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शुभांशु शुक्ला के मिशन की सफलता के लिए मदद कर रहे वैज्ञानिक, करेंगे ये प्रयोग 
शुभांशु शुक्ला ISS में पहुंचकर 7 वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे

शुभांशु शुक्ला के मिशन की सफलता के लिए मदद कर रहे वैज्ञानिक, करेंगे ये प्रयोग 

Jun 17, 2025
11:08 am

क्या है खबर?

भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला 19 जून को एक्सिओम-4 मिशन के तहत 3 विदेशी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ अमेरिका के फ्लोरिडा से अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) के लिए उड़ान भरेंगे। वे 44 वर्षों में ISS की यात्रा करने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री हैं। मिशन की सफलता को ध्यान में रखते हुए सरकार उन्हें हरसंभव सहायता प्रदान कर रही है, जिससे ISS पर भारत द्वारा किए जाने वाले सभी 7 वैज्ञानिक प्रयोग सफल हो सकें।

पहला प्रयोग 

सूक्ष्म शैवाल के विकास को लेकर होगा पहला प्रयोग 

जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) का एक वैज्ञानिक अपने 3 प्रयोगों के लिए पहले से ही फ्लोरिडा में है। DBT के एक अधिकारी ने कहा, "शुक्ला को प्रयोगों को सुचारू रूप से चलाने में सहायता करने के लिए हमारा व्यक्ति वहां मौजूद है। वे जो 7 प्रयोग करेंगे, उनमें से 3 विभाग के हैं।" पहले प्रयोग का उद्देश्य ISS पर माइक्रोग्रैविटी स्थितियों के खाद्य सूक्ष्म शैवाल के विकास पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करना है।

दूसरा प्रयोग 

साइनोबैक्टीरिया के प्रभाव का लगाएंगे पता 

DBT का दूसरा प्रयोग माइक्रोग्रैविटी में यूरिया पर बढ़ने वाले साइनोबैक्टीरिया के विकास और प्रतिक्रियाओं के प्रभाव का अध्ययन करना शामिल है। लंबे अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए ऑक्सीजन उत्पन्न करने के लिए एक स्रोत होना आवश्यक है। अपनी तेज वृद्धि के कारण साइनोबैक्टीरिया कार्बन रीसाइक्लिंग के लिए सबसे अच्छे जैविक एजेंट हैं। साइनोबैक्टीरिया यूरिया का उपयोग भी कर सकते हैं, जो नाइट्रोजन स्रोत के रूप में मानव मूत्र का एक प्रमुख घटक है।

तीसरा प्रयोग 

खोजेंगे मांसपेशियों के नुकसान का इलाज 

ISS पर जैव प्रौद्योगिकी विभाग का तीसरा प्रयोग माइक्रोग्रैविटी में मांसपेशियों के विकास पर मेटाबोलिक सप्लीमेंट के प्रभाव का अध्ययन करने के बारे में है। अंतरिक्ष यात्रियों पर माइक्रोग्रैविटी के प्राथमिक प्रभावों में से एक मांसपेशियों का नुकसान और मांसपेशियों की कोशिकाओं के पुनर्जीवित होने की क्षमता में गिरावट है। इस प्रयास में जांचकर्ता मांसपेशियों की मरम्मत के प्रयोगों को लागू कर रहे हैं। यह शोध स्टेम सेल विज्ञान एवं पुनर्योजी चिकित्सा संस्थान के भारतीय प्रमुख अन्वेषकों ने सुझाया है।