संगीत की दुनिया में था इन प्राचीन वाद्य यंत्रों का बोलबाला, कम हो गई इनकी लोकप्रियता
क्या है खबर?
सितार और तबले से पहले भारत रावणहत्था और सुरबहार की मधुर ध्वनियों से गूंजता था। हमारे देश में एक नहीं, बल्कि कई ऐसे वाद्य यंत्र हुआ करते थे, जो गानों के स्वरों को निखार देते थे।
ये सभी यंत्र अपने समय में बेहद प्रसिद्ध हुआ करते थे और समय के साथ-साथ उनकी लोकप्रियता कम होती चली गई।
आइए आज के लेख में ऐसे ही कुछ वाद्य यंत्रों के बारे में जानते हैं और उनकी खूबियों पर चर्चा करते हैं।
#1
रावण हत्था
रावण हत्था राजस्थान और गुजरात का एक पारंपरिक वाद्य यंत्र है, जिसे तार की मदद से बजाया जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसे रामायण के दौरान रावण ने ही बनाया था। यह वाद्य यंत्र बिलकुल वायलिन जैसा होता है और इसे तारों पर घोड़े के बाल से बने धनुष को रगड़कर बजाया जाता है।
रावण हत्था विभिन्न प्रकार की सामग्रियों से बनाया जा सकता है, जिनमें नारियल, बांस और स्टील शामिल हैं।
#2
सुरबहार
सुरबहार एक तार वाला वाद्य यंत्र है, जिसे कुछ लोग बास सितार भी कहते हैं। इसे 1825 में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बनाया गया था और इसके निर्माता का नाम गुलाम मुहम्मद खान था।
यह वाद्य यंत्र सितार जैसा ही दिखता है और आकार में उससे बड़ा होता है। इसकी मदद से एक गहरी ध्वनि पैदा होती है, जो अलाप और भावनात्मक गीतों को और मधुर बना देती है।
#3
रूद्र वीणा
हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ध्रुपद शैली में रूद्र वीणा नाम का वाद्य यंत्र इस्तेमाल किया जाता है। इसका ताल्लुक प्राचीन वैदिक काल से है और इसे सबसे प्राचीन वीणाओं में से एक माना जाता है।
रुद्र वीणा को दाहिने हाथ की उंगली में पहने गए 2 नाड़ीचक्रों से बजाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, यह वाद्य यंत्र भगवान शिव से जुड़ा हुआ है।
कई लोग यह भी मानते हैं कि इसका निर्माण रावण द्वारा करवाया गया था।
#4
पेना
एक हजार साल से भी ज्यादा पुराना पेना वाद्य यंत्र मणिपुर की संस्कृति का अहम हिस्सा रहा है। यह इस जगह की धार्मिक और लोक परंपराओं को बखूबी दर्शाता है।
पेना का उपयोग मुख्य रूप से लाई हराओबा उत्सव में किया जाता है, जो कि मैतेई संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
यह केवल एक तार वाला वाद्य यंत्र होता है, जिसे धनुष की मदद से बजाय जाता है। इसको बजाने की कला अब धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है।