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मिजोरम की बैराबी-सायरंग रेल लाइन को बनाना कितना चुनौतीपूर्ण था, इससे लोगों को क्या फायदा होगा?
मिजोरम में रेल लाइन पर कुतुब मीनार से भी ऊंचा पुल बनाया गया है

मिजोरम की बैराबी-सायरंग रेल लाइन को बनाना कितना चुनौतीपूर्ण था, इससे लोगों को क्या फायदा होगा?

लेखन आबिद खान
Sep 13, 2025
03:12 pm

क्या है खबर?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज मिजोरम की पहली रेल लाइन बैराबी-सायरंग का उद्घाटन किया है। 51 किलोमीटर लंबी इस रेलवे लाइन के जरिए मिजोरम की दिल्ली, गुवाहाटी और कोलकाता के साथ सीधा रेल संपर्क हो गया है। इससे न सिर्फ यात्रा का समय कम होगा, बल्कि स्थानीय लोगों के रोजगार और पर्यटन में भी बढ़ोतरी होगी। इसी के साथ ये लाइन बेहद दुर्गम क्षेत्र में है, जिसकी वजह से इसे बनाने में कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा है।

समय

3 घंटे में होगा 7 घंटे का सफर

अब तक बैराबी और सैरांग के बीच पहाड़ी इलाकों से होकर लंबी और कठिन सड़क यात्रा करनी पड़ती थी। नई रेल लाइन से आइजोल और सिलचर के बीच यात्रा का समय सड़क मार्ग के 7 घंटे की तुलना में केवल 3 घंटे रह जाएगा। न्यूज18 के मुताबिक, रेल मंत्रालय व्यवहार्यता और मांग के आधार पर आइजोल से वंदे भारत और राजधानी ट्रेनें शुरू करने की योजना बना रहा है। इन ट्रेनों के चलने के बाद ये सफर और जल्दी होगा।

पर्यटन

पर्यटन और रोजगार बढ़ेगा

इस रेल लाइन के जरिए पहली बार आइजोल मुख्य रेल लाइन से जुड़ा है। इससे न सिर्फ यात्रियों को आने-जाने में सुविधा होगी, बल्कि इस खूबसूरत राज्य में पर्यटकों की संख्या भी बढ़ेगी। राज्य सरकार का अनुमान है कि राज्य में अगले 5 सालों में पर्यटकों की संख्या में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी। इससे होटलों, होमस्टे, हस्तशिल्प बाजारों और परिवहन सेवाओं की मांग बढ़ेगी और स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा।

चुनौतियां

बेहद चुनौतीपूर्ण था रेल लाइन का निर्माण

51 किलोमीटर लंबी ये लाइन बेहद दुर्गम इलाकों से गुजरती है। रास्ते पर 45 सुरंग, 88 छोटे और 55 बड़े पुल हैं। इन्हें बनाने के लिए इंजीनियरों ने दिन-रात काम किया है। इसके अलावा 114 मीटर ऊंचा देश का दूसरा पियर ब्रिज भी इस लाइन पर है। ये कुतुब मीनार से भी ऊंचा है। इस वजह से रेल लाइन को इंजीनियरिंग का चमत्कार माना जा रहा है। ये लाइन भूकंप, भूस्खलन या बाढ़ में भी अप्रभावित रहेगी।

भूकंप

भूकंप के सबसे संवेदनशील जोन में आता है इलाका

मिजोरम भूकंप के लिहाज से सबसे संवेदनशील जोन-5 में आता है। भूकंपरोधी तकनीक से ट्रैक, सुरंग और पुलों को बनाना तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण और महंगा भी था। यही वजह है कि इस परियोजना की लागत 5,021 करोड़ रुपये से बढ़कर 8,000 करोड़ रुपये हो गई है। इसके अलावा इस इलाके में मानसून के दौरान भारी बारिश होती है, जिसके चलते भूस्खलन और मिट्टी दरकने की घटनाएं आम हैं। इन सबके बीच परियोजना को पूरा किया गया है।

सुरंग

गहरी खाइयों और दुर्गम पहाड़ों में हुआ पुल-सुरंगों का निर्माण

रेल लाइन पर ऊबड़-खाबड़ पहाड़ियों के बीच सुरंगों की खुदाई के लिए उत्कृष्ठ इंजीनियरिंग के साथ-साथ श्रमिकों की सुरक्षा भी सबसे बड़ी चिंता थी। इसके अलावा बिना सड़कों के दुर्गम पहाड़ियों तक भारी मशीनरी और निर्माण सामग्री को पहुंचाना भी बड़ी चुनौती थी। पुलों का निर्माण भी विपरीत परिस्थितियों में गहरी खाइयों और तेज बहती नदियों के ऊपर किया गया था। इसमें ये भी ध्यान रखा गया कि क्षेत्र के पारिस्थितिक तंत्र को कम से कम नुकसान पहुंचे।