
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- राज्यपाल विधेयकों को लंबित नहीं रख सकते, राज्यों ने भी उठाए सवाल
क्या है खबर?
विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति और राज्यपाल की मंजूरी की समयसीमा तय करने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में लगातार 7वें दिन सुनवाई हुई। इस दौरान 3 विपक्ष शासित राज्यों ने कहा कि कानून बनाना विधायिका का काम है और राज्यपालों का इसमें कोई अधिकार नहीं है। पश्चिम बंगाल सरकार ने कोर्ट में कहा कि विधेयकों की विधायी क्षमता की जांच राज्यपाल नहीं कर सकते। वहीं, कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते।
पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल ने कहा- राज्यपाल को विधेयक रोकने का अधिकार नहीं
पश्चिम बंगाल के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि विधानसभा से पारित विधेयक को राज्यपाल को मंजूर करना ही होगी। उन्होंने कहा, "केवल केंद्र के पास राज्य के कानून को रद्द करने का अधिकार है वरना इसे कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। लोगों की इच्छा का सम्मान किया जाना चाहिए। विधेयक को लगातार रोके रखना संविधान की भावना के खिलाफ है। अगर राज्यपाल अपनी मर्जी से विधेयक पर हस्ताक्षर न करें तो यह लोकतंत्र को असंभव बना देगा।"
हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश के वकील बोले- कानून बनाने में राज्यपाल की कोई भूमिका नहीं
हिमाचल प्रदेश के वकील आनंद शर्मा ने तर्क दिया कि राष्ट्रपति या राज्यपाल की कानून बनाने में कोई भूमिका नहीं होती और जब वे संसद में आते हैं, तब भी अध्यक्षता नहीं करते। उन्होंने कहा, "संसद को बुलाने का प्रस्ताव भी संसदीय कार्य मंत्री से शुरू होता है। इसलिए संसद/विधानसभा को बुलाने के लिए भी राष्ट्रपति या राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह लेने के लिए बाध्य हैं। राज्यपालों द्वारा राज्य विधेयकों को रोके रखने से टकराव पैदा होता है।"
भाजपा
भाजपा शासित राज्यों ने क्या दलीलें दीं?
भाजपा शासित राज्यों ने विधेयकों को मंजूरी देने में राज्यपालों और राष्ट्रपति की स्वायत्तता का बचाव करते हुए कहा कि किसी कानून को मंजूरी कोर्ट द्वारा नहीं दी जा सकती। इन राज्यों ने ये भी कहा कि न्यायपालिका हर बीमारी की दवा नहीं हो सकती। इस पर कोर्ट ने कहा कि अगर राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चितकाल के लिए मंजूरी देने में देरी करते हैं, तो क्या कोर्ट को शक्तिहीन हो जाना चाहिए?
कोर्ट
कोर्ट ने कहा- राज्यपाल विधेयक लंबित नहीं रख सकते
मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस बीआर गवई ने कहा, "सवाल यह है कि क्या राज्यपाल अपने अधिकार का प्रयोग नहीं कर सकते? अगर राज्यपाल को लगता है कि यह कानून केंद्रीय कानून के प्रतिकूल है, तो क्या वे इसे सुरक्षित नहीं रख सकते?" पीठ ने कहा कि राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते। पीठ में CJI गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर शामिल हैं। अगली सुनवाई 9 सितंबर को होगी।
मामला
क्या है मामला?
यह विवाद तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के बीच विधेयकों में देरी से उपजा था। इसके खिलाफ तमिलनाडु सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी। कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल को विधेयक रोकने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने ये भी कहा था कि राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयक पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा। इसके बाद राष्ट्रपति ने मामले में सुप्रीम कोर्ट से सुझाव मांगते हुए कई सवाल पूछे थे