नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना के मुद्दे को ठंडे बस्ते में क्यों डाल दिया है?
नीतीश कुमार भाजपा के साथ हाथ मिलाने से पहले बिहार में जाति जनगणना को लेकर काफी चर्चा में थे। वह इसे राष्ट्रीय स्तर पर करवाने के समर्थक बने हुए थे। अब ऐसा लगता है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में शामिल होते ही उन्होंने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया है। अक्टूबर, 2023 में बिहार के जातिगत सर्वेक्षण के आंकड़े जारी करने के बाद नीतीश ने इसे अपनी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि बता चुके हैं।
नीतीश कुमार की जातिगत जनगणना को लेकर क्या योजना थी?
दरअसल, नीतीश ने कहा था कि वह राष्ट्रव्यापी जातिगत जनगणना पर जोर देने के लिए झारखंड, महाराष्ट्र, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे विभिन्न राज्यों में सार्वजनिक बैठकों को संबोधित करेंगे। नीतीश की ऐसी ही रैली 24 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में भी निर्धारित थी, जो हो नहीं पाई। 29 दिसंबर को JDU की नई दिल्ली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नीतीश ने जातिगत जनगणना अभियान में तेजी लाने पर जोर दिया था।
जनवरी से नीतीश विभिन्न राज्यों का करने वाले थे दौरा
बैठक में यह घोषणा की गई कि जनवरी से नीतीश जन जागरूकता बढ़ाने के लिए विभिन्न राज्यों का दौरा करेंगे, जिसकी शुरुआत झारखंड से होगी। वह विभिन्न राज्यों में अन्य क्षेत्रीय संगठनों द्वारा आयोजित इसी तरह के कार्यक्रमों में भी भाग लेने वाले थे।
नीतीश ने अब इसे ठंडे बस्ते में क्यों डाल दिया?
अब नीतीश ने जातिगत जनगणना की मांग उठाना बंद कर दिया है। राजनीतिक हलकों में इसका कारण इस मुद्दे पर भाजपा की सुस्त प्रतिक्रिया बताई जा रही है। JDU पार्टी के एक नेता ने कहा, "देशव्यापी जातिगत जनगणना की मांग पर कोई कार्यक्रम नहीं हो रहा है क्योंकि भाजपा, NDA में हमारा प्रमुख सहयोगी, इसे आयोजित करने के लिए तैयार नहीं है।" हालांकि, JDU का यह भी कहना है कि भाजपा ने इसका कोई कड़ा विरोध भी नहीं किया।
JDU ने कहा- लोकसभा चुनावों से पहले कोई कार्यक्रम नहीं
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, JDU प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा, "जब नीतीश दोनों उपमुख्यमंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री से मिले तो उन्होंने इस मुद्दे पर जोर नहीं दिया। नीतीश के दिमाग में अभी भी जातिगत जनगणना है, लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले कुछ नहीं। हमारा मानना है कि भाजपा जातिगत आधारित सर्वेक्षण का विरोध नहीं करेगी।" उन्होंने कहा कि 'अमृत काल' के दौरान विभिन्न जातियों को यह जानने का अधिकार है कि उनका सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण कितना आगे बढ़ा है।
क्या नीतीश जातिगत जनगणना से जुड़े कार्यक्रमों का बनेंगे हिस्सा?
त्यागी ने कहा, "बिहार के जाति आधारित सर्वेक्षण के आंकड़े जारी होने के बाद से इन राज्यों में नीतीश की स्वीकार्यता बढ़ गई है। उन्होंने महाराष्ट्र के मराठों और गुजरात के पटेलों की मांगों को समर्थन किया है, जो अब अपने कार्यक्रमों में नीतीश की उपस्थिति चाहते हैं।" उन्होंने कहा, "हालांकि नीतीश इन कार्यक्रमों में शामिल होने से पहले पार्टी से चर्चा करेंगे कि यह कार्यक्रम उनके लिए कितने फायदेमंद होंगे।"
बिहार के बाहर लोकसभा चुनाव लड़ने की JDU की योजना क्या है?
रिपोर्ट के अनुसार, JDU के एक नेता ने कहा, "भाजपा क्षेत्रीय सहयोगियों को उनके संबंधित राज्यों के बाहर की सीटों पर लड़ने के पक्ष में नहीं है, इसलिए हम इस बार बिहार के बाहर चुनाव लड़ने की उम्मीद नहीं कर रहे।" हालांकि, JDU प्रवक्ता त्यागी ने कहा कि पार्टी ने भाजपा से गठबंधन के हिस्से के रूप में झारखंड और उत्तर प्रदेश दोनों जगहों पर कम से कम एक लोकसभा सीट देने का आग्रह किया है।
न्यूजबाइट्स प्लस
यह नीतीश कुमार ही थे, जिन्होंने भाजपा के खिलाफ संयुक्त विपक्ष का प्रस्ताव पेश किया था। इसके बाद INDIA गठबंधन बनाया गया। गठबंधन के नेताओं ने खासकर राहुल गांधी और नीतीश ने देश में जातिगत जनगणना के मुद्दे को खूब भुनाया था। सफल जातिगत सर्वे ने नीतीश को राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में ला दिया था, लेकिन जल्द ही उनका इस गठबंधन से मोह भंग हो गया और वे NDA में शामिल हो गए।