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नासा-ISRO का NISAR मिशन हुआ लॉन्च, जानिए इसकी खासियत और तकनीकी ताकत
नासा-ISRO का NISAR मिशन हुआ लॉन्च (तस्वीर: नासा)

नासा-ISRO का NISAR मिशन हुआ लॉन्च, जानिए इसकी खासियत और तकनीकी ताकत

Jul 30, 2025
05:41 pm

क्या है खबर?

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और नासा का साझा पृथ्वी अवलोकन मिशन नासा-ISRO सिंथेटिक अपर्चर रडार (NISAR) आज (30 जुलाई) सफलतापूर्वक लॉन्च हो गया है। ISRO ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से मिशन को शाम 05:40 बजे GSLV F16 रॉकेट से लॉन्च किया है। इस लॉन्च को भारत-अमेरिका अंतरिक्ष सहयोग के लिए एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। यह मिशन पृथ्वी पर हो रहे पर्यावरणीय बदलावों की निगरानी करेगा और वैज्ञानिकों को असली समय में जरूरी आंकड़े देगा।

मिशन

क्या है NISAR मिशन?

NISAR सैटेलाइट को खास तौर पर पृथ्वी की सतह पर हो रहे बदलावों की गहराई से निगरानी के लिए तैयार किया गया है। इसका काम भूकंप, भूस्खलन, ग्लेशियरों के पिघलने, समुद्र-स्तर में वृद्धि और वन क्षेत्र में बदलाव जैसे कई पर्यावरणीय पहलुओं की जानकारी जुटाना है। यह सैटेलाइट हर मौसम में दिन और रात डाटा इकट्ठा कर सकेगा। इसका मकसद जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाओं और पारिस्थितिक संकटों को समझना और उनका समय रहते समाधान ढूंढना है।

खासियत

NISAR की खासियत और तकनीकी ताकत

NISAR में 2 आधुनिक रडार सिस्टम लगे हैं, जिसमें नासा का L-बैंड रडार और दूसरा ISRO का S-बैंड रडार शामिल हैं। L-बैंड रडार घने जंगलों और ग्लेशियरों को स्कैन कर सकता है, जबकि S-बैंड रडार खेती, शहरों और तटीय इलाकों की हाई-रेजोल्यूशन इमेज ले सकता है। इसकी डुअल-बैंड तकनीक इसे बादलों और धुंध में भी प्रभावी बनाती है। यह करीब 3 साल तक पूरी पृथ्वी को हर 12 दिन में 2 बार स्कैन कर सकेगा और निरंतर अपडेट देता रहेगा।

खर्च

बनाने में कितना वक्त और खर्च?

NISAR मिशन को पूरी तरह तैयार करने में लगभग एक दशक लग गया। इसकी डिजाइनिंग, सिस्टम डेवेलपमेंट और रडार तकनीक को एकीकृत करने में ISRO और नासा की टीमों ने मिलकर करीब 10 साल तक काम किया। इस मिशन की लागत लगभग 13,000 करोड़ रुपये है। इसमें सैटेलाइट निर्माण, लॉन्च और 3 साल तक के डाटा ऑपरेशन की कीमत शामिल है। यह अब तक का सबसे महंगा और जटिल पृथ्वी अवलोकन मिशन माना जा रहा है।

फायदा

NISAR से क्या होगा फायदा?

NISAR मिशन का डाटा पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों और सरकारों को मिलेगा। इसका इस्तेमाल जलवायु परिवर्तन की निगरानी, फसल की स्थिति समझने, शहरी विकास योजना और प्राकृतिक आपदा के लिए तैयारी जैसे कार्यों में किया जाएगा। यह मिशन भारत को पर्यावरणीय निगरानी में वैश्विक नेतृत्व दिला सकता है। इसके साथ ही, यह भविष्य में मौसम पूर्वानुमान, कार्बन स्टोरेज आकलन और वन क्षेत्र की सुरक्षा जैसे कामों में भी मदद करेगा।