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    कोलकाता मामला: पॉलीग्राफ टेस्ट को नहीं माना जाता कानूनी सबूत, फिर क्यों किया जा रहा है?
    कोलकाता मामले में 7 लोगों की पॉलीग्राफ टेस्ट किया गया है

    कोलकाता मामला: पॉलीग्राफ टेस्ट को नहीं माना जाता कानूनी सबूत, फिर क्यों किया जा रहा है?

    लेखन आबिद खान
    Aug 24, 2024
    07:30 pm

    क्या है खबर?

    कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में ट्रेनी डॉक्टर के बलात्कार और हत्या मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने आज मुख्य आरोपी संजय रॉय समेत 7 लोगों का पॉलीग्राफ टेस्ट किया है।

    इनमें कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष और 4 ट्रेनी डॉक्टर भी शामिल हैं। CBI टेस्ट के जरिए मामले की सच्चाई तक पहुंचने की कोशिश करेगी। हालांकि, इस टेस्ट को कोर्ट में सबूत नहीं माना जाता है।

    आइए जानते हैं फिर टेस्ट क्यों किया जा रहा है।

    लोग

    किन लोगों को हुआ पॉलीग्राफ टेस्ट?

    कोर्ट ने CBI को मुख्य आरोपी रॉय और पूर्व प्रिंसिपल घोष के अलावा घटना से जुड़े 5 अन्य लोगों का पॉलीग्राफ टेस्ट करने की भी अनुमति दी है।

    इन 5 लोगों में 4 डॉक्टर शामिल हैं, जिन्होंने घटना वाली रात मृतक डॉक्टर के साथ खाना खाया था। एक सिविल वालंटियर का भी टेस्ट हुआ है।

    आरोपी रॉय का जेल में और बाकी लोगों को CBI के मुख्यालय में टेस्ट किया गया है।

    सबूत

    पॉलीग्राफ टेस्ट को नहीं माना जाता सबूत

    खास बात है कि पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान व्यक्ति से द्वारा दिए गए बयान की कोई कानूनी वैधता नहीं होती है।

    दरअसल, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत किसी भी अपराध के आरोपी को खुद के ही खिलाफ गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

    इस टेस्ट में आरोपी या अपराधी से स्वयं अपराध के बारे में जानकारी निकलवाई जाती है, जो अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन माना जाता है।

    वजह

    फिर क्यों किया जाता है टेस्ट?

    सबूत के तौर पर मान्य नहीं होने के बावजूद पॉलीग्राफ टेस्ट जांच में मदद के काफी काम आ सकता है।

    टेस्ट के दौरान व्यक्ति से कोई ऐसी जानकारी मिल सकती है, जो जांच में बेहद अहम साबित हो सकती है।

    इस जानकारी के आधार पर दूसरे और कई तथ्य सामने आ सकते हैं। इसलिए ये टेस्ट किया जाता है।

    कोर्ट तथ्यों और परिस्थितियों के हिसाब से टेस्ट के परिणामों को सीमित स्वीकार्यता भी दे सकता है।

    सहमति

    बिना सहमति नहीं किया जा सकता टेस्ट

    पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए कोर्ट के मंजूरी के साथ ही आरोपी की सहमति लेनी भी जरूरी होती है। आरोपी के पास ये अधिकार होता है कि वो टेस्ट के लिए मना कर दे।

    2010 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि आरोपी की सहमति के बिना नार्को, पॉलीग्राफ और ब्रेन मैपिंग टेस्ट नहीं कराया जा सकता है।

    बिना सहमति के ये टेस्ट कराना अनुच्छेद 20(3) में दिए गए अधिकार और निजता के अधिकार का उल्लंघन है।

    पॉलीग्राफ टेस्ट

    क्या होता है पॉलीग्राफ टेस्ट?

    पॉलीग्राफ टेस्ट को 'लाई डिटेक्टर टेस्ट' भी कहा जाता है। इसका इस्तेमाल किसी व्यक्ति द्वारा बोले जा रहे झूठ को पकड़ने में होता है।

    टेस्ट के दौरान आरोपी से कुछ सवाल पूछे जाते हैं और जवाब देते हुए उसके शरीर में होने वाली हलचल और गतिविधियों को रिकॉर्ड किया जाता है।

    दरअसल, जब कोई झूठ बोलता है तो धड़कन, सांस लेने के तरीके जैसी गतिविधियों में बदलाव आता है। इसी आधार पर सच या झूठ का पता लगाया जाता है।

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