
#NewsBytesExplainer: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जाएंगे चीन, अमेरिकी टैरिफ के बीच कितना अहम है दौरा?
क्या है खबर?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने के अंत में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में शामिल होने के लिए चीन जा रहे हैं। गलवान हिंसा के बाद उनका ये पहला चीन दौरा है। इस बैठक में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनके रूसी समकक्ष व्लादिमीर पुतिन भी शामिल होंगे। उनकी ये यात्रा ऐसे समय हो रही है, जब अमेरिका भारत पर रूसी तेल खरीदने के चलते दबाव बढ़ा रहा है। आइए जानते हैं दौरा कितना अहम है।
यात्रा
सबसे पहले प्रधानमंत्री के दौरे के बारे में जानिए
चीन के तियानजिन में 31 अगस्त से 1 सितंबर तक SCO का सम्मेलन होना है। प्रधानमंत्री इसमें शिरकत करेंगे। संभावनाएं हैं कि वे चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ द्विपक्षीय वार्ताएं भी करें। चीन जाने से पहले प्रधानमंत्री मोदी 30 अगस्त को जापान का दौरा भी करेंगे। वहां वो सालाना होने वाले भारत-जापान शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। इस दौरान जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा से भी उनकी मुलाकात होगी।
खास
कितना खास है दौरा?
प्रधानमंत्री मोदी की ये 7 सालों में पहली चीन यात्रा होगी। उन्होंने आखिरी बार जून, 2018 में SCO शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन की यात्रा की थी। वहीं, चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग आखिरी बार अक्टूबर, 2019 में भारत आए थे। प्रधानमंत्री मोदी ने 23 अक्टूबर, 2024 को रूस के कजान में जिनपिंग से मुलाकात की। इससे पहले 18 अगस्त को चीनी विदेश मंत्री वांग यी सीमा मुद्दे पर चर्चा करने के लिए भारत आएंगे।
अहम
चीन से संबंधों के लिहाज से कितना अहम है दौरा?
2020 में गलवान में हुई झड़प के बाद भारत-चीन संबंध बेहद खराब हो गए थे। हालांकि, तब से दोनों पक्षों ने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए राजनीतिक, सैन्य और कूटनीतिक स्तरों पर कई दौर की चर्चाएं की हैं। नवंबर, 2024 में रूस में प्रधानमंत्री मोदी और जिनपिंग की मुलाकात के बाद भारत-चीन के बीच सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया पूरी हुई थी। इसी साल रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन का दौरा किया था।
टैरिफ
अमेरिकी टैरिफ और ट्रंप की धमकियों के बीच यात्रा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया है। इसके पीछे उन्होंने रूस से कच्चे तेल की खरीदी का हवाला दिया है। वहीं, पाकिस्तान के साथ अमेरिका की बढ़ती नजदीकी भी भारत के लिए चिंता का विषय है। खासतौर से इन दोनों कारणों के चलते ये दौरा बेहद अहम है। ये कदम ये भी दर्शाता है कि भारत के लिए SCO कितना अहम है और वो इस मंच को कितना महत्व देता है।
विशेषज्ञ
भारत के लिए कितना अहम है SCO?
स्वतंत्र विदेश नीति विश्लेषक डॉक्टर शाहेली दास के मुताबिक, "SCO के साथ भारत का जुड़ाव मोदी सरकार की क्वाड, SCO, ब्रिक्स, G-7 के साथ बहु-संरेखण की रणनीति को दर्शाता है और गुटीय राजनीति से बाहर रहते हुए रणनीतिक स्वायत्तता का अभ्यास करने के इरादे को रेखांकित करता है। इसके अलावा यह भारत को चीन, रूस, ईरान और कुछ मध्य एशियाई देशों के साथ उच्चतम राजनीतिक स्तर पर बातचीत जारी रखने के लिए एक नीतिगत गुंजाइश प्रदान करता है।"
प्लस
क्या है SCO?
SCO एक प्रभावशाली आर्थिक और सुरक्षा संगठन है, जिसकी औपचारिक स्थापना 2001 में एक शिखर सम्मेलन के दौरान रूस, चीन, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान द्वारा की गई थी। 2017 में भारत और पाकिस्तान भी इसके स्थायी सदस्य बन गए। 2023 में ईरान भी इसका सदस्य बना। SCO देशों में दुनिया की लगभग 40 प्रतिशत आबादी रहती है और वैश्विक अर्थव्यवस्था में इन देशों का योगदान 20 प्रतिशत के आसपास है।