LOADING...
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- राज्यपाल विधेयक लंबित नहीं रख सकते, लेकिन हम समयसीमा तय नहीं करेंगे
राज्यपाल द्वारा विधेयकों को मंजूरी देने से जुड़े मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कई टिप्पणियां की हैं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- राज्यपाल विधेयक लंबित नहीं रख सकते, लेकिन हम समयसीमा तय नहीं करेंगे

लेखन आबिद खान
Nov 20, 2025
11:51 am

क्या है खबर?

राज्यपाल द्वारा विधेयकों को मंजूरी देने से जुड़े मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल अनंतकाल तक विधेयक को रोककर नहीं रख सकते। हालांकि, कोर्ट ने ये भी कहा कि विधेयकों को लेकर समयसीमा तय करना राज्यपाल या राष्ट्रपति को अधिकारों का हनन है। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास केवल 3 ही विकल्प हैं। वे विधेयक को मंजूरी दे सकते हैं, राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं या लौटा सकते हैं।

समयसीमा

कोर्ट ने कहा- समयसीमा तय करना शक्तियों के विभाजन को कुचलना होगा

कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चित काल तक रोक कर नहीं रख सकते, लेकिन समयसीमा तय करना शक्तियों के विभाजन को कुचलना होगा। कोर्ट ने कहा, "राज्यपाल अनंतकाल तक विधेयक रोककर नहीं बैठ सकते। समयसीमा लागू नहीं की जा सकती। संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 में लचीलापन रखा गया है। इसलिए किसी समयसीमा को राज्यपाल या राष्ट्रपति पर थोपना संविधान के ढांचे के खिलाफ है। यह शक्तियों के पृथक्करण के खिलाफ है।"

बड़ी बातें

कोर्ट के आदेश की बड़ी बातें

1. 'डीम्ड असेंट' का सिद्धांत संविधान की भावना और शक्तियों के बंटवारे के सिद्धांत के खिलाफ है। 2. चुनी हुई सरकार को ड्राइवर सीट पर होना चाहिए। इस सीट पर 2 लोग नहीं हो सकते। हालांकि, राज्यपाल की भूमिका केवल औपचारिक नहीं हो सकती। 3. सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल कर विधेयकों को मंजूरी नहीं दे सकता। यह राज्यपाल और राष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र में आता है। 4. राज्यपाल के पास विधेयक रोके रखने का कोई अधिकार नहीं है।

भूमिका

राज्यपाल की भूमिका को टेकअओवर नहीं कर सकते- कोर्ट

कोर्ट ने कहा, "जब राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बाध्य होता है तो हमारी राय से पहले दोनों पक्ष राज्यपाल के विवेक पर एक ही निर्णय पर भरोसा करते हैं। हमारा विकल्प यह है कि सामान्यतः राज्यपाल सहायता और सलाह से कार्य करते हैं और संविधान में प्रावधान है कि कुछ मामलों में वह विवेक का प्रयोग कर सकते हैं। कोर्ट राज्यपाल की भूमिका को टेकओवर नहीं कर सकती।"

मामला

क्या है मामला?

विवाद की शुरुआत तमिलनाडु की सरकार और राज्यपाल के बीच विधेयकों को पारित करने में देरी को लेकर हुई थी। तब 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है। कोर्ट ने ये भी कहा था कि राज्यपाल की ओर से भेजे गए विधेयक पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा। इसके बाद राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे थे, जिस पर अब ये फैसला आया है।