ISRO का आदित्य-L1 अगले साल करीब से देखेगा सूर्य की तेज गतिविधि
क्या है खबर?
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का आदित्य-L1 अगले साल सोलर मैक्सिमम का सामना करेगा, जिसे सूर्य की सबसे तेज गतिविधि माना जाता है। इस दौरान सूरज के अंदर चुंबकीय बदलाव तेजी से बढ़ते हैं और सौर तूफान अधिक निकलते हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2026 में सूरज रोजाना कई कोरोनल मास इंजेक्शन (CME) छोड़ सकता है, जो धरती की तकनीकी प्रणालियों पर असर डाल सकते हैं। यही वजह है कि यह मिशन बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
प्रभाव
सूरज से निकलने वाले CMEs के धरती पर प्रभाव
CMEs सूरज के बाहरी हिस्से से निकलने वाले भारी आग जैसे बुलबुले होते हैं, जिनमें बहुत अधिक चार्ज्ड कण होते हैं। ये कुछ ही घंटों में धरती तक पहुंचकर सैटेलाइट, GPS, इंटरनेट और बिजली सप्लाई में रुकावट पैदा कर सकते हैं। सामान्य समय में सूरज 2-3 CME निकालता है, लेकिन सोलर अधिकतम में यह संख्या 10 से ऊपर जा सकती है। इतनी तेज गतिविधि पृथ्वी के आसपास के अंतरिक्ष मौसम को भी काफी बदल देती है।
खासियत
आदित्य-L1 क्यों है खास?
आदित्य-L1 को धरती और सूरज के बीच मौजूद खास L1 पॉइंट पर रखा गया है, जहाँ से सूरज का बिना रुकावट लगातार दृश्य मिलता है। इसका मुख्य उपकरण VELC सूरज की चमकदार रोशनी को ढककर उसके कोरोना को साफ दिखाता है, जिससे CMEs की सही दिशा और गति मापी जा सकती है। इसके साथ सूट और एक्स-रे टेलीस्कोप जैसे उपकरण सूरज के वातावरण को कई अलग-अलग वेवलेंथ में दिखाते हैं, जिससे विस्तृत और अध्ययन संभव होती है।
सुरक्षा
यह मिशन धरती की सुरक्षा और तकनीक के लिए क्यों है जरूरी?
सौर तूफान सीधे इंसानों को नुकसान नहीं पहुंचाते, लेकिन वे धरती की तकनीक पर बड़ा असर डाल सकते हैं। जब कोई CME धरती के चुंबकीय क्षेत्र से टकराता है, तो जियोमैग्नेटिक तूफान बनता है, जिससे मोबाइल नेटवर्क, इंटरनेट, पावर ग्रिड और सैटेलाइट सेवाओं में रुकावट आ सकती है। आदित्य-L1 ऐसे तूफानों की पहले से पहचान करने और उनके असर को समझने में मदद करेगा, जिससे भविष्य में बड़े तकनीकी नुकसान को समय रहते रोका जा सकेगा।