IIM से स्नातक पास करते हैं 35,000 किसानों की मदद, जानें
कौशलेंद्र कुमार ने 26 साल की आयु में 2007 में भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद से स्नातक किया। इसके बाद वे विदेश में अच्छी नौकरी करने के बजाय किसानों की दुर्दशा को दूर करने में मदद करने के लिए अपने घर बिहार चले गए। एक उद्देश्य के साथ कौशलेंद्र ने अपने भाई के साथ NGO कौशल्या फाउंडेशन की शुरुआत की। एक दशक बाद वे और उनके भाई लगभग 35,000 से अधिक किसानों को उनकी फसल बेचने में मदद कर रहे हैं।
कहां से मिली प्रेरणा
द बेटर इंडिया से बात करते हुए 38 वर्षीय कौशलेंद्र ने बताया किया कि इतनी कम उम्र में उऩ्हें ये सब करने की प्रेरणा कैसे मिली। महमदपुर में जन्मे कौशलेंद्र को नवादा में 50 किलोमीटर दूर स्कूल भेजा गया था, जहाँ उन्होंने देखा कि उनके कुछ स्कूली छात्र स्कूल में अपने घरों से दूर रह रहे हैं, क्योंकि उनके परिवार उनका खर्चा नहीं उठा पा रहे थे। वे बच्चे सरकार द्वारा वित्त पोषित शिक्षा और आवास पर निर्भर थे।
कौशलेंद्र ने IIM-A में अंतिम वर्ष में गोल्ड मेडल हासिल किया
सरकारी स्कूल के शिक्षक के एक बेटे कौशलेंद्र ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) जूनागढ़ से कृषि इंजीनियरिंग में B.Tech की डिग्री प्राप्त की और फिर IIM अहमदाबाद से कृषि-बिजनेस मैनेजमेंट में MBA की डिग्री हासिल की। जिसमें उन्हें अंतिम वर्ष में गोल्ड मेडल मिला।
ऐसे निकाला किसानों की मदद करने का तरीका
2003 में कौशलेंद्र ने AP में एक ड्रिप सिंचाई प्रणाली की मैन्युफैक्चरिंग फर्म में ट्रेनी फील्ड ऑफिसर के रूप में काम किया। जहां उन्होंने किसानों की मदद करने का तरीका निकाला। उन्होंने TBI को बताया कि देश भर में कई पहलें हैं सौर ऊर्जा प्रावधान से किसानों को मदद कर रही हैं या किसानों को ऑनलाइन बाजार मिल रहा है। मैंने देखा कि ये अलग-थलग (Isolated) प्रोग्राम हैं, लेकिन ये किसान को पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं बनाते हैं।
2007 में उनके भाई और कौशलेंद्र ने 'कौशल्या फाउंडेशन' की स्थापना की
कौशलेंद्र ने कई सरकारी योजनाओं से लाभ को इकट्ठा करने की योजना बनाई और साल 2007 में उन्होंने अपने भाई धीरेंद्र कुमार के साथ एक किराए के कमरे में कौशल्या फाउंडेशन की स्थापना की। शुरुआत में किसान भाग लेने के लिए इच्छुक नहीं थे, लेकिन कौशलेंद्र ने महसूस किया कि वे रिजल्ट देखने तक हिचकिचाते रहेंगे। दोनों ने 30 AC मोबाइल वेजिटेबल वेंडिंग कार्ट्स खरीदने के लिए लोन लिया और फसल बेचने के लिए विक्रेताओं के साथ साझेदारी की।
सफलता मिलने से पहले घाटे में चले गए
उन्होंने TBI को बताया कि जब तक इसके फायदे किसान देख पाते, तब तक हम घाटे में चले गए थे। हालांकि सफलता आसपास थी। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमने कितने किसानों को प्रभावित किया। फर्क इससे पड़ा कि हमारा प्रभाव कितना स्थिर था।
कौशल्या फाउंडेशन के प्रोग्राम मैनेजर ने कहा ये
इसके अतिरिक्त उन्होंने नीड्स ग्रीन प्राइवेट लिमिटेड (KGPL) कार्यक्रम शुरू किया, जिससे कि किसानों को उनकी सही आय मिल सके। कौशल्या फाउंडेशन के प्रोग्राम मैनेजर अविनाश कुमार ने TBI को बताया कि KGPL ने विक्रेताओं के साथ साझेदारी करने में मदद की। उन्होंने पांच करोड़ रुपय का वार्षिक फंड लिया। इस बीच कौशल्या ने किसानों को संगठित करने और उन्हें आंत्रप्रेन्योर बनने के लिए प्रशिक्षित करने की दिशा में भी काम किया।
महिलाओं को शिक्षा के लिए किया प्रेरित
कौशलेंद्र ने अशिक्षा को किसानों की समस्या के रूप में पहचाना, लेकिन चूंकि गांव की 90% महिलाएं अनपढ़ थीं, इसलिए वे शिक्षा के प्रति इच्छुक नहीं थीं। आपका जानकारी के लिए बता दें कि महिलाओं को शिक्षा के लिए प्रेरित करने और महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद करने के लिए NGO ने ट्रैक्टर पाठ शुरू किया और आखिरकार महिलाएं पढ़ने के लिए प्रेरित हो गई।
देते हैं ट्रेनिंग
कौशलेंद्र ने TBI को बताया कि NGO लांग टर्म सॉल्यूशन आदि प्रदान करने की दिशा में काम करता है। इस प्रकार अब तक वे पूरे बिहार में 35,000 किसान परिवारों तक पहुंचने में सफल रहे हैं। कौशल्या फाउंडेशन ने राज्य भर में पांच मंडियों को स्थापित करने में मदद की है, जहां किसान सीधे अपनी फसल बेचते हैं। अब वे 10वीं/12वीं व स्नातक पास करने वालों को आंत्रप्रेन्योरशिप ट्रेनिंग दे रहे हैं।