चीन ने अलापा ताइवान के एकीकरण का राग, सेना भेजने की बात कह चुका है अमेरिका
क्या है खबर?
चीन ने कहा है कि वह ताइवान के शांतिपूर्ण 'एकीकरण' के लिए सभी प्रयास करने को तैयार है। चीन का यह बयान ऐसे समय आया है, जब उसकी सेना ताइवान के पास कई हफ्तों से सैन्य अभ्यास कर रही है।
चीन की तरफ से कहा गया है कि मातृभूमि का एकीकरण किया जाना जरूरी है और आगे चलकर ऐसा होगा।
दूसरी तरफ अमेरिका ने कहा है कि अगर चीन ताइवान पर आक्रमण करता है तो अमेरिकी सेना उसका बचाव करेगी।
विवाद
ताइवान को लेकर क्या है विवाद?
ताइवान चीन के दक्षिण-पूर्वी तट से लगभग करीब 160 किलोमीटर दूर स्थित एक द्वीप है।
चीन उसे अपना हिस्सा मानता है, वहीं ताइवान खुद को स्वतंत्र देश के तौर पर देखता है। उसका अपना संविधान है और वहां लोकतांत्रिक तरीके से सरकार चुनी गई है।
चीन के दावे का खंडन करते हुए ताइवान की सरकार का कहना है कि द्वीप का भविष्य यहां की 2.3 करोड़ जनता के हाथों में है।
बयान
चीन ने ताजा बयान में क्या कहा है?
चीन के ताइवान मामले के कार्यालय के प्रवक्ता मा जियाओगुआंग ने कहा कि उनका देश ताइवान के शांतिपूर्ण एकीकरण के लिए अधिकतम प्रयास करने को तैयार है, लेकिन साथ ही वह अपने क्षेत्र की सुरक्षा के लिए भी प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि मातृभूमि का एक होना जरूरी है और आगे चलकर ऐसा होना ही है।
इससे पहले चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी बयान दे चुके हैं कि ताइवान का एकीकरण पूरा होकर रहेगा।
प्रस्ताव
चीन ने दिया यह प्रस्ताव
चीन ने प्रस्ताव दिया है कि ताइवान को 'एक देश, दो व्यवस्था' ढांचे के तहत शासित किया जा सकता है। 1997 में अंग्रेजों के जाने के बाद चीन ने हांगकांग में यही व्यवस्था शुरू की थी।
जियाओगुआंग ने कहा कि ताइवान में मेनलैंड चीन से अलग 'सामाजिक व्यवस्था' हो सकती है, जिससे उनके जीने के तरीके, धार्मिक आजादी आदि को जगह दी जा सके, लेकिन यह राष्ट्रीय संप्रभुता, सुरक्षा और विकास के हित्तों की शर्तों पर नहीं हो सकता।
जानकारी
ताइवान ने खारिज किया प्रस्ताव
ताइवान की मुख्यधारा की सभी पार्टियों ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। एक ओपिनियन पोल में सामने आया है कि ताइवान के लोग भी चीन के इस प्रस्ताव से खुश नहीं है।
जानकारी
2016 के बाद से दावा मजबूत कर रहा चीन
2016 में त्सेई-इंग-वेन के ताइवान की राष्ट्रपति बनने के बाद से चीन ने द्वीप पर अपना दावा मजबूत करना शुरू कर दिया था।
चीन ने ताइवान की पहली निर्वाचित राष्ट्रपति को 'अलगाववादी' बताते हुए उनसे बातचीत करने से इनकार कर दिया था।
ताइवान को कूटनीतिक तौर पर भी अलग-थलग करने के प्रयासों के साथ चीन ने उस पर नियंत्रण करने के लिए सेना के प्रयोग की संभावना से भी इनकार नहीं किया है।
दावा
ताइवान स्ट्रेट पर भी दावा जताता आया है चीन
ताइवान के अलावा चीन ताइवान स्ट्रेट पर भी अपना दावा जताता आया है। यह 180 किलोमीटर का समुद्री गलियारा है, जो चीन को ताइवान से अलग करता है।
हालांकि, अमेरिका ने चीन के इस दावे का विरोध किया है। 20 सितम्बर को एक अमेरिकी बड़ा इस स्ट्रेट से गुजरा था।
बता दें कि अमेरिका ताइवान को भरोसा दे चुका है कि अगर चीन हमला करता है तो वह मदद के लिए अपनी सेना ताइवान भेजेगा।
बयान
बाइडन ने दिया बड़ा बयान
बीते रविवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा था कि अगर चीन हमला करता है तो अमेरिका ताइवान की मदद के लिए अपनी सेना भेजेगा।
बता दें कि अमेरिका के साथ ताइवान के औपचारिक रिश्ते नहीं हैं, लेकिन दोनों के बीच अनौपचारिक संबंध जारी हैं। पिछले महीने हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की स्पीकर नैंसी पेलोसी ताइवान आई थीं।
ताइवान ने बाइडन के बयान के लिए अमेरिका का धन्यवाद जताया है, वहीं चीन ने इस पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है।
विशेषज्ञों की राय
चीन को क्यों चाहिए ताइवान पर नियंत्रण?
कई विशेषज्ञों का कहना है कि अगर चीन ताइवान को कब्जे में ले लेता है तो पश्चिमी प्रशांत महासागर में उसका दबदबा बढ़ जाएगा। इससे गुआम और दूसरे द्वीपों पर मौजूद अमेरिका के सैन्य ठिकानों पर खतरा बढ़ जाएगा।
हालांकि, चीन इन आशंकाओं का खारिज करते हुए कहता है कि वह शांतिपूर्ण इरादों से आगे बढ़ रहा है।
वहीं यह अमेरिका के सहयोगी माने जाने वाले द्वीपों में शामिल है, जो उसकी विदेश नीति के लिए बेहद जरूरी है।
इतिहास
न्यूजबाइट्स प्लस (जानकारी)
दूसरे विश्वयुद्ध के करीब ताइवान और चीन अलग हुए थे।
उस वक्त चीन में सरकार चला रही नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमिंतांग) का चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ संघर्ष चल रहा था।
1949 में माओत्से तुंग की अगुवाई में कम्युनिस्ट पार्टी जीत गई और बीजिंग पर काबिज हो गई। इसके बाद कुओमिंतांग समर्थक चीन से भागकर ताइवान द्वीप पर चले गए।
आगे चलकर यह ताइवान की महत्वपूर्ण पार्टी बन गई और यहां अधिकतर उसी की सरकार रही है