नवरात्रि और दुर्गा पूजा: मां दुर्गा को समर्पित इन त्योहारों के बीच क्या-क्या अंतर हैं?
14 अक्टूबर को 16 दिवसीय पितृ पक्ष के समापन के बाद मां दुर्गा को समर्पित त्योहारों की शुरूआत हो चुकी है। 9 दिवसीय नवरात्रि 15 अक्टूबर से शुरू हो चुकी हैं, जो उत्तर और पश्चिमी भारत में मनाई जाती हैं, जबकि पश्चिम बंगाल और अन्य पूर्वी राज्यों में मनाया जाने वाला दुर्गा पूजा का उत्सव 20 अक्टूबर से शुरू होगा। क्या आपने कभी सोचा है कि नवरात्रि और दुर्गा पूजा अलग-अलग क्यों मनाई जाती हैं? आइए जानते हैं।
किस-किस की जाती है पूजा?
नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम अवतार शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इसके बाद ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री माता की पूजा अलग-अलग दिनों में की जाती है। दूसरी ओर दुर्गा पूजा की शुरुआत महालया से होती है। यह वह दिन है जब मां दुर्गा और महिषासुर के बीच युद्ध शुरू हुआ था और 9 दिनों के बाद महिषासुर का वध करके बुराई पर अच्छाई की विजय की प्रतीक बनीं।
नवरात्रि और दुर्गा पूजा की अवधि में भी है अंतर
दुर्गा पूजा और नवरात्रि की अवधि में भी एक बड़ा अंतर है। जहां नवरात्रि 9 दिनों तक मनाई जाती है, वहीं दुर्गा पूजा का त्योहार 5 दिनों का होता है। इस साल नवरात्रि 15 अक्टूबर से लेकर 24 अक्टूबर को समाप्त होगी, जबकि दुर्गा पूजा 20 अक्टूबर को शुरू होगी और 24 अक्टूबर को समाप्त होगी। इन दोनों त्योहारों के कारण देशभर में उत्सव का माहौल रहता है।
दोनों त्योहारों के खान-पान में भी अंतर
दोनों त्योहारों के खान-पान में भी एक बहुत बड़ा अंतर है। नवरात्रि के दौरान भक्त उपवास रखते हैं और 9 दिनों तक अंडे, मांस, प्याज और लहसुन खाना बंद कर देते हैं, लेकिन दुर्गा पूजा के दौरान लोग बंगाली मांसाहारी व्यंजनों का आनंद लेते हैं। अगर आप मांसाहारी व्यंजनों से परहेज करते हैं तो दुर्गा पूजा के दौरान इन शाकाहारी बंगाली व्यंजनों को ट्राई करें।
त्योहारों के समापन के तरीके में भी अंतर
नवरात्रि का अंत दशहरे के साथ होता है और त्योहार को 9 दिनों के बाद दशमी पर रावण का पुतला जलाया जाता है। दूसरी ओर दुर्गा पूजा का समापन 'सिंदूर खेल' के साथ होता है, जिसमें विवाहित महिलाएं देवी दुर्गा की मूर्ति को विसर्जित करने से पहले एक-दूसरे पर सिंदूर लगाती हैं। मां दुर्गा की मूर्ति विसर्जन के दौरान भक्त एकत्रित होते हैं और ढोल की थाप पर नृत्य करते हैं।