सुधीर मिश्रा ने सेंसरशिप के मामले में बॉलीवुड को बताया 'सॉफ्ट टारगेट', कहा- यह खतरनाक है
क्या है खबर?
बॉलीवुड के मशहूर निर्देशक और स्क्रीनराइटर सुधीर मिश्रा अपनी बेहतरीन फिल्मों के लिए जाने जाते हैं।
जल्द ही निर्देशक की फिल्म 'अफवाह' रिलीज होने वाली है, जिसमें नवाजुद्दीन सिद्दीकी, भूमि पेडनेकर और तापसी पन्नू मुख्य भूमिका में नजर आएंगे। फिल्म का निर्माण अनुभव सिन्हा ने किया है।
हाल ही में मिश्रा ने बॉलीवुड को सेंसरशिप के मामले में खतरनाक बताया और इंडस्ट्री को कैसे एक आसान लक्ष्य समझकर टारगेट किया जाता है, इस पर अपनी राय दी।
बयान
उद्योग में पनप रही समस्याओं से कराया अवगत
मिड-डे के साथ बातचीत के दौरान मिश्रा ने कहा, "इंडस्ट्री के बाहर हर कोई अब सेंसर बन गया है। मैं कुछ कहता हूं, तो हर कोई सोचता है कि उन्हें मुझे कुछ भी कहने की अनुमति है। यह खतरनाक है।"
मिश्रा ने उन समस्याओं से भी अवगत कराया, जो हिंदी फिल्म उद्योग में पनप रही हैं। वह बताते हैं कि कैसे प्रमुख सितारों की सुविधा के लिए कहानियों से समझौता किया जाता है।
उन्होंने कहा, "मुझे यह हास्यास्पद लगता है।"
बयान
नफरत करने वालों के लिए आसान लक्ष्य बनी इंडस्ट्री- मिश्रा
पिछले कुछ वर्षों में बॉलीवुड को सोशल मीडिया पर काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। इंडस्ट्री को 'राष्ट्र-विरोधी' भी कहा गया।
इन सब बातों से मिश्रा हैरान हैं कि कैसे फिल्म उद्योग के योगदान को कम आंका जाता है और कभी-कभी इसकी भूमिका को खलनायक बनाया जाता है।
इस पर उन्होंने कहा, "इंडस्ट्री नफरत करने वालों के लिए एक सॉफ्ट टारगेट बन गई है। यहां बहुत से लोग अच्छा कमाते हैं, लेकिन 90 प्रतिशत लोग मेहनती और ईमानदार हैं।"
बयान
सरकार का काम इंडस्ट्री की देखभाल करना- मिश्रा
इसके बाद मिश्रा ने फिल्म उद्योग की तारीफ करते हुए सरकार को इसका समर्थन करने की बात कही।
उन्होंने कहा, "इंडस्ट्री बहुत कुछ अच्छा करती है। यह फिल्मों के जरिए दर्शकों को शिक्षित करने के साथ ही दो घंटे तक उनका भरपूर मनोरंजन करती है। मुझे लगता है कि लोग इंडस्ट्री के साथ बुरा व्यवहार करते हैं। इसकी देखभाल करना सरकार का ही काम है, जो मेरी राय में एक सार्वजनिक सेवा है।"
वर्कफ्रंट
पहली ही फिल्म के लिए मिला था राष्ट्रीय पुरस्कार
मिश्रा ने अपने करियर की शुरुआत कुंदन शाह की 'जाने भी दो यारों' (1983) से एक स्क्रीनराइटर के तौर पर की थी।
1987 में उन्होंने ये वो मंजिल तो नहीं के साथ बतौर निर्देशक अपनी शुरुआत की, जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ पहली फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।
इसके बाद उन्होंने 'हजारों ख्वाहिशें ऐसी', 'धारावी' और 'चमेली' जैसी कई बेहतरीन फिल्मों का निर्माण किया और दर्शकों के दिल में अपने लिए एक अलग जगह बनाई।