दुर्गा पूजा के दौरान महिलाओं को पहननी चाहिए ये पारंपरिक बंगाली साड़ियां, लगेंगी बहुत ही खूबसूरत
भारत के सबसे बड़े त्योहारों में से एक पांच दिवसीय दुर्गा पूजा का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह मां दुर्गा को समर्पित उत्सव है। इस मौके पर अगर महिलाएं अपने स्टाइल में बंगाली टच देना चाहती हैं तो वह पारंपरिक साड़ियां पहन सकती हैं। इन साड़ियों को दुर्गा पूजा के दौरान पहनना शुभ माना जाता है और इनमें आप खूबसूरत भी दिखेंगी। आइए हम आपको पांच पारंपरिक बंगाली साड़ियां के बारे में बताते हैं।
ढाकाई जामदानी साड़ी
बंगाली महिलाओं की पसंदीदा साड़ियों में से एक ढाकाई जामदानी साड़ी हल्की और पहनने में आसान होती है। इन साड़ियों के डिजाइन के कारण इनकी बुनाई काफी मुश्किल होती है और इन्हें बनाने में भी काफी समय लगता है। इनमें आमतौर पर 'पन्ना हजार' के डिजाइन होते हैं। इसका मतलब एक हजार पन्ना हो, जो मुख्य रूप से नाजुक फूलों के पैटर्न होते हैं। ढाकाई साड़ियों को सोने-चांदी के धागों समेत रेशम-सूती के मिश्रण वाले धागों से बुना जाता है।
बालूचरी साड़ी
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के बालूचर गांव में बनने वाली बालूचरी साड़ियां रेशमी साड़ियां होती हैं जो आमतौर पर शुद्ध रेशम या टसर से बनी होती हैं। ऐसा माना जाता है कि 18वीं शताब्दी में बंगाल के पहले नवाब मुर्शीद कुली खान ने बालूचरी शैली की शुरुआत की थी। बालचूरी साड़ियों के बॉर्डर और पल्लू पर चित्रित लोककथाएं इन्हें और भी स्टाइलिश बनाती हैं। इस कारण इनकी मांग अधिक रहती है।
तांत साड़ी
अगर आप किसी दुर्गा पूजा पंडाल में जाने का प्लान बना रही हैं तो उस दौरान तांत साड़ी पहनना आपके लिए ज्यादा सही होगा। यह साड़ी हल्की और आरामदायक होती है और इन्हें पहनकर घूमना-फिरना आपके लिए आसान हो सकता है, लेकिन इसे पहनने से पहले एक बार प्रेस जरूर करें। आप चाहें तो विजयादशमी वाले दिन पर सिंदूर खेला के लिए एक क्लासिक लाल और सफेद तांत साड़ी भी चुन सकती हैं।
कांथा कढ़ाई वाली साड़ी
बंगाल की इस पारंपरिक साड़ी में विदेशी कढ़ाई, कठिन धागे वाले पैटर्न और यूनिक डिजाइन होते हैं। कांथा कढ़ाई की साड़ियां बनाते समय विभिन्न धागों का इस्तेमाल किया जाता है और इस साड़ी का फैब्रिक रेशम और कपास का मिश्रण होता है। इन साड़ियों के डिजाइन और रूपांकन बंगाल में ग्रामीण महिलाओं के महत्व, संस्कृति और लोककथाओं को दर्शाते हैं।
मुर्शिदाबाद सिल्क साड़ी
नवाबों के समय से लोकप्रिय मुर्शिदाबाद सिल्क की साड़ियां हल्की और आरामदायक होती हैं और बाटिक प्रिंट जैसे रंगीन डिजाइनों में हाथ से बुनी जाती हैं। इस साड़ी को आप महाषष्ठी या महासप्तमी को दौरान पहनकर दुर्गा पूजा पंडाल जा सकती हैं। इन साड़ियों पर बने डिजाइन 18वीं शताब्दी के शाही जीवन के थीम को दर्शाते हैं। आमतौर पर इन साड़ियों पर बनने वाले रंगीन पैटर्न कलाकार अपने हाथों से बनाते हैं।