
#NewsBytesExplainer: डोनाल्ड ट्रंप के ऐलान के बाद क्या H-1B वीजा कार्यक्रम लगभग अप्रभावी हो जाएगा?
क्या है खबर?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पेशेवरों को जारी किए जाने वाले H-1B वीजा कार्यक्रम में बड़ा बदलाव किया है। उन्होंने नए वीजा के लिए आवेदन फीस को बढ़ाकर 1 लाख डॉलर (88 लाख रुपये) कर दिया है। पहले ये फीस करीब 6 लाख रुपये थी। विशेषज्ञ अनुमान जता रहे हैं कि इन बदलावों के बाद H-1B वीजा कार्यक्रम लगभग अप्रभावी हो जाएगा। आइए इसके पीछे की संभावित वजहें समझते हैं।
वेतन
सालाना वेतन से ज्यादा हुई वीजा की फीस
वीजा के लिए अब करीब 88 लाख रुपये खर्च करना होंगे। ये इस वीजा के जरिए अमेरिका जाने वाले पेशवरों के औसतन सालाना वेतन से भी ज्यादा है। हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, ये राशि सभी H-1B वीजा धारकों के औसत वार्षिक वेतन के 80 प्रतिशत से भी ज्यादा है। अमेरिकी नागरिकता और आव्रजन सेवा (USICS) की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, H-1B वीजा के जरिए पहली नौकरी वाले पेशेवरों का औसत वेतन 85 लाख रुपये था।
ज्यादा वेतन
सबसे ज्यादा वेतन पाने वाले पेशेवरों के लिए भी मुश्किलें
2024-25 की तीसरी तिमाही में दायर प्रमाणित श्रम स्थिति आवेदनों के मुताबिक, भारत की कुछ शीर्ष IT कंपनियां अपने कुशल पेशेवरों को 89,000 डॉलर से 1.13 लाख डॉलर तक का वेतन देती हैं। ये सबसे ज्यादा वेतन है। ये आंकड़े बताते हैं कि टॉप कंपनियां भी अपने शीर्ष टैलेंट को जितना सालाना वेतन नहीं दे रही हैं, उससे ज्यादा खर्च तो उन्हें वीजा के लिए करना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में कंपनियां कर्मचारियों को अमेरिका नहीं भेजेगी।
अन्य वीजा
ट्रंप ने 3 अन्य वीजा कार्ड भी जारी किए
ट्रंप ने 3 नए तरह के वीजा कार्ड भी शुरू किए हैं। इन्हें 'ट्रंप गोल्ड कार्ड', 'ट्रंप प्लेटिनम कार्ड' और 'कॉर्पोरेट गोल्ड कार्ड' नाम दिया गया है। 8.8 करोड़ रुपये की कीमत वाले ट्रंप गोल्ड कार्ड से अमेरिका में हमेशा रहने का अधिकार मिलेगा। 17 करोड़ रुपये वाला कारपोरेट गोल्ड कार्ड के जरिए कंपनी दूसरे कर्मचारी को वीजा स्थानांतरित कर सकेगी। वहीं, 41 करोड़ रुपये वाले प्लेटिनम कार्ड से बिना टैक्स दिए 270 दिन अमेरिका में रहा जा सकेगा।
भारतीय
सबसे ज्यादा भारतीयों को मिलता है H-1B वीजा
2024 में अमेरिका ने 3.99 लाख H-1B वीजा स्वीकृत किए थे। इनमें से 71 प्रतिशत वीजा भारतीयों को मिले थे। 11.7 प्रतिशत के साथ चीन दूसरे नंबर पर था। यही नहीं, अमेरिकी विदेश विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 1997 से 2024 तक कुल 40 लाख H-1B वीजा जारी किए। इनमें से 25 लाख या 60 प्रतिशत के आसपास भारतीयों को मिले हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि भारतीयों को सबसे ज्यादा इस वीजा का फायदा मिलता है।
कंपनियां
कौनसी कंपनियां सबसे ज्यादा H-1B वीजा स्पॉन्सर करती हैं?
भारत से हर साल लाखों इंजीनियर और तकनीकी पेशेवर अमेरिका काम करने जाते हैं। इंफोसिस, TCS, विप्रो, कॉग्निजेंट और HCL जैसी कंपनियां अपने कर्मचारियों को सबसे ज्यादा H-1B वीजा स्पॉन्सर करती हैं। 2025 में अमेजन को सबसे ज्यादा 10,043 H-1B वीजा जारी किए गए। इसके बाद TCS को 5,505, माइक्रोसाफ्ट को 5,189), मेटा को 5,123, ऐपल को 4,202, गूगल को 4,181, कॉग्निजेंट को 2,492, जेपी मॉर्गन को 2,422, डेलोइट को 2,353 और इंफोसिस को 2,004 वीजा जारी किए गए।
वीजा
क्या होता है H-1B वीजा?
H-1B वीजा एक गैर-अप्रवासी वीजा है, जिसके तहत अमेरिकी कंपनियां दक्ष कर्मचारियों को नौकरियां देती हैं। ये तकनीकी, वैज्ञानिक और व्यावसायिक विशेषज्ञता वाले पेशेवरों को दिया जाता है। ये वीजा 3 साल के लिए होता है और इसे 3 साल के लिए रिन्यू किया जा सकता है। हर साल लाखों लोग इसके लिए आवेदन करते हैं, लेकिन लॉटरी के जरिए केवल 65,000 पेशेवरों और 20,000 उच्च शिक्षित लोगों को ही ये मिलता है।
वजह
अमेरिका ने फैसले के पीछे क्या वजह बताई है?
व्हाइट हाउस ने फैसले के पीछे की वजह बताते हुए कहा कि अमेरिकी श्रमिकों की जगह कंपनियां कम वेतन वाले विदेशी श्रमिकों को तरजीह दे रही हैं। व्हाइट हाउस ने उदाहरण देते हुए बताया कि एक कंपनी ने वित्त वर्ष 2025 में 5,189 H-1B वीजा कर्मचारियों को दिए और इसी साल 16,000 अमेरिकी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि इस वीजा का सबसे ज्यादा गलत इस्तेमाल होता है।