#NewsBytesExplainer: कान्स फिल्म फेस्टिवल की शुरुआत कब हुई, क्या होती है जूरी की भूमिका? जानिए सबकुछ
मनोरंजन जगत का सबसे बडे़ समारोह कान्स फिल्म फेस्टिवल का आगाज आज यानी 16 मई को होने वाला है। यह इस समारोह का 76वां संस्करण होगा, जो 27 मई तक फ्रांस के फ्रेंच रिवेरा में आयोजित किया जाएगा। इस फेस्टिवल में मशहूर हस्तियों के अलावा, पत्रकार और फिल्म समीक्षक भी टिकट लेकर शामिल हो सकते हैं। इस साल अनुष्का शर्मा और मानुषी छिल्लर कान्स में कदम रखने वाली हैं। आइए आपको कान्स के बारे में विस्तार से बताते हैं।
कब और किस नाम से शुरू हुआ था ये फेस्टिवल?
2003 तक कान्स फिल्म फेस्टिवल को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के नाम से जाना जाता था। इस फेस्टिवल में देश और विदेश की कई दिग्गज सितारे शामिल होते हैं। रेड कार्पेट पर सितारे अपने लुक्स से दर्शकों को प्रभावित करते हैं। इस फिल्म फेस्टिवल में विश्व से चुंनिंदा फिल्म्स और डॉक्यूमेट्री की स्क्रीनिंग होती है, साथ ही कलाकारों को सम्मानित भी किया जाता है। इसमें दुनियाभर की अलग-अलग फिल्मों और डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग होती है। 1946 में इसकी शुरुआत हुई थी।
पहली बार कान्स में इस भारतीय फिल्म को मिला था सम्मान
शुरुआत में इस फेस्टिवल में 21 देशों की फिल्म को दिखाया गया था। कान्स का हिंदुस्तान से खास रिश्ता है। इस कड़ी की शुरुआत 1946 में चेतन आनंद की फिल्म 'नीचा नगर' से हुई थी। पहली बार इसी फिल्म ने भारत का मान कान्स में बढ़ाया था। 'नीचा नगर' को फेस्टिवल के सबसे सम्मानित ग्रैंड प्रिक्स पुरस्कार से भी नवाजा गया। 1950 में चेतन इंटरनेशनल ज्यूरी में भारत की तरफ से पहले सदस्य बने थे।
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1955 में फिल्म 'बूट पॉलिश' के लिए बाल कलाकार नाज को यह सम्मान मिला था। 'आवारा', 'दो बीघा जमीन', 'पाथेर पांचाली' और 'सलाम बॉम्बे' को भी यहां सम्मानित किया जा चुका है। इरफान खान की 'लंच बॉक्स' को भी इस फेस्टिवल में सम्मान मिला था।
कान्स में मायने रखती है फिल्म की स्क्रीनिंग
इस बार भारत से तीन फिल्मों की कान्स में स्क्रीनिंग होगी। एक है अनुराग कश्यप की 'कैनेडी', जिसमें सनी लियोनी हैं। दूसरी है कन्नू बहल की 'आगरा' और तीसरी है मणिपुरी फिल्म निर्माता अरिबम स्याम शर्मा की 'इशानौ'। इन तीनों फिल्मों को कान्स में दिखाया जाएगा। कान्स फेस्टिवल में किसी फिल्म की स्क्रीनिंग बहुत मायने रखती है। अब तक कई भारतीय फिल्मों को कांन्स में स्क्रीनिंग करने का मौका मिला चुका है और उन्हें जूरी ने भी खूब सराहा है।
कान्स में जूरी की भूमिका क्या होती है?
हर साल समाराेह शुरू होने से पहले निदेशक मंडल सिनेमा की दुनिया से जुड़े 8 नामचीन और काबिज सदस्यों का चुनाव करता है, जो कान्स में घोषित हो चुकीं फिल्मों में से पुरस्कार के लिए फिल्मों का चयन करते हैं। साधारण भाषा में जूरी के सदस्य जज होते हैं, जो कान्स के लिए विजेताओं का चयन करते हैं। पिछले साल भारत से दीपिका पादुकोण को जूरी का सदस्य बनाया गया था। वह कान्स के जूरी पैनल में शामिल हुई थीं।
जज की कुर्सी पर बैठ चुकी हैं बॉलीवुड की ये हस्तियां
ऐश्वर्या राय 2003 में कान्स जूरी की पहली भारतीय महिला अदाकारा रही हैं। उनके बाद इस लिस्ट में अगला नाम अभिनेत्री और निर्माता, निर्देशक नंदिता दास का है। उन्हें 2005 में जूरी सदस्य के तौर पर चुना गया था। शर्मिला टैगोर ने 2009 में कान्स के अंतरराष्ट्रीय जूरी पैनल में अपनी जगह बनाई थी। विद्या बालन ने 2013 में आयोजित 66वें कान्स फिल्म फेस्टिवल में तो निर्देशक शेखर कपूर ने 2010 में जूरी पैनल में अपनी जगह बनाई थी।
कान्स में 8 चर्चित श्रेणियां
वैसे तो कान्स फेस्टिवल में पुरस्कारों के लिए कई श्रेणियां बनाई गई हैं ताकि युवा प्रतिभाओं को बढ़ावा मिल सके, लेकिन इसकी 8 श्रेणियां सबसे चर्चित हैं। इन श्रेणियों में सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता या निर्देशक आदि के लिए दुनियाभर से एंट्री भेजी जाती हैं।
कान्स में क्यों जाती हैं भारतीय अभिनेत्रियां?
कान्स में हर बार की तरह इस साल भी कई भारतीय अभिनेत्रियां रेड कार्पेट पर अपना जलवा बिखेरेंगी और जब तक यह फेस्टिवल चलेगा, सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरें छाई रहेंगी। अभिनेत्रियां इस फेस्टिवल में किसी फिल्म का प्रमोशन करने नहीं जातीं, बल्कि ब्रांड प्रमोशन के लिए वहां जाती हैं। अंतरराष्ट्रीय कॉस्मेटिक ब्रांड लॉरियल पेरिस पिछले कई सालों से कान्स फिल्म फेस्टिवल का ब्यूटी पार्टनर है, जिसकी ब्रांड एंबेसडर मुख्य तौर पर सोनम कपूर और ऐश्वर्या राय हैं।
फंड जमा करना भी होता है मकसद
सीधे शब्दों में हीरोइनें ब्रांड के बुलावे पर वहां जाती हैं। हर ब्रांड अलग-अलग अभिनेत्रियों से संपर्क करते हैं। अभिनेत्रियां उन्हीं ब्रांड्स के लिए वहां जाती हैं और उनका कान्स फिल्म फेस्टिवल की फिल्मों से कोई लेना देना नहीं होता है। अगर किसी एक्ट्रेस की फिल्म वहां रिलीज होती है या दिखाई जाती है तो बात अलग है। कई बार हीरोइनें 'फैशन फॉर रिलीफ' के माध्यम से पर्यावरण और मानवीय कारणों के लिए फंड जमा करने भी वहां जाती हैं।
कान्स फिल्म फेस्टिवल में दी जाती है ये खास ट्रॉफी
कान्स का सबसे चर्चित पुरस्कार Palm d'Or है जिसे 'गोल्डन पाम' भी कहा जाता है। इसकी ट्रॉफी में पाम यानी खजूर की एक लंबी पत्ती का इस्तेमाल किया जाता है, जो 18 कैरेट सोने से बनी होती है। यह ट्रॉफी कान्स की शुरुआत होने के बाद से हर साल दी जाती रही है। 1955 में पहला गोल्डन पाम डेलबर्ट मान को फिल्म 'मार्टी' के लिए मिला था। 1993 में निदेशक जेन कैंपियन यह पुरस्कार पाने वाली पहली महिला थीं।
कहां से आता है कान्स के लिए पैसा?
1950 में फंड्स की कमी के कारण कान्स फिल्म फेस्टिवल का आयोजन नहीं हुआ था। कान्स के लिए हर साल लगभग 250 करोड़ रुपये का बजट तय होता है, जो फ्रांस के कर दाता और कॉर्पोरेट स्पॉन्सर्स के द्वारा फंड किया जाता है।