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    #NewsBytesExclusive: भारत की स्टार महिला धावक दुती चंद की कहानी, उन्हीं की जुबानी

    #NewsBytesExclusive: भारत की स्टार महिला धावक दुती चंद की कहानी, उन्हीं की जुबानी

    लेखन मोहम्मद वाहिद
    Aug 21, 2019
    07:18 pm

    क्या है खबर?

    कहते हैं कि किसी चीज़ को दिल से चाहो तो सारी कायनात तुम्हें उससे मिलाने की कोशिश में लग जाती है।

    भारत को वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में गोल्ड मेडल दिलाने वाली इस धाविका के संघर्ष की कहानी इस कहावत की तरह ही है।

    महज़ छह साल की उम्र से ही नंगे पैर कड़ी ठंड में नदी किनारे दौड़ने वाली इस धावक का सफर बेहद संघर्षपूर्ण रहा है।

    जी हां, हम बात कर रहे हैं भारतीय महिला धावक दुती चंद की।

    परिचय

    जानिए कौन हैं दुती चंद

    भारत को 2019 वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में गोल्ड मेडल जिताने वाली दुती चंद का जन्म 3 फरवरी, 1996 को ओडिशा के जाजपुर में हुआ था।

    दुती महिलाओं के ट्रैक एंड फील्ड इवेंट्स में गोल्ड जीतने वाली पहली महिला धावक हैं। दुती ने 100 मीटर की रेस को 11.32 सेकंड में जीतकर यह रिकॉर्ड अपने नाम किया।

    हालांकि, 2012 में दुती सिर्फ 11.8 सेकंड में 100 मीटर की रेस पूरी कर चुकी हैं, जिसके बाद वह राष्ट्रीय चैंपियन बन गई थी।

    संघर्ष

    आसान नहीं रहा सपनों को हकीकत में बदलना

    संघर्ष के बारे में पूछने पर दुती ने कहा, "मैं छोटे शहर और गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हूं। बचपन से ही मेरा सपना एथलीट बनने का था। लेकिन मुझे अपने सपने को हकीकत में बदलने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा।"

    उन्होंने आगे कहा, "मैंने छह साल की उम्र से ही दौड़ना शुरु कर दिया था, लेकिन शुरुआत में मेरे पास न तो जूते थे और न ही कपड़े। मैं ठंड में नदी किनारे बालू पर ट्रेनिंग करती थी।"

    बैन

    2014 की लड़ाई थी सबसे बड़ी- दुती

    100 और 200 मीटर की रेस में कई मेडल जीतने वाली दुती को 2014 में बैन कर दिया गया था। साथ ही 2014-15 के राष्ट्रमंडल खेल और एशियाई खेलों में उन्हें हिस्सा भी नहीं लेने दिया गया था।

    इस बारे में दुती ने कहा, "मेडिकल जांच के बाद उन लोगों ने कहा कि मेरी बॉडी में मेल हार्मोंस ज़्यादा हैं। लेकिन ऐसा नहीं था। जब मुझे बैन किया गया, तो मैनें हार नहीं मानी और कानून का सहारा लिया।"

    सिल्वर मेडल

    बैन खत्म होने के बाद 18वें एशियाई खेलों में दुती ने जीता रजत पदक

    बैन के खिलाफ कानूनी लड़ाई में दुती की जीत हुई। इसके बाद उन्होंने 18वें एशियाई खेलों में 100 मीटर और 200 मीटर की दौड़ में भारत को सिल्वर मेडल दिलाया।

    दुती ने बताया कि उनके लिए यह लड़ाई सबसे बड़ी थी। हालांकि, वह शुरुआत में निराश ज़रूर हुई थी, लेकिन बचपन के कठिन संघर्ष के कारण ही उन्हें यह जीत मिल पाई।

    दुती ने यह भी बताया कि उन्होंने खुद का वकील करके इस लड़ाई को शुरु किया था।

    योगदान

    कोच एन रमेश का सफलता में रहा बड़ा योगदान

    बेहद संघर्षपूर्ण जीवन के बाद सफलता की प्रेरणा मिलने के सवाल पर दुती ने कहा, "मेरे कोच एन नरेश का इसमें बड़ा योगदान रहा।"

    आगे उन्होंने कहा, "बैन के बाद मुझे अकादमी से निकाल दिया गया था। यहां तक मुझे हॉस्टल से भी निकाल दिया गया। इसके बाद मेरे कोच नरेश ने ही भारत के बैडमिंटन कोच पुलेला गोपीचंद से सिफारिश की। जिसके बाद गोपीचंद ने मुझे बैडमिंटन खिलाड़ियों के हॉस्टल में रहने की जगह दी थी।"

    दौड़ने की तेज़ी

    'मेरी लंबाई कम है लेकिन रफ्तार ज़्यादा'

    दुती की लंबाई सिर्फ 5.6 फीट है। इस कारण उनके ऊपर खेल के दौरान ज़्यादा दबाव रहता है। कम लंबाई के कारण किसी लंबे एथलीट की एक चाल में तय दूरी, इनकी दो चाल में तय दूरी के बराबर है।

    इस पर दुती ने कहा "हर किसी की अलग-अलग खासियत होती है। सब एक जैसे नहीं होते हैं। मेरी लंबाई भले ही कम है, लेकिन मेरी रफ्तार ज़्यादा है।"

    तेज़ रफ्तार को ही दुती अपनी सफलता का श्रेय देती हैं।

    क्या आप जानते हैं?

    स्पोर्ट्स फेडरेशन का काम सिर्फ ट्रेनिंग देना है- दुती

    दुती के संघर्ष में स्पोर्ट्स फेडरेशन के साथ वाले सवाल पर उन्होंने कहा, "फेडरेशन का काम सिर्फ ट्रेनिंग देना है। बाकी सभी चीज़े खुद से करनी होती हैं।" हालांकि, वह यह भी मानती हैं कि फेडरेशन के काम में अब बदलाव आया है।

    नाराज़गी

    क्रिकेट को लोकप्रिय बनाने में टीवी मीडिया का बड़ा रोल- दुती

    2019 क्रिकेट विश्व कप से भारतीय टीम के बाहर होने पर भी लोग क्रिकेट की ही ज़्यादा बाते करते हैं। इससे क्या आपको कभी बुरा लगता है?

    इस सवाल के जवाब में दुती ने कहा, "भारत को 2019 विश्व कप से बाहर हुए एक हफ्ते से भी ज़्यादा हो गया, लेकिन फिर भी टीवी वाले सिर्फ धोनी, विराट और रोहित की ही बाते करते हैं।"

    उन्होंने आगे कहा, "क्रिकेट को लोकप्रिय बनाने में टीवी मीडिया का बहुत बड़ा रोल है।"

    समलैंगिकता पर सवाल

    'लोग गंदी-गंदी बाते और भद्दे कमेंट्स करते थे'

    बता दें कि दुती चंद ने हाल ही में अपने समलैंगिक होने की बात को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया था।

    इसका प्रोफेशनल लाइफ पर असर पड़ने के सवाल पर दुती ने कहा, "अकादमी और साथी खिलाड़ियों ने ट्रेनिंग के दौरान कभी कुछ नहीं कहा।"

    आगे दुती ने कहा, "हां, बाकी लोग मुझे गंदी-गंदी बाते और भद्दे कमेंट्स करते थे। मैं जहां जाती थी वहां लोग इसी बारे में ही बात करते थे।"

    स्पोर्ट्स अकादमी

    भुवनेश्वर में अकादमी खोलने की तैयारी कर रही हैं दुती चंद

    हमसे खास बातचीत में दुती ने कहा कि 2006 से वह सभी प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले रही हैं। उनका लक्ष्य आगे भी सभी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना है।

    दुती ने कहा, "वह भुवनेश्वर में स्पोर्ट्स अकादमी खोलने की तैयारी कर रही हैं। 2020 तक इस अकादमी के शुरु होने की संभावना है। इस अकादमी में शुरुआत में फिलहाल सिर्फ एथलीट तैयार किए जाएंगे, लेकिन भविष्य में अन्य खेलों को भी जोड़ने का विचार करूंगी।"

    संदेश

    NewsBytes के रीडर्स को दुती चंद ने दिया ये संदेश

    NewsBytes के रीडर्स और वो लड़कियां जो एथलीट बनना चाहती हैं, उनको संदेश देते हुए दुती ने कहा, "लड़कियों को सिर्फ अपने सपनों के बारे में सोचना चाहिए। समाज हमेशा कुछ न कुछ बोलता रहेगा। मुझे भी शुरुआत में बहुत कुछ सुनना पड़ा था।"

    दुती ने आगे कहा, "सफलता तभी मिलती है, जब आप उसके लिए कड़ी मेहनत करेंगे।"

    उन्होंने कहा कि हमेशा सपनों को हकीकत में बदलने के बारे में सोचना चाहिए।

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