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    मेलबर्न की स्टार्टअप ने लॉन्च किया मानव मस्तिष्क कोशिकाओं से बना बॉयोलोजिकल कंप्यूटर
    मेलबर्न की स्टार्टअप ने लॉन्च किया बॉयोलोजिकल कंप्यूटर (प्रतीकात्मक तस्वीर: फ्रीपिक)

    मेलबर्न की स्टार्टअप ने लॉन्च किया मानव मस्तिष्क कोशिकाओं से बना बॉयोलोजिकल कंप्यूटर

    लेखन बिश्वजीत कुमार
    Mar 06, 2025
    09:02 am

    क्या है खबर?

    मेलबर्न की स्टार्टअप कंपनी कॉर्टिकल लैब्स ने CL1 नामक बॉयोलोजिकल कंप्यूटर लॉन्च किया, जो मानव मस्तिष्क कोशिकाओं पर आधारित है।

    इसे 'वेटवेयर-एज-ए-सर्विस' मॉडल पर पेश किया गया है, जिससे इसे क्लाउड की तरह दूर से इस्तेमाल किया जा सकता है।

    वैज्ञानिकों ने इसे न्यूरॉन्स की मदद से विकसित किया, जो बाहरी संकेतों पर प्रतिक्रिया देते हैं।

    यह कंप्यूटर न्यूरॉन्स को प्रशिक्षित कर सकता है। कंपनी इसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का बॉयोलोजिकल रूप मानती है।

    बॉयोलोजिकल AI: मस्तिष्क की शक्ति का उपयोग

    बॉयोलोजिकल AI: मस्तिष्क की शक्ति का उपयोग

    CL1 का आधार यह विचार है कि अगर AI को इंसानी मस्तिष्क जैसा बनाना संभव नहीं है, तो क्यों न सीधे मस्तिष्क कोशिकाओं का उपयोग किया जाए।

    डॉ. ब्रेट कगन के अनुसार, "एकमात्र चीज जिसमें सामान्य बुद्धिमत्ता है, वह बॉयोलोजिकल मस्तिष्क है।"

    पारंपरिक AI की तुलना में यह न्यूरॉन्स की प्राकृतिक क्षमताओं का लाभ उठाता है, जिससे यह तेजी से सीख सकता है।

    हालांकि, इसे वर्तमान AI तकनीकों की जगह लेने के लिए नहीं विकसित किया जा रहा है।

    खासियत

    बॉयोलोजिकल कंप्यूटर की खासियत

    CL1 पारंपरिक AI की तुलना में काफी कम बिजली खपत करता है और तेजी से सीखने में सक्षम है। एक साधारण सिलिकॉन चिप पर हजारों प्रयोगशाला में विकसित न्यूरॉन्स लगाए गए हैं, जो बाहरी डाटा पर प्रतिक्रिया देकर खुद को प्रशिक्षित करते हैं।

    इन्हें रक्त कोशिकाओं से स्टेम सेल में बदला जाता है और फिर न्यूरॉन्स में विकसित किया जाता है। यह तकनीक भविष्य में दवा परीक्षण और रोगों की समझ के लिए क्रांतिकारी साबित हो सकती है।

    महत्व

    बॉयोलोजिकल कंप्यूटर का महत्व

    यह तकनीक चिकित्सा अनुसंधान में एक बड़ा कदम साबित हो सकती है।

    प्रोफेसर अर्नस्ट वोल्वेटांग के अनुसार, "हम न्यूरॉन्स को तेजी से सीखते देख हैरान थे, लेकिन इस सिस्टम इसे साबित कर दिया।"

    यह सिस्टम न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों को समझने और नए उपचार विकसित करने में मदद कर सकती है।

    इसके अलावा, यह बॉयोलोजिकल इंटेलिजेंस को AI के साथ जोड़ने का नया तरीका हो सकता है। हालांकि, वैज्ञानिकों ने कहा है कि अभी इसे और शोध की जरूरत है।

    सवाल

    बॉयोलोजिकल कंप्यूटर पर नैतिक सवाल

    बॉयोलोजिकल कंप्यूटर पर नैतिक सवाल भी उठे हैं। वैज्ञानिक इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि क्या बड़े न्यूरॉन नेटवर्क कभी चेतना प्राप्त कर सकते हैं।

    डॉ. सिल्विया वेलास्को के अनुसार, "फिलहाल, यह चिंता निराधार है, लेकिन हमें संभावित चिंताओं का मूल्यांकन करना होगा।"

    कॉर्टिकल लैब्स का कहना है कि वे इन न्यूरॉन्स को सिर्फ एक सर्किट के रूप में उपयोग कर रहे हैं।

    आगे इस तकनीक का दवा अनुसंधान, शिक्षा और न्यूरोसाइंस में बड़ा उपयोग हो सकता है।

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