पेगासस मामला: जिन लोगों को जासूसी होने का शक, जांच समिति ने उनसे मांगी जानकारी
क्या है खबर?
पेगासस जासूसी मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की तरफ से गठित तकनीकी समिति ने उन लोगों से जानकारी मांगी है, जिन्हें यह शक है कि उनके डिवाइस को निशाना बनाया गया था।
समिति ने कहा है कि जिन लोगों को संदेह है कि पेगासस स्पाईवेयर के माध्यम से उनकी डिवाइस की जासूसी की गई थी, वे 7 जनवरी तक इसकी जानकारी दे सकते हैं। जरूरत पड़ने पर समिति ऐसे लोगों से उनके डिवाइस भी मांग सकती है।
प्रक्रिया
जांच के बाद वापस लौटा दिया जाएगा डिवाइस
सार्वजनिक नोटिस के माध्यम से तकनीकी समिति ने बताया है कि डिवाइस सौंपने की जगह नई दिल्ली होगी और जांच के बाद डिवाइस वापस लौटा दिया जाएगा। समिति को ईमेल के जरिये पेगासस से जासूसी होने की जानकारी दी जा सकती है।
जानकारी के लिए बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अक्टूबर में पेगागस मामले की सुनवाई करते हुए इस समिति के गठन का ऐलान किया था। रिटायर जस्टिस आरवी रविंद्रन इस समिति का नेतृत्व कर रहे हैं।
पृष्ठभूमि
क्या था पेगासस जासूसी मामला?
पिछले साल जुलाई में सामने आई रिपोर्ट में दावा किया गया था कि इजरायली कंपनी NSO ग्रुप के स्पाईवेयर पेगासस का इस्तेमाल कर कई देशों के पत्रकारों, नेताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और चर्चित हस्तियों की फोन के जरिये जासूसी की गई या इसकी कोशिश की गई।
इन लोगों में राहुल गांधी और प्रशांत किशोर समेत विपक्ष के कई नेता, दो केंद्रीय मंत्री, कई संवैधानिक अधिकारी और पत्रकार, अनिल अंबानी और CBI के पूर्व प्रमुख आलोक वर्मा समेत कई नाम शामिल थे।
टिप्पणी
"राष्ट्र सुरक्षा की चिंताएं उठाकर हर बार नहीं बच सकता राज्य"
अक्टूबर में मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, "राज्य हर बार राष्ट्र सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं उठाकर बच नहीं सकता। केंद्र सरकार को यहां अपना स्टैंड साफ करना था और वो कोर्ट को सिर्फ मूकदर्शक बनाकर नहीं छोड़ सकती। केंद्र की तरफ से साफ खंडन नहीं किया गया। ऐसे में हमारे पास याचिकाओं को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। इसलिए हम एक विशेषज्ञ समिति बना रहे हैं।"
टिप्पणी
सच्चाई का पता लगाने के लिए बनाई समिति- सुप्रीम कोर्ट
फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पेगासस मामले में सच्चाई का पता लगाने के लिए समिति बनाई गई है। निजता के अधिकार के उल्लंघन की जांच होनी चाहिए। भारतीय नागरिकों की निगरानी में विदेशी एजेंसी का शामिल होना चिंता का विषय है।
कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को इस तरह की टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर गंभीरता से विचार की जरूरत है। टेक्नोलॉजी जरूरी है, लेकिन निजता के अधिकार की रक्षा भी महत्वपूर्ण है।