#NewsBytesExplainer: क्या है लोक प्रतिनिधित्व कानून, जिसके तहत जा सकती है राहुल गांधी की संसद सदस्यता?
क्या है खबर?
सूरत कोर्ट ने राहुल गांधी को मानहानि केस में दोषी ठहराते हुए 2 साल की सजा सुनाई है। वह इस फैसले के खिलाफ 30 दिनों के भीतर हाई कोर्ट में अपील कर सकते हैं।
राहुल को कोर्ट से जमानत मिली है, लेकिन सजा मिलने से उनकी लोकसभा सदस्यता छीनी जा सकती है। उन्हें लोक प्रतिनिधित्व कानून, 1951 के तहत लोकसभा से बर्खास्त किया जा सकता है।
आइये इस कानून के बारे में विस्तार से समझते हैं।
कानून
लोक प्रतिनिधित्व कानून में क्या है और इसका क्या उद्देश्य?
भारत की संसद में साल 1951 में तत्कालीन कानून मंत्री डॉ बीआर आंबेडकर ने लोक प्रतिनिधित्व विधेयक पेश किया था।
इसमें संसद के सदनों और प्रत्येक राज्य के विधानसभा सदनों के चुनाव और उन सदनों की सदस्यता के लिए योग्यता और अयोग्यता आदि से संबंधित कई बड़े प्रावधान किए गए हैं।
सीधे शब्दों में कहें तो इस अधिनियम का मकसद जन प्रतिनिधियों (सांसद और विधायक आदि) से संबंधित नियम तय करना और उनकी योग्यता और अयोग्यता को निर्धारित करना है।
कानून
सदस्यता रद्द करने पर अधिनियम में क्या प्रावधान हैं?
लोक प्रतिनिधित्व कानून के मुताबिक, किसी सांसद या विधायक की सदस्यता दो तरह के मामलों में रद्द की जा सकती है।
पहला, जन प्रतिनिधि जिस अपराध के तहत दोषी पाया गया है, वो अपराध लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(1) में दर्ज हो। इसमें समूहों के बीच शत्रुता बढ़ाने और रिश्वत लेने जैसे गंभीर अपराध शामिल हैं।
मानहानि इस सूची में नहीं आता है, जिसमें राहुल को सजा हुई है। इसका मतलब वो इस प्रावधान के दायरे में नहीं आएंगे।
कानून
सदस्यता रद्द करने से संबंधित दूसरा प्रावधान क्या है?
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 (3) मुताबिक, किसी भी जन प्रतिनिधि को अगर किसी भी मामले में 2 या 2 साल से अधिक की सजा सुनाई जाती है तो उसकी सदस्यता रद्द हो जाएगी।
इसके तहत दोषी सांसद या विधायक के चुनाव लड़ने पर भी रोक लग जाती है और वह सजा की अवधि पूरी होने के 6 साल तक बाद तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित हो जाता है।
कानून
जन प्रतिनिधियों को संरक्षण देने वाला प्रावधान हो चुका है रद्द
सुप्रीम कोर्ट ने 2013 के अपने आदेश में आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद सांसद या विधायक को संरक्षण प्रदान करने वाली लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 (4) को रद्द कर दिया था।
इसमें कहा गया था कि सदस्या रद्द करने का फैसला जन प्रतिनिधि को सजा होने के 3 महीने बाद लागू होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस प्रावधान को गैर-कानूनी करार दिया था और सदस्यता बचाने के लिए फैसले पर रोक अनिवार्य है।
कार्रवाई
अधिनियम के तहत किन-किन नेताओं पर हुई कार्रवाई?
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) कोर्ट ने अक्टूबर, 2013 में चारा घोटाले में 5 साल की कैद और 25 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी।
उस वक्त 2 महीने जेल में रहने के बाद लालू को दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई थी, लेकिन उन्हें लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था।
आजम खान और उनके बेटे की विधायकी भी इस अधिनियम के कारण रद्द हो चुकी है।
सुप्रीम कोर्ट
क्या राहुल की सदस्यता भी जाएगी?
राहुल को अपनी सदस्यता बचाने के लिए न केवल हाई कोर्ट में अपील करनी होगी, बल्कि सूरत कोर्ट के फैसले पर रोक भी लगवानी होगी। इसके लिए उनके पास 30 दिन का समय है, जिसके बाद लोकसभा कार्यालय उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू करेगा।
हाई कोर्ट भी उनकी सजा को बरकरार रखता है तो वे सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट से भी राहत न मिलने पर उनकी सदस्यता चली जाएगी और वो अगले 8 साल चुनाव नहीं लड़ सकेंगे।