आधुनिक भारतीय कला के जनक राजा रवि वर्मा के जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
क्या है खबर?
भारत में कई महान पेंटर हुए, लेकिन राजा रवि वर्मा को आधुनिक भारतीय कला के जनक का दर्जा दिया गया।
इसका कारण यह है कि उन्होंने भारतीय और यूरोपीय सौंदर्यशास्त्र को मिश्रित करने वाली नई तकनीकों को ईजाद करके भारतीय कला में क्रांतिकारी बदलाव किए थे।
उन्होंने हिंदू देवी-देवताओं की छविओं को इतनी कुशलता से कैनवास पर उकेरा कि उनकी कल्पना को ही उनके असली चेहरे माना जाने लगा।
आइए आज उनके जीवन से जुड़े कुछ तथ्य जानते हैं।
शिक्षा
वर्मा ने कैसे सीखी थी पेंटिंग की कला?
वर्मा का जन्म 29 अप्रैल, 1848 को केरल के किलिमानूर गांव में हुआ था। उन्होंने पेंटिंग की कला खुद ही सीखी थी, जिसके लिए वे कला से जुड़ी किताबें पढ़ते थे और यूरोपीय कलाकारों को पेंटिंग करते हुए देखा करते थे।
उस समय रामास्वामी नायकर एकमात्र कलाकार थे, जिन्हें आयल पेंटिंग आती थी। वर्मा को प्रतिद्वंद्वी समझते हुए नायकर ने उन्हें सिखाने से मना कर दिया था।
नायकर के छात्र अरुमुगम पिल्लई ने वर्मा को इसकी बारीकियां सिखाई थीं।
भगवान
भारतीय देवी-देवताओं को दिया था उनका वर्तमान रूप
हम सभी भगवान के जिन चित्रों को पूजते हैं, उनकी रचना और किसी ने नहीं, बल्कि वर्मा ने ही की थी। उन्होंने देवी-देवताओं को इंसानों के रूप में पेंट किया और उन्हें उनके वर्तमान चेहरे दिए।
उनकी रचनात्मकता और कल्पना के जरिए उन्होंने यह कमाल कर दिखाया। उनकी पेंटिंग्स में भगवान आम लोगों की तरह दिखाई देते थे और इंसानों के बीच बैठे हुए नजर आते थे।
यही रचनाएं आज हम सभी के मंदिरों में विराजमान नजर आती हैं।
उपलब्धियां
वर्मा को कहा जाता है कैसर-ए-हिंद
वर्मा ने कई रिकॉर्ड बनाए और भारतीय कला में उनके योगदान के लिए उन्हें कई बार सम्मानित किया गया।
उनकी 'हंस दमयंती' नामक पेंटिंग ने 1873 में वियना प्रदर्शनी में प्रथम पुरस्कार जीता था। कला क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें 1904 में ब्रिटिश सरकार द्वारा कैसर-ए-हिंद स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था।
वह पहले भारतीय कलाकार थे, जिनकी पेंटिंग्स यूरोप में प्रदर्शित की गईं थीं। वह लंदन की रॉयल एकेडमी ऑफ आर्ट्स के सदस्य भी थे।
जर्मनी
पेंटिंग्स को संरक्षित रखने के लिए मिलाया था जर्मनी की कंपनी से हाथ
अपनी आयल पेंटिंग की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए वर्मा ने जर्मनी के मास्टर प्रिंटर्स के साथ साझेदारी की थी।
उन्होंने एफजी नीड़नेर एंड कंपनी के साथ मिलकर काम किया, जो क्रोमोलिथोग्राफी में विशेषज्ञता रखने वाली एक कंपनी है। यह एक प्रिंटिंग तकनीक होती है, जिसके जरिए रंग उभरकर नजर आते हैं।
इस कंपनी ने वर्मा की आयल पेंटिंग के रंगों को निखारने के काम किया, जिससे उनकी कलाकृतियों की अखंडता और सार को संरक्षित किया जा सका।
फोटोग्राफी
फोटोग्राफी करने का शौक भी रखते थे वर्मा
वर्मा ने केवल एक शानदार पेंटर थे, बल्कि वह एक बेहतरीन फोटोग्राफर भी थे। उन्होंने मुंबई शहर में अपना खुद का फोटोग्राफी स्टूडियो भी स्थापित किया था।
वह भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रेमी भी हुआ करते थे। वह अक्सर कई संगीतकारों को अपने महल में प्रदर्शन करने के लिए आमंत्रित किया करते थे।
भारत के महानतम कलाकारों में से एक के रूप में उनकी विरासत आज भी लोगों को प्रेरित करती है।