
रूस में आया दुनिया का छठा सबसे शक्तिशाली भूकंप, लेकिन ताकतवर सुनामी क्यों नहीं आई?
क्या है खबर?
रूस के पूर्वी प्रायद्वीप कामचटका में बीते दिन 8.8 तीव्रता का भूकंप आया था। ये अब तक के दर्ज किए गए भूकंपों में छठा सबसे शक्तिशाली भूकंप था। इसके बाद जापान, अमेरिका, रूस, समेत पूरे प्रशांत महासागर में सुनामी आई। हालांकि, ये लहरें इतनी विनाशकारी नहीं थीं, जितना अनुमान लगाया गया था। बड़े पैमाने पर कोई नुकसान भी नहीं हुआ। आइए जानते हैं इतने शक्तिशाली भूकंप के बावजूद विनाशकारी सुनामी क्यों नहीं आई।
भूकंप
क्यों आया था इतना शक्तिशाली भूकंप?
कामचटका प्रायद्वीप को आग और बर्फ की जमीन कहा जाता है। यहां बड़ी संख्या में भूकंप आते हैं और सैकड़ों सक्रिय ज्वालामुखी हैं। ये इलाका प्रशांत महासागर के चारों ओर फैले हुए 'रिंग ऑफ फायर' में भी आता है, जो भूकंप के लिए जिम्मेदार पृथ्वी की टैक्टोनिक प्लेटों का सक्रिय केंद्र है। यहां की टैक्टोनिक प्लेटें हर साल लगभग 8 सेंटीमीटर की गति से उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ रही है। टैक्टोनिक प्लेटों के लिहाज से ये गति बेहद तेज है।
सुनामी
भूकंप से विनाशकारी सुनामी क्यों नहीं आई?
साउथेम्पटन विश्वविद्यालय में टेक्टोनिक्स की प्रोफेसर लिसा मैकनील ने BBC से कहा, "सुनामी लहर की ऊंचाई तट के निकट समुद्र तल के आकार और उस क्षेत्र के आकार से भी प्रभावित होती है जहां यह आती है। इसके अलावा सुनामी का प्रभाव इससे भी प्रभावित होता है कि तट पर कितनी आबादी है।" जानकार इसके पीछे भूकंप के केंद्र की गहराई को भी वजह बता रहे हैं, जो सतह से लगभग 20.7 किलोमीटर गहराई में था।
चेतावनी
बेहतर हो गई चेतावनी प्रणालियां
सुनामी से कम नुकसान के पीछे एक वजह बेहतर चेतावनी प्रणालियों का विकसित होना है। 2004 की सुनामी के बाद कई देशों ने खास चेतावनी केंद्र स्थापित किए, जो तटीय इलाके के लोगों को समय से पहले चेतावनी दे देते हैं। इनमें सायरन, मोबाइल पर अलर्ट और आपातकालीन शिविरों का निर्माण शामिल है। 2004 की सुनामी के वक्त ये प्रणालियां इतनी बेहतर नहीं थी, इसलिए तब लोगों को बाहर निकलने का मौका नहीं मिला था।
2004 की सुनामी
2004 की सुनामी में मारे गए थे 2.30 लाख लोग
2004 में इंडोनेशिया के सुमात्रा में 9.1 तीव्रता का इतिहास का तीसरा सबसे शक्तिशाली भूकंप आया था। इससे पूरे हिंद महासागर में सुनामी आ गई थी, जिसने कम से कम 14 देशों को अपनी चपेट में ले लिया था। इस दौरान 100 फीट ऊंची तक लहरें उठी थीं, जिसने 2.30 लाख लोगों की जान ले ली थी और लाखों लोग प्रभावित हुए थे। इसे इतिहास की सबसे भयानक प्राकृतिक आपदाओं में गिना जाता है।