
अंतरिक्ष में ब्लड प्रेशर में क्या बदलाव आते हैं?
क्या है खबर?
अंतरिक्ष में बहुत चीजें पृथ्वी से विपरीत होती हैं।
इस बदलाव के कारण अंतरिक्ष यात्रियों के शरीर पर भी काफी असर पड़ता है, जिसमें ब्लड प्रेशर में बदलाव होना प्रमुख है।
गुरुत्वाकर्षण की कमी के कारण शरीर में खून का प्रवाह ऊपर की ओर यानी सिर और छाती की तरफ बढ़ जाता है। इससे चेहरे पर सूजन, सिरदर्द और नाक बंद जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
आइए जानते हैं कि अंतरिक्ष में ब्लड प्रेशर में क्या बदलाव होता है।
बदलाव
ऐसे आता है ब्लड प्रेशर में बदलाव
अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण नहीं होने से ब्लड नीचे की ओर खिंचता नहीं है, जिससे सिर और ऊपरी शरीर में रक्त जमा हो जाता है।
इसका असर यह होता है कि डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर यानी नीचे वाला प्रेशर थोड़ा बढ़ जाता है। कुछ यात्रियों को इस कारण सिर भारी लगने लगता है।
खून का दबाव एकसमान हो जाने से दिल पर भी असर पड़ता है, जिससे वह धीरे-धीरे कम मेहनत करता है और ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है।
बदलाव
लंबे समय बाद गिरने लगता है ब्लड प्रेशर
अगर कोई यात्री लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहता है, तो शरीर धीरे-धीरे वहां के माहौल के अनुसार ढलने लगता है।
इस दौरान शरीर में रक्त की मात्रा घट जाती है और मांसपेशियां भी कमजोर होने लगती हैं। नतीजतन ब्लड प्रेशर धीरे-धीरे कम होने लगता है।
जब यात्री धरती पर लौटते हैं, तो खड़े होते समय उनका ब्लड पैरों की ओर बहता है और सिर में रक्त की कमी हो जाती है, जिससे चक्कर आने जैसी परेशानी होती है।
तरीका
ऐसे मापा जाता है अंतरिक्ष में ब्लड प्रेशर
अंतरिक्ष में ब्लड प्रेशर मापने के लिए स्पेशल मॉनिटरिंग सिस्टम होते हैं, जो आर्म कफ और सेंसर से जुड़े होते हैं।
ये डिवाइस यात्रियों की कलाई या बांह पर बांधे जाते हैं और नियमित अंतराल पर उनका ब्लड प्रेशर रिकॉर्ड करते हैं। यह डाटा मिशन कंट्रोल को भेजा जाता है, ताकि डॉक्टर्स लगातार निगरानी रख सकें।
इसके अलावा, अब AI आधारित स्मार्ट उपकरण भी लगाए जाते हैं, जो खुद से ब्लड प्रेशर में बदलाव का पता लगाते हैं।