NDPS कानून: ड्रग्स लेने पर सजा की जगह सामुदायिक सेवा का हो सकता है प्रावधान- रिपोर्ट
भारत में जल्द ही ड्रग्स का सेवन करते पाए जाने पर लोगों को एक साल तक सामुदायिक सेवा करनी पड़ सकती है। दरअसल, सरकार शीतकालीन सत्र में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (NDPS) कानून में संशोधन कर सकती है। संशोधित NDPS कानून में ड्रग्स उपयोगकर्ता को इलाज के लिए सुधार केंद्रों में भेजने का प्रावधान होगा। अगर वो ऐसा करने से मना कर देंगे तो उन्हें एक साल तक सामुदायिक सेवा करनी पड़ सकती है। आइये, पूरी खबर जानते हैं।
मौजूदा कानून में क्या प्रावधान हैं?
मौजूदा कानून में ऐसे ही अपराध में पकड़े जाने पर एक साल की सजा या 20,000 रुपये तक का जुर्माना अथवा दोनों हो सकते हैं। इस सेक्शन को दो भागों में बांटा गया है और ड्रग्स के प्रकार के आधार पर उनका इस्तेमाल होता है।
कानून के सेक्शन 27 में भी किए जाएंगे संशोधन- रिपोर्ट
न्यूज18 के अनुसार, प्रस्तावित संशोधन NDPS कानून के सेक्शन 27 से भी जुड़े हैं, जिसमें किसी भी नारकोटिक ड्रग या साइकोट्रॉपिक सबस्टेंस के इस्तेमाल पर सजा का प्रावधान है। हालिया समय में कई बड़े मामलों में सेक्शन 27 का इस्तेमाल हुआ है और इसका सबसे ताजा उदाहरण शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान की गिरफ्तारी से जुड़ा है। हालांकि, कानून में संशोधन का पुराने मामलों पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि यह बीते दिनों से लागू नहीं होगा।
जोड़े जा सकते हैं ये नए प्रावधान
सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि सरकार सेक्शन 27 के इंट्रोडक्टरी टेक्स्ट से 'सजा' शब्द हटा सकती है। इसके अलावा अगर कोई ड्रग्स के साथ पकड़ा जाता है तो उसे नशामुक्ति के लिए नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में ले जाने का प्रावधान जोड़ सकती है। वहीं अगर कोई व्यक्ति नशामुक्ति के लिए जाने से मना करता है तो उस पर 10,000 का जुर्माना लगाया जा सकता है या उसे एक साल तक सरकारी केंद्रों पर सामुदायिक सेवा करनी होगी।
और क्या संशोधन लाए जा सकते हैं?
केंद्र सरकार औद्योगिक इस्तेमाल के लिए गांजे की खेती पर अपने नियंत्रण को कम कर राज्य सरकारों को और अधिकार दे सकती है। साथ ही डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस (DRI) के प्रमुख को नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) प्रमुख के बराबर अधिकार दिए जा सकते हैं।
सामाजिक न्याय मंत्रालय ने दिया था सजा हटाने का सुझाव
सितंबर में NDPS की नोडल एजेंसी राजस्व विभाग ने कई मंत्रालयो और संस्थाओं से इस कानून में बदलाव के सुझाव मांगे थे। इसके जवाब सामाजिक न्याय मंत्रालय ने सुझाव दिया था कि ड्रग्स के उपयोगकर्ताओं और आदी लोगों के प्रति अधिक मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए उन्हें जेल भेजने से बचना चाहिए और सजा और जुर्माने को कम से कम 30 दिनों के लिए सरकारी नशामुक्ति केंद्र में अनिवार्य इलाज के साथ बदला जाए।
मंत्रालय ने की थी यह मांग
मंत्रालय ने व्यक्तिगत उपभोग के लिए कम मात्रा में ड्रग्स पाए जाने को अपराधमुक्त करने की भी मांग की थी। गौरतलब है कि NDPS कानून के तहत अधिकतर मामले निजी उपभोग के लिए ड्रग्स रखने से जुड़े होते हैं। 2017 और 2018 में मुंबई की अदालतों में आए ड्रग्स से जुड़े 97 प्रतिशत मामले निजी इस्तेमाल के लिए इन्हें रखने से जुड़े थे। यहां हुईं कुल गिरफ्तारियों और सजाओं में से 87 प्रतिशत गांजा पीने से जुड़ी हुई थीं।
ड्रग्स रखना या उपभोग माना जाता है अपराध
भारत में ड्रग्स के इस्तेमाल या इसे रखने को अपराध माना जाता है। अभी NDPS कानून केवल आदी लोगों के प्रति ही सुधारात्मक रवैया अपनाता है। अगर नशे पर निर्भर या इसके आदी लोग इलाज और पुनर्वास चाहते हैं तो यह उन्हें मुकदमे और सजा से बचाता है, लेकिन बाकी लोगों के लिए इसमें किसी प्रकार की रियायत का प्रावधान नहीं है। वहीं इंटनेशनल नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड मानता है कि ड्रग्स को अपराधीकरण केवल समस्या को बढ़ाता है।