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दिल्ली हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा- आर्थिक रूप से सक्षम जीवनसाथी को नहीं मिलेगा भरण-पोषण
दिल्ली हाई कोर्ट ने तलाक के बाद भरण पोषण भत्ते को लेकर अहम फैसला सुनाया है

दिल्ली हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा- आर्थिक रूप से सक्षम जीवनसाथी को नहीं मिलेगा भरण-पोषण

लेखन आबिद खान
Oct 18, 2025
04:53 pm

क्या है खबर?

तलाक के बाद मिलने वाले भरण-पोषण को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि यह भत्ता हर किसी को अपने-आप नहीं मिलता और अगर पति या पत्नी खुद आर्थिक रूप से सक्षम है, तो उन्हें वित्तीय मदद की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने ये फैसला एक महिला रेलवे अधिकारी की याचिका पर सुनवाई के बाद सुनाया। इस महिला ने तलाक के बाद अपने वकील पति से गुजारा भत्ता और मुआवजा मांगा था।

टिप्पणी

कोर्ट ने कहा- तलाक का विरोध नहीं करते हुए पैसे की मांग गलत

कोर्ट ने कहा, "जब कोई पति-पत्नी विवाह विच्छेद का विरोध करते हुए एक राशि के भुगतान पर सहमति जताता है, तो ये अनिवार्य रूप से दर्शाता है कि उसका मकसद रिश्ता बचाना या प्यार नहीं, बल्कि आर्थिक फायदा उठाना है।" कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 अदालतों को आय, संपत्ति और आचरण के साथ-साथ अन्य प्रासंगिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर गुजारा भत्ता और भरण-पोषण देने का विवेकाधिकार देती है।

फैसला

भरण पोषण सामाजिक न्याय के लिए है, कमाई के लिए नहीं- कोर्ट

जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा, "स्थायी भरण-पोषण सामाजिक न्याय का उपाय है, न कि लाभ कमाने का साधन। आत्मनिर्भर को एलिमनी देना न्यायिक विवेक का अनुचित प्रयोग होगा। भरण-पोषण तय करते समय न्यायालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सहायता केवल तभी दी जाए, जब जीवनसाथी निर्भर या जरूरतमंद हो।" पीठ ने कहा कि कम अवधि का विवाह, संतान न होना और महिला की उच्च आय के चलते भत्ते का अधिकार नहीं बनता।

अन्य टिप्पणियां

फैसले में कोर्ट ने और क्या-क्या कहा?

कोर्ट ने कहा, "रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री में आर्थिक तंगी, निर्भरता या असाधारण परिस्थितियों का कोई सबूत नहीं है जिससे वह गरिमा के साथ अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो। किसी भी वित्तीय देनदारी, चिकित्सा स्थिति या पारिवारिक दायित्व का कोई तर्क या प्रमाण भी नहीं है जिसके लिए आर्थिक सहायता की जरूरत हो। इसके अलावा ऐसा कोई सबूत भी नहीं है, जिससे पता चले कि दोनों पक्षों की आय में कोई बड़ा अंतर है।"

मामला

क्या है मामला?

ये मामला भारतीय रेल यातायात सेवा (IRTS) में ग्रुप-A महिला अधिकारी से जुड़ा है। इस महिला की 2010 में एक वकील से शादी हुई थी, लेकिन दोनों केवल एक साल साथ रह पाए। अगस्त, 2023 में फैमिली कोर्ट ने शादी को क्रूरता के आधार पर खत्म कर दिया था। तब कोर्ट ने ये भी कहा था कि महिला ने पति पर क्रूरता की इसलिए एलिमनी नहीं मिलेगी। महिला ने इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की थी।