'कोर-5' समूह बनाने पर विचार कर रहे अमेरिकी राष्ट्रपति; ये क्या है और कौन-कौन शामिल होगा?
क्या है खबर?
अमेरिका के सियासी गलियारों में इन दिनों एक नए वैश्विक गठबंधन की चर्चाएं तेज हैं। खबर है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक नया गठबंधन 'C5' या 'कोर फाइव' बनाने पर विचार कर रहे हैं, जिसमें अमेरिका, रूस, चीन, भारत और जापान होंगे। रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका की हालिया जारी हुई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (NSS) के एक गैर-सार्वजनिक वर्जन में इसका जिक्र किया गया है। आइए पूरा मामला समझते हैं।
समूह
क्या है कोर-5?
प्रस्तावित C-5 में दुनिया के सबसे प्रभावशाली और जनसंख्या के लिहाज से बड़े 5 देश शामिल होंगे- अमेरिका, चीन, भारत, रूस और जापान। इन सभी देशों की वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक निर्णयों पर भारी प्रभाव है। G-7 की तरह ये देश नियमित बैठकें करेंगे। रिपोर्ट के मुताबिक, पहली संभावित C-5 बैठक का फोकस मध्य-पूर्व में सुरक्षा खासकर इजरायल-सऊदी अरब के संबंधों के सामान्य बनाना होगा। मूल सिद्धांत है कि यह समूह G-7 की शर्तों से बंधा नहीं होगा।
मसौदा
NSS के प्रस्तावित मसौदे में क्या-क्या है?
डिफेंस वन के अनुसार , NSS में यह तर्क दिया गया है कि दुनियाभर में अमेरिकी प्रभुत्व बनाए रखने का लक्ष्य अवास्तविक और भ्रामक था। मसौदे में यह भी कहा गया है कि अमेरिका को अपनी वैश्विक प्रतिबद्धताओं के दायरे पर पुनर्विचार करना चाहिए और उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो सीधे अमेरिकी हितों को प्रभावित करते हैं। इसमें यूरोप को आप्रवासन और सामाजिक परिवर्तनों के कारण 'सभ्यतागत विनाश' का सामना करने वाला इलाका बताया गया है।
भारत
भारत के लिए क्या है महत्व?
भारत न केवल एक उभरती हुई वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक शक्ति है, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिहाज से भी अहम है। भारत की जनसंख्या और आर्थिक महत्व इसे किसी भी वैश्विक नेतृत्व समूह में दीर्घकालिक आधार प्रदान करता है। भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र को पश्चिम और मध्य एशिया से जोड़ने वाले प्रमुख समुद्री चौराहे पर भी स्थित है। हालांकि, चीन और अमेरिका जैसे देशों वाले समूह में भारत की उपस्थिति अपने साथ कई चुनौतियां भी लाएंगी।
यूरोप
यूरोप की बढे़गी चिंता
ट्रंप के इस कदम से यूरोप की चिंताएं बढ़ सकती है। यह विचार G-7 और G-20 जैसे मौजूदा समूहों को एक बहुध्रुवीय दुनिया के लिए नाकाफी बताता है। अमेरिका के सहयोगी इस कदम को रूस को यूरोप से ज्यादा प्राथमिकता देने और पश्चिमी एकता और NATO के तालमेल को कमजोर करने के तौर पर देखते हैं। NSS में भी कहा गया है कि अगर नीतियां नहीं बदलीं, तो यूरोप 20 साल में खत्म हो जाएगा।