
#NewsBytesExplainer: अफगानिस्तान के विदेश मंत्री क्यों पहुंचे देवबंद? जानें मदरसे का इतिहास और दौरे की अहमियत
क्या है खबर?
अफगानिस्तान में तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी भारत दौरे पर हैं। वे आज उत्तर प्रदेश के देवबंद में स्थित दारुल उलूम मदरसे पहुंचे हैं। यहां वे मदरसे के छात्रों और आम लोगों को संबोधित करेंगे और जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी से भी मुलाकात करेंगे। करीब 5 घंटे तक वे मदरसे में रहेंगे। आइए आज दारुल उलूम देवबंद के इतिहास और अहमियत जानते हैं
दौरा
सबसे पहले मुत्तकी के देवबंद दौरे के बारे में जानिए
मुत्तकी दिल्ली से सड़क मार्ग के जरिए दोपहर करीब 12 बजे देवबंद पहुंचे। यहां पर अरशद मदनी समेत कई धार्मिक प्रमुखों ने उनका स्वागत किया। वे मदरसे के परिसर का दौरा करेंगे, मस्जिद जाएंगे, छात्रों से संवाद करेंगे और दोपहर 3 बजे छात्रों और आम लोगों को संबोधित भी करेंगे। वे यहां पढ़ रहे अफगानिस्तानी छात्रों से भी मिलेंगे। 2021 में अफगानिस्तान में सत्ता हासिल करने के बाद ये पहला मौका है, जब कोई तालिबानी नेता दारुल उलूम आया है।
देवबंद
अब देवबंद मदरसे का इतिहास जानिए
दारुल उलूम देवबंद दुनिया के सबसे बड़े और प्रभावशाली इस्लामी संस्थानों में से एक है। इसकी स्थापना ब्रिटिश शासन के दौरान 30 मई, 1866 को औपनिवेशिक प्रभाव का विरोध करते हुए पारंपरिक इस्लामी शिक्षा के संरक्षण और प्रसार के उद्देश्य से की गई थी। मौलाना कासिम नानौतवी, हाजी आबिद हुसैन, फजलुर्रहमान समेत कुछ अन्य लोगों ने इसकी स्थापना की थी। बाद में ये मदरसा देवबंदी आंदोलन का जन्म स्थान बना, जो हनफी विचारधारा पर आधारित एक इस्लामी आंदोलन था।
काम
मदरसे में क्या पढ़ाया जाता है?
इस मदरसे में विद्वान और छात्र कुरान, हदीस, इस्लामी कानून और धर्मशास्त्र के बारे में पढ़ते हैं। यहां के छात्रों को बकायदा मानद डिग्री भी दी जाती है। इस मदरसे का प्रभाव सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में फैला हुआ है। मदरसे ने दक्षिण एशिया, मध्य एशिया और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में धार्मिक शिक्षा और इस्लामी विचारधारा को आकार दिया है। मिस्र के एक मदरसे के बाद दारुल उलूम देवबंद दूसरे नंबर पर आता है।
तालिबान
देवबंद का अफगानिस्तान के साथ क्या संबंध है?
दारुल उलूम देवबंद और अफगान तालिबान के बीच एक वैचारिक संबंध है। 1947 में देवबंद मदरसे से प्रेरित होकर ही अफगानिस्तान सीमा के पास पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में दारुल उलूम हक्कानिया की स्थापना की गई थी। इसके संस्थापक मौलाना अब्दुल हक देवबंद के पूर्व छात्र थे। उन्होंने उसी विचारधारा और पाठ्यक्रम के आधार पर हक्कानिया मदरसे की स्थापना की, जो अफगानिस्तान में तालिबान के उदय में अहम रहा है।
बयान
मुत्तकी ने खुद बताई देवबंद जाने की वजह
बीते दिन जब मुत्तकी से देवबंद जाने पर सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा, "देवबंद इस्लामी दुनिया का एक बड़ा केंद्र है। देवबंद के बुजुर्गों और अफगानिस्तान के उलेमाओं के बीच पुराना रिश्ता है। देवबंद एक रूहानी (आत्मिक) मरकज है। देवबंद एक बड़ा इस्लामी मरकज है और अफगानिस्तान और देवबंद जुड़े हुए हैं, इसलिए मैं वहां के नेताओं से मिलने जा रहा हूं। हम चाहते हैं कि हमारे छात्र भी यहां आकर पढ़ाई करें।"
अहमियत
कितना अहम है मुत्तकी का देवबंद दौरा?
मुत्तकी के दौरे के कई निहितार्थ हैं। यह संकेत है कि तालिबान पाकिस्तान से हटकर भारत के साथ रिश्ते सुधारना चाहता है। इसे धार्मिक कूटनीति का हिस्सा माना जा रहा है। देवबंद ने तालिबान की विचारधारा को जन्म दिया और इसे भारत-अफगानिस्तान संबंधों में सांस्कृतिक पुल की तरह देखा जा रहा है। मुत्तकी के दौरे को इस संदेश के तौर पर देखा जा रहा है कि तालिबान अब कट्टरपंथ की जगह धार्मिक शिक्षा और शांति पर ध्यान दे रहा है।