स्कूली शिक्षा की हालत दयनीय, आठवीं के छात्र नहीं पढ़ पाते दूसरी क्लास की किताब
देश में शिक्षा की हालात किसी से छिपी नहीं है। देश के कई हिस्सों में जहां स्कूलों की कमी हैं वहीं बहुत जगहें ऐसी हैं जहां स्कूल तो है, लेकिन स्कूल में पढ़ाने वाला कोई नहीं है। इन सबका असर बच्चों पर पड़ रहा है। प्रथम NGO की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आठवीं क्लास पास कर चुके आधे से ज्यादा बच्चे सामान्य गणित के सवाल तक हल नहीं कर सकते हैं। आइये जानते हैं इस रिपोर्ट के बारे में।
स्कूली शिक्षा की दयनीय हालत
प्रथम की एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) के मुताबिक, आठवीं क्लास में पढ़ने वाले 56 फीसदी छात्र तीन अंकों की संख्या को एक अंक की संख्या से भाग नहीं कर सकते। पांचवीं क्लास के 72 फीसदी बच्चे संख्या को भाग देना ही नहीं जानते, जबकि तीसरी क्लास के 70 फीसदी बच्चे घटा के सवाल नहीं कर सकते। गणित की मूलभूत जानकारी में लड़कियां, लड़कों से पीछे हैं। केवल 44 फीसदी लड़कियां और 50 फीसदी लड़के भाग कर सकते हैं।
किताब पढ़ने में भी छात्रों की हालात खराब
रीडिंग के मामले में भी छात्रों की हालात खराब है और यह पिछले 10 सालों में बदतर हुई है। ग्रामीण भारत में आठवीं क्लास के हर चार में से एक छात्र दूसरी क्लास की पाठ्यपुस्तक भी नहीं पढ़ पा रहे हैं। साल 2008 में आठवीं क्लास के 84.8 फीसदी छात्र क्लास दो की पाठ्यपुस्तक पढ़ने में सक्षम थे, लेकिन 2018 में यह संख्या घटकर 72.8 फीसदी रह गई है।
कुछ क्षेत्रों में हुआ सुधार
इस रिपोर्ट में यह बात निकलकर सामने आई है कि स्कूल में दाखिला नहीं लेने वाले बच्चों की संख्या घटी है। यह संख्या घटकर अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ गई है। अब केवल 2.8 प्रतिशत बच्चे स्कूल में दाखिला नही लेते हैं। लड़के और लड़कियों, दोनों के मामले में यह संख्या कम हुई है। 2006 में 11-14 साल की उम्र की 10.3 प्रतिशत लड़कियां स्कूल से बाहर थी, जो 2018 में घटकर 4.1 प्रतिशत रह गई है।
देशभर के स्कूलों में अध्यापकों की भारी कमी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिंसबर 2016 में मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने लोकसभा को बताया था कि देशभर के प्राथमिक स्कूलों में 9,07,585 और सेकेंडरी स्कूलों में एक लाख से अधिक अध्यापक के पद खाली हैं। सबसे ज्यादा झारखंड में 38.39 प्रतिशत और बिहार में 34.37 प्रतिशत, दिल्ली में 24.96 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 22.99 प्रतिशत अध्यापकों के पद खाली थे। देशभर में लगभग एक लाख स्कूल ऐसे हैं जहां पूरे स्कूल में केवल एक अध्यापक है।