महुआ मोइत्रा के खिलाफ जांच कर रही आचार समिति क्या है और कैसे काम करती है?
क्या है खबर?
तृणमूल कांग्रेस (TMC) की सांसद महुआ मोइत्रा पर लोकसभा में सवाल पूछने के बदले रिश्वत लेने का आरोप लगा है। इस पूरे मामले की जांच लोकसभा की आचार समिति कर रही है।
2 नवंबर को आचार समिति ने महुआ को पूछताछ के लिए बुलाया था, लेकिन महुआ बैठक को बीच में छोड़कर ही चली गईं। उन्होंने समिति पर निजी और अनैतिक सवाल पूछने के आरोप लगाए।
आइए समझते हैं कि आचार समिति क्या होती है और इसका इतिहास क्या है।
इतिहास
कब बनाई गई थी आचार समिति?
आचार समिति की स्थापना का मूल विचार सितंबर, 1992 में दिल्ली में आयोजित पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में सामने आया था।
इसके बाद 4 मार्च, 1997 को राज्यसभा और 16 मई, 2000 को लोकसभा की आचार समिति का गठन हुआ।
लोकसभा की आचार समिति का गठन करने से पहले विशेषाधिकार समिति के एक समूह ने विधायकों के आचरण और नैतिकता से जुड़े तौर-तरीकों को देखने के लिए 1997 में ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका का दौरा किया था।
काम
आचार समिति क्या काम करती है?
आचार समिति का मुख्य काम सांसदों के नैतिक आचरण की निगरानी करना है। ये समिति सांसदों के अनैतिक आचरण से संबंधित शिकायतों की जांच करती है।
आसान भाषा में समझें तो समिति का काम संसद में अनुशासन और मर्यादा बनाए रखने का है।
इसके अलावा समिति का काम संसद में नैतिक आचरण को लेकर आचार संहिता बनाना और समय-समय पर इसमें संशोधन करना भी है।
इस मामले से पहले आचार समिति की आखिरी बैठक 27 जुलाई, 2021 को हुई थी।
समिति
क्या लोकसभा और राज्यसभा की आचार समिति अलग-अलग होती हैं?
इस सवाल का जवाब हां में है। राज्यसभा की आचार समिति में 10 सदस्य होते हैं, जिनका चुनाव सभापति द्वारा किया जाता है।
दूसरी ओर लोकसभा की आचार समिति में 15 सदस्य होते हैं, जिनका कार्यकाल एक वर्ष का होता है। समिति के सदस्यों का चुनाव लोकसभा अध्यक्ष द्वारा किया जाता है।
लोकसभा की आचार समिति को 2015 में सदन का स्थायी हिस्सा बनाया गया था।
इसके अलावा राज्यों की विधानसभाओं में भी आचार समिति होती है।
सदस्य
अभी कौन हैं आचार समिति के सदस्य?
वर्तमान में लोकसभा की आचार समिति के अध्यक्ष भाजपा के विनोद कुमार सोनकर हैं। इसके अन्य सदस्यों में भाजपा के विष्णु दत्त शर्मा, सुमेधानंद सरस्वती, अपराजिता सारंगी, राजदीप रॉय, सुनीता दुग्गल और सुभाष भामरे शामिल हैं।
इसके अलावा कांग्रेस के वी वैथिलिंगम, एन उत्तम कुमार रेड्डी, बालाशोवरी वल्लभनेनी और परनीत कौर, शिवसेना के हेमंत गोडसे, जनता दल यूनाइटेड (JDU) के गिरिधारी यादव, CPI(M) के पीआर नटराजन और बहुजन समाज पार्टी (BSP) के दानिश अली भी इसके सदस्य हैं।
शिकायत
समिति को कौन कर सकता है शिकायत?
आचार समिति से सांसदों के अनैतिक व्यव्यहार या आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत अन्य सांसदों से लेकर एक आम व्यक्ति तक कर सकता है।
हालांकि, आम व्यक्ति को अपनी शिकायत किसी सांसद के जरिए करनी होगी।
आम व्यक्ति एक हलफनामे में सारे सबूतों के साथ शिकायत कर सकता है। संसद सदस्य सीधे शिकायत कर सकते हैं।
समिति स्वत: संज्ञान लेते हुए भी किसी मामले को उठा सकती है।
तरीका
कैसे की जा सकती है शिकायत?
कोई भी शिकायत आचार समिति को या उसके किसी अधिकारी को लिखित रूप में भेजी जाती है। ये शिकायत संयमित भाषा में और तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए।
शिकायतकर्ता को आरोपों को सिद्ध करने के लिए सबूत भी पेश करने होते हैं। शिकायतकर्ता अगर चाहे तो समिति से अपना नाम गुप्त रखने का अनुरोध कर सकता है।
मीडिया रिपोर्ट और कोर्ट में विचाराधीन मामलों पर सुनवाई नहीं की जाती है। समिति झूठी शिकायत करने पर कार्यवाही भी कर सकती है।
कार्रवाई
दोषी पाए जाने पर क्या कार्रवाई करती है समिति?
किसी भी शिकायत पर समिति प्रारंभिक जांच करती है और पता करती है कि मामला सुनवाई लायक है या नहीं। अगर मामला सुनवाई लायक है तो आगे की जांच होती है और समिति अपनी सिफारिश प्रस्तुत करती है।
समिति के अध्यक्ष इन सिफारिशों को सदन के पटल पर पेश कर सकते हैं। अगर समिति किसी सांसद को दोषी पाती है तो उसकी निंदा या भर्त्सना कर सकती है।
इसके अलावा सांसद को सदन से निलंबित भी किया जा सकता है।
अन्य मामला
क्या पहले भी कभी आया है पैसे लेकर सवाल पूछने का मामला?
दिसंबर, 2005 में पैसे लेकर सवाल पूछने के आरोप में 10 लोकसभा सांसद और एक राज्यसभा सांसद निलंबित कर दिए गए थे।
तब समाचार वेबसाइट कोबरापोस्ट के एक स्टिंग ऑपरेशन में 11 सांसदों को संसद में सवाल पूछने के बदले नकदी लेते दिखाया गया था।
इसके बाद समिति की सिफारिश के आधार पर इन सांसदों के खिलाफ सदन में प्रस्ताव लाया गया था और उन्हें निलंबित कर दिया गया था।