LOADING...
स्मृति ईरानी बोलीं- ओहदा मिलने से औरत का संघर्ष नहीं रुकता, अपमान का अंदाज बदलता है
स्मृति ईरानी ने की महिलाओं संग होने वाले भेदभाव पर बात

स्मृति ईरानी बोलीं- ओहदा मिलने से औरत का संघर्ष नहीं रुकता, अपमान का अंदाज बदलता है

Nov 23, 2025
03:47 pm

क्या है खबर?

एकता कपूर के टीवी शो 'क्योंकि सास भी कभी बहू 2' में नजर आ रहीं स्मृति ईरानी हाल ही में साहित्य आजतक 2025 के मंच पर पहुंचीं। वहां उन्होंने महिलाओं के संघर्ष, भेदभाव और अपनी राजनीतिक यात्रा पर बेबाकी से बात की। बातचीत के दौरान जब उनसे पूछा गया कि क्या महिलाओं को खुद को साबित करने के लिए दोगुनी मेहनत करनी पड़ती है तो उन्होंने इस धारणा को सीधे नकार दिया। क्या कुछ बोलीं स्मृति, आइए जानते हैं।

दो टूक

पद मिलने के बाद भी औरत का संघर्ष जारी रहता है- स्मृति

कार्यक्रम के दौरान स्मृति ने साफ कहा, "मुझे नहीं लगता कि इससे किसी महिला को परेशानी होती है। जिंदगी में 2 ही रास्ते हैं या तो आप अपनी स्थिति पर रोते रहें या फिर चुनौतियों का सामना करने के लिए हर समय तैयार रहें। देश की युवतियों और महिलाओं को ये समझना चाहिए कि ये गलतफहमी फैलाई जाती है कि औरत को एक बार कोई पद मिल जाए तो संघर्ष खत्म हो जाता है, जबकि हकीकत इससे बिल्कुल अलग है।"

भेदभाव

"सम्मान करने से पहले सामने वाले का जेंडर देखते हैं लोग"

स्मृति बोलीं, "महिला के किसी पद पर पहुंचने के बाद संघर्ष खत्म नहीं होता। बस उसका अपमान करने का तरीका बदल जाता है, क्योंकि बहुत से लोग पद नहीं देखते। वो सिर्फ ये देखते हैं कि सामने एक महिला है या पुरुष, इसलिए बस तौहीन करने का तरीका बदल जाता है। ओहदा मिलने के बाद भी महिलाओं के लिए चुनौतियां खत्म नहीं होतीं, क्योंकि कई लोग सम्मान करने से पहले सामने वाले का जेंडर देखते हैं।"

पद

स्मृति ने कहा- औरत के ओहदे की कोई औकात नहीं

स्मृति ने अपने लंबे संघर्ष का जिक्र कर कहा कि 2011 से चल रहे एक मामले में उन्हें पटियाला हाउस कोर्ट में बार-बार उपस्थित होना पड़ा। कोर्ट में एक जज के सामने वो सिर्फ एक औरत थीं और उनके पद या सत्ता की कोई औकात नहीं थी। वो बाेलीं, "जब-जब कोर्ट तलब करता है, मैं जाती हूं। 14 साल से ये केस चल रहा है। इस दौरान मुझे अपने सम्मान और मर्यादा की रक्षा के लिए लगातार खड़ा होना पड़ा।"

आहत

"हैसियत सिर्फ जिगरे की होती है"

स्मृति बोलीं, "सबसे ज्यादा तपिश तब महसूस हुई, जब कोर्ट में मुझसे सख्ती से पूछताछ की जा रही थी। उस पुरुष ने मेरी मर्यादा का उल्लंघन किया था। उसके वकील मुझसे सरेआम कोर्ट में वाद-विवाद करते थे। उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि आप केंद्रीय मंत्री हैं या स्मृति ईरानी। वो बस आपके चरित्र को तार-तार कर अपना केस साबित करते हैं। ऐसे लम्हें बताते हैं कि ओहदे की औकात नहीं होती। अंदर जो जिगरा होता है, उसकी औकात होती है।"

सफरनामा

सपनों और संघर्ष की मिसाल है स्मृति ईरानी का सफर

टीवी की दुनिया से संसद तक का सफर तय करने वाली स्मृति ने साबित किया कि सपने और संघर्ष की कोई सीमा नहीं होती। छोटे पर्दे पर हिट धारावाहिक 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' से घर-घर में अपनी पहचान बनाने वाली ईरानी आज भारत की राजनीति में केंद्रीय मंत्री और साहसिक नेता के रूप में जानी जाती हैं। उनका जीवन दर्शाता है कि प्रतिभा, मेहनत और धैर्य मिलकर किसी भी महिला को असाधारण ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं।