सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के विज्ञापनों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया, कहा- सरकार ने आंखें मूंद रखी
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट ने आज पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक और झूठे विज्ञापनों के मामले में बड़ी कार्रवाई की।
कोर्ट ने अगले आदेश तक कंपनी के विज्ञापनों पर पूरी तरह से रोक लगा दी। ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज अधिनियम, 1954 के तहत ये कार्रवाई की गई है।
इसके अलावा कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद और इसके प्रबंधन निदेशक (MD) आचार्य बालकृष्ण को कोर्ट की अवमानना का नोटिस जारी किया है। मना करने के बावजूद भ्रामक विज्ञापन चलाने के लिए ये कार्रवाई हुई है।
फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को भी लगाई फटकार
कोर्ट ने पतंजलि के भ्रामक और झूठे विज्ञापनों के मामले में निष्क्रियता के लिए केंद्र सरकार को फटकार लगाई।
कोर्ट ने कहा, "पूरे देश को बेवकूफ बनाया जा रहा है और सरकार ने इस पर अपनी आंखे मूंद ली हैं। ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।"
कोर्ट ने पूछा, "आपने पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापनों पर अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की?"
कोर्ट ने कहा कि सरकार को तत्काल कुछ कार्रवाई करनी होगी।
अब इस मामले पर 15 मार्च को सुनवाई होगी।
सवाल
कोर्ट ने पतंजलि से पूछा- हमेशा के लिए छुटकारा जैसे प्रचार से क्या मतलब है?
न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने आदेश के बावजूद भ्रामक दावों वाला विज्ञापन दिखाने के लिए पतंजलि को फटकार लगाई।
न्यायमूर्ति अमानुल्लाह खुद एक न्यूजपेपर लेकर कोर्ट पहुंचे थे।
उन्होंने इसे दिखाते हुए पतंजलि के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता विपिन सांघी से पूछा, "कोर्ट के आदेश के बाद भी आप में इतना साहस था कि आप दोबारा उसी तरह के विज्ञापन प्रकाशित कर रहे हैं और दावा करते हैं कि इससे बीमारी से हमेशा के लिए छुटकारा मिलेगा, इससे आपका क्या मतलब है?"
चेतावनी
पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को क्या चेतावनी दी थी?
न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने 21 नवंबर, 2023 को पतंजलि को चेतावनी दी थी और कहा था कि कोर्ट कोई भी भ्रामक विज्ञापन दिखाने को बहुत गंभीरता से लेगा और जुर्माना लगाने पर भी विचार करेगा।
न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने तब कहा था, "प्रत्येक ऐसे उत्पाद पर एक करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है, जिसके बारे में झूठा दावा किया जाता है कि यह एक विशेष बीमारी को "ठीक" कर सकता है।"
मामला
क्या है मामला?
यह मामला 2022 का है। तब पतंजलि के विज्ञापनों के खिलाफ भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी।
आज इसी याचिका पर न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने सुनवाई की।
IMA ने अपनी याचिका में कहा था कि जब प्रत्येक वाणिज्यिक इकाई को अपने उत्पादों को बढ़ावा देने का अधिकार है तो पतंजलि क्यों एलोपैथी जैसी आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों पर झूठे दावे कर रही है।
आरोप
IMA ने पतंजलि क्या आरोप लगाए थे?
याचिका में IMA ने पतंजलि पर कोविड वैक्सीन के बारे में झूठी अफवाहें फैलाने और वैक्सीन को लेकर झिझक पैदा करने का आरोप लगाया है।
इसके अलावा रामदेव पर दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन सिलेंडर ढूंढ रहे नागरिकों का मजाक उड़ाने का आरोप भी है।
याचिका में इसे आयुष दवाओं के भ्रामक विज्ञापनों की निगरानी के लिए आयुष मंत्रालय के भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI) के साथ एक समझौता होने के बावजूद कानून की उपेक्षा बताया गया।
पतंजलि
पतंजलि पर किन दवाओं को लेकर भ्रामक प्रचार करने के लगे हैं आरोप?
IMA ने अपनी याचिका में बताया था कि पतंजलि आयुर्वेद नयोग की मदद से मधुमेह और अस्थमा को 'पूरी तरह से ठीक' करने का दावा करती है।
इसको लेकर भी कोर्ट पतंजलि को फटकार लगा चुका है और कहा था कि पतंजलि इन्हें पूरा खत्म का दावा कैसे कर सकती है। ये ड्रग्स एंड मैजिक रैमिडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम का पूर्ण उल्लंघन है।
पतंजलि के श्वासारि और करोनिल दवा से कोविड ठीक करने के दावे भी विवादों में थे।
एलोपैथी
बाबा रामदेव ने भी साझा था एलोपैथी पर निशाना
कोरोना महामारी के दौरान जब देश में हजारों की संख्या में लोगों की मौत हो रही थी, तब बाबा रामदेव का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उन्होंने कहा था कि लोग एलोपैथिक दवाओं के कारण मर रहे हैं।
उन्होंने एलोपैथी को 'बेवकूफ' और 'दिवालिया' विज्ञान कहा था। उन्होंने यह भी दावा किया था कि भारत में कई डॉक्टरों की कोरोना वैक्सीन की दोनों खुराकों के कारण मौत हो गई।
IMA ने रामदेव के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी।