विपक्ष की अनुपस्थिति में मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से जुड़ा महत्वपूर्ण विधेयक संसद से पारित
क्या है खबर?
मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों से जुड़ा महत्वपूर्ण विधेयक लोकसभा से पारित हो गया है। इस विधेयक को मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 नाम दिया गया है।
इस दौरान विपक्ष के 97 सांसद अनुपस्थित रहे। विपक्ष इस विधेयक का विरोध कर रहा था और उसने सरकार पर इसके जरिए चुनाव आयोग पर कब्जा करने के आरोप लगाया है।
प्रावधान
विधेयक में क्या प्रावधान है?
ये विधेयक चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तें और कार्य संचालन) अधिनियम, 1991 की जगह लेगा।
विधेयक में प्रावधान है कि राष्ट्रपति एक चयन समिति की सिफारिश पर मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों (EC) की नियुक्ति करेंगे।
इस समिति में प्रधानमंत्री, एक कैबिनेट मंत्री और विपक्ष की ओर से लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल होंगे।
इसका मतलब समिति में सरकार का बहुमत होगा और वो अपने हिसाब से आयुक्त नियुक्त कर सकेगी।
प्रावधान
विधेयक में और क्या बदलाव प्रस्तावित हैं?
विधेयक के मुताबिक, CEC और EC की नियुक्ति 6 साल या अधिकतम 65 वर्ष की आयु तक के लिए होगी।
अगर किसी EC को CEC नियुक्त किया गया तो उसका कुल मिलाकर कार्यकाल 6 साल से अधिक नहीं हो सकता।
अगर चयन समिति में कोई पद खाली होगा तो भी उसके द्वारा की गई नियुक्ति को अमान्य नहीं ठहराया जा सकेगा।
आयुक्तों को केवल संविधान के अनुच्छेद 324 के खंड (5) के तहत ही हटाया जा सकता है।
फैसला
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बनाया गया है कानून
बता दें कि इसी साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की समिति की सलाह पर चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करने का आदेश दिया था। इसका उद्देश्य चुनाव आयोग को राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाना था।
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि फैसला तब तक प्रभावी रहेगा, जब तक सरकार कोई कानून नहीं लाती। अब सरकार जो कानून ले आई है, उसमें CJI की जगह कैबिनेट मंत्री को शामिल किया गया है।
मेघवाल
कानून मंत्री बोले- हमने बाबा साहेब का सपना पूरा किया
चर्चा के दौरान केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा, "संविधान में अनुच्छेद 324 देश में चुनाव कराने से जुड़ा है। इसके दूसरे भाग में कहा गया था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए संसद एक कानून बनाएगी, लेकिन कांग्रेस सरकारों ने ऐसा नहीं किया। 1991 में वे कानून लेकर आए, लेकिन उसमें भी इस बात को शामिल नहीं किया गया। कांग्रेस ने बाबा साहेब का सपना अधूरा छोड़ दिया था, हम उसे पूरा करने जा रहे हैं।"
राज्यसभा
राज्यसभा से पारित हो चुका है विधेयक
12 दिसंबर को ये विधेयक भारी विरोध के बावजूद राज्यसभा से पारित हो चुका है। इसके विरोध में विपक्षी सांसदों ने सदन से वॉकआउट कर दिया था।
तब कांग्रेस के नेता रणदीप सुरजेवाला ने कहा था, "सरकार इस विधेयक के जरिये चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप का प्रयास कर रही है। मोदी सरकार ने भारत के लोकतंत्र पर हमला किया है। भारत के लोकतंत्र और चुनावी तंत्र की स्वायत्तता, निडरता और निष्पक्षता को बुलडोजर से कुचल दिया गया है।"
नियुक्ति
अभी तक कैसे होती थी चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति?
चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है, जिसके बारे में संविधान के अनुच्छेद 324 में विस्तार से बताया गया है। इसके तहत चुनाव कराने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की होगी।
अनुच्छेद 324 (2) में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया है। इस अनुच्छेद में नियुक्ति के लिए कानून बनाने को कहा गया था।
हालांकि, ऐसा कोई कानून नहीं था और इसी कारण अभी तक केंद्र सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियां करते थे।