे। इन आंकड़ों की तुलना 2 समूहों से की गई, जिनमें त्वचा के कैंसर के मरीज थे और आम लोग शामिल थे।
परिणाम
क्या रहे पहली जांच के नतीजे?
एनालिसिस से आर्टिफिशियल UV एक्सपोजर के नकारात्मक प्रभाव सामने आए। टैनिंग बेड इस्तेमाल करने वालों में शरीर के उन हिस्सों पर मेलानोमा होने की संभावना काफी ज्यादा यानि 76.1 प्रतिशत थी, जहां आमतौर पर सूरज की रोशनी कम पड़ती है। वहीं, टैनिंग बेड का इस्तेमाल न करने वालों में यह संभावना 61.2 यानि काफी कम थी। जिन लोगों ने पहले इंडोर टैनिंग करवाई है, उनमें मल्टीपल प्राइमरी मेलानोमा होने की संभावना भी ज्यादा होती है।
नतीजे
दूसरी जांच के नतीजे भी थे भयावय
जेनेटिक सीक्वेंसिंग से भी टैनिंग बेड इस्तेमाल करने वालों और न करने वालों के बीच बड़े अंतर सामने आए। टैनिंग बेड इस्तेमाल करने वालों के मेलानोसाइट्स में कुल मिलाकर ज्यादा बदलाव शामिल थे, जिसमें कंट्रोल के 2.86 म्यूटेशन प्रति मेगाबेस DNA की तुलना में 5.69 म्यूटेशन प्रति मेगाबेस DNA थे। इससे इस बात की पुष्टि हुई है कि टैनिंग बेड त्वचा के उन हिस्सों को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जो आमतौर पर धूप से सुरक्षित रहते हैं।