दिल्ली में कृत्रिम बारिश पर उठ रहे सवाल, जानिए पर्यावरण विशेषज्ञों ने क्या कहा
क्या है खबर?
दिल्ली में प्रदूषण की रोकथाम के लिए क्लाउड सीडिंग प्रोजेक्ट (कृत्रिम बारिश) को पर्यावरण विशेषज्ञों की ओर से कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने इस तकनीक को राजधानी के पर्यावरण प्रदूषण से निपटने के लिए बेहद महंगा और अस्थायी उपाय बताया, जबकि वैज्ञानिकों ने इससे वायु गुणवत्ता में मामूली सुधार की रिपोर्ट दी है। क्लाउड सीडिंग का बजट 5 परीक्षणों के लिए 3.2 करोड़ रुपये से अधिक है, यानि एक उड़ान लगभग 64 लाख रुपये खर्च होंगे।
प्रयास
3 बार किए जा चुके हैं प्रयास
IIT कानपुर की ओर से किए गए इस वैज्ञानिक प्रयास के तहत अब 23 अक्टूबर 1 और 28 अक्टूबर को 2 प्रयास किए गए। इन तमाम कोशिशों के बावजूद शहर में कोई मापने योग्य बारिश नहीं हुई। अधिकारियों ने बारिश की कमी के लिए एक प्रमुख कारण अपर्याप्त नमी की पहचान की है। लक्षित बादलों में नमी का स्तर मात्र 10-20 फीसदी के बीच था, जो सफल क्लाउड सीडिंग के लिए आवश्यक आदर्श परिस्थितियों से बहुत कम था।
असर
दूसरे उपाय करने का आग्रह
विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र में अनुसंधान एवं वकालत की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी ने TOI से कहा कि अगर, बारिश प्रदूषकों को धो भी दे तो भी इसका असर क्षणिक होगा। उन्होंने कहा, "प्रदूषण जल्दी ही वापस लौट आएगा। इसका असर कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों तक रहता है।" साथ ही कहा कि यह पहल पूरे सर्दियों के मौसम में नियमित रूप से नहीं की जा सकती और इसके बजाय प्रदूषण में कमी लाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
सर्दी
सर्दी में कारगर नहीं यह प्रयोग
IIT दिल्ली के वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र के सहायक प्रोफेसर शहजाद गनी ने शीतकालीन क्लाउड सीडिंग के वैज्ञानिक औचित्य पर और सवाल उठाए। उन्होंने बताया कि दिल्ली में सर्दियां बहुत शुष्क होती हैं और अच्छी बारिश केवल पश्चिमी विक्षोभ के कारण ही होती है। गनी ने तर्क दिया कि ऐसी प्राकृतिक मौसमी घटनाओं के दौरान क्लाउड सीडिंग करना व्यर्थ होगा। बता दें कि बारिश की कमी के बावजूद पहली सीडिंग उड़ान के बाद वायु प्रदूषण मानकों में मामूली कमी आई है।
क्लाउड सीडिंग
क्या होती है क्लाउड सीडिंग?
क्लाउड सीडिंग में नमी से भरे बादलों में विशिष्ट कणों- सिल्वर आयोडाइड क्रिस्टल या नमक-आधारित यौगिकों को डालकर कृत्रिम रूप से बारिश कराई जाती है। इन कणों को फैलाने के लिए विमानों का उपयोग किया जाता है, जो छोटी बादल बूंदों को बड़ी बूंदों में संघनित कर देते हैं, जिससे संभावित रूप से बारिश हो सकती है। दिल्ली में IIT कानपुर की टीम सिल्वर आयोडाइड नैनो कण, आयोडीन युक्त नमक और सेंधा नमक का इस्तेमाल कर रही है।