
क्या होते हैं ग्रीन पटाखे और ये पारंपरिक पटाखों से कितने अलग?
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-NCR में दिवाली पर ग्रीन पटाखे चलाने की अनुमति दे दी है। दीवाली पर लोग 18 से 21 अक्टूबर तक सुबह 6 से 7 बजे तक और रात में 8 से 10 बजे तक ग्रीन पटाखे फोड़ सकेंगे। कोर्ट ने कहा कि यह फैसला पर्यावरण और त्योहारों के संतुलन को बनाए रखने के लिए लिया गया है। आइए जानते हैं कि ग्रीन पटाखे क्या होते हैं।
ग्रीन पटाखे
क्या होते हैं ग्रीन पटाखे?
ग्रीन पटाखे ऐसे पटाखे होते हैं, जो पारंपरिक पटाखों की तुलना में पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाते हैं। इनमें एल्युमिनियम, पोटेशियम नाइट्रेट और सल्फर जैसे हानिकारक रसायन या तो बहुत कम मात्रा में होते हैं या बिल्कुल नहीं होते हैं। राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (NEERI) ने ग्रीन पटाखों की खोज की है। इन पटाखों को जलाने पर 40 से 50 प्रतिशत तक कम हानिकारक गैस पैदा होती हैं, जो पर्यावरण के लिए ज्यादा सुरक्षित है।
बेरियम
ग्रीन पटाखों में कम होते हैं हानिकारक केमिकल
NEERI के मुताबिक, पारंपरिक पटाखे बनाने में बेरियम का इस्तेमाल होता है। इसकी वजह से भारी मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फर जैसी हानिकारक गैसें निकलती हैं। वहीं, ग्रीन पटाखों में बेरियम नहीं होता है। NEERI ने 4 फॉर्मूलों से ग्रीन पटाखे बनाए हैं। इनमें पानी से बनने वाले पटाखे, कम हानिकारक गैस उत्सर्जित करने वाले पटाखे, न्यून एल्यूनियम वाले पटाखे और जलने के बाद खुशबू फैलाने वाले पटाखे शामिल हैं।
अंतर
पारंपरिक पटाखों से कितने अलग होते हैं ग्रीन पटाखे?
पारंपरिक पटाखे काले पाउडर, क्लोरेट्स और परक्लोरेट्स से बने होते हैं। सामान्य पटाखे 160 डेसीबल तक शोर करते हैं, वहीं ग्रीन पटाखों की आवाज 110 से 125 डेसीबल तक ही होती है। यानी आम पटाखों के मुकाबले ग्रीन पटाखों से वायु और ध्वनि प्रदूषण दोनों कम होते हैं। ग्रीन पटाखे सिर्फ प्रमाणित विक्रेताओं के पास ही मिलते हैं। इन पर 'ग्रीन क्रैकर' लेबल, CSIR-NEERI का सर्टिफिकेट और QR कोड होता है।
शर्तें
सुप्रीम कोर्ट ने किन शर्तों के साथ दी है पटाखे चलाने की अनुमति?
कोर्ट ने कहा कि गश्ती दल ग्रीन पटाखे बनाने वाले हर पटाखा निर्माताओं की नियमित जांच करेगा। NCR में बाहरी क्षेत्रों से पटाखे लाने की अनुमति नहीं होगी। अगर नकली पटाखे पाए जाते हैं, तो निर्माता का लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) 18 अक्टूबर से वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) की निगरानी करेंगे और इसकी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करेंगे। पानी के सैंपल भी लिए जाएंगे।